राष्ट्र समर्थ–समृद्ध कैसे बने
सच्चिदान्द चौवे:राष्ट्र का मूलधार व्यक्ति होता है, व्यक्ति से परिवार, परिवार से समुदाय, समुदाय से समाज और विभिन्न समुदाय और समाज से राष्ट्र का निर्माण होता है । समृद्ध समाज से ही देश भी समृद्ध और समुन्नत होता है । परन्तु अपनी समाज व्यवस्था पर आज सर्वतोमुखी
आज नेतागीरी इतनी सस्ती हो गई है कि इसकी खरीददारों की हर दिशा में भरभार है । वजनदार कीमती व्यक्तित्व उस दिशा में ना बहे यही उसके लिए श्रेयष्कर है । आज नेताओं का कोई धर्म नहीं है, वे स्वार्थपरता के घेरे में फंस चुके है । आज देश को समृद्ध बनाने की दिशा में सोच कम हड़ताल, सड़क जाम, अराजकता फैलाने के लिए, देश बिखण्डन करने के लिए, हड़ताल करने के लिए वे अग्रसर नजर आते है ।
अस्त–व्यस्तता का साम्राज्य है । नीति, नियति और मर्यादा की कसौटी पर व्यक्ति के निजी चिन्तन – चरित्र को कसकर देखा जाय तो वह खरा कम, खोटा अधिक दिखाई देता है । पारस्परिक सहयोग और सद्भाव, समाप्त सा हो गया प्रतीत होता है, सम्पन्नता कुछ गिने– चुने लोगों के हाथ में आई है, किन्तु वह भी अनीति से कमाई हुई प्रतीत होती है । एवं चतुरता जो स्वार्थपरक है वही बढ़ी– चढ़ी दिखाई देती है । सुबिधा – साधनाें की चमक दमक चकाचौंध पैदा करती एवं कौतूहल बढ़ाती दिखाई देती है । वह ठोस आधार कहीं दिखाई नही देता जिसे प्रगति का मूल आधार कहते है । व्यक्ति का निजी जीवन और पारस्परिक व्यवहार उच्च आदर्शों पर आधारित न होकर जब तक परिस्थितियों पर टिका होगा, समाज परावलम्बी ही बना रहेगा तथा उसको प्रगति– समृद्धि की दिशा में वांछित उत्थान कर पाना नितान्त असम्भव ही प्रतीत होगा । आज सद्वृत्तियों के संवर्धन की नितान्त आवश्यकता है, यही एक मात्र आधार है, जिससे नवीन समाज व अखण्ड समृद्धि की ओर गतिशील राष्ट्र के नव निर्माण की कल्पना की जा सकती है । धर्मतन्त्र और नैतिकता के बिना एक आर्दशवादी राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता । अतः यही आज के समाज की आवश्यकता है । धर्महीन राजनीति देश को पतन की ओर उन्मुख कराती है, जिससे देश अन्धेरे में घिर जाता है, पाशविक प्रवृतियों का अभ्युदय होने लगता है, देश से सद्गुणों का लोप हो जाता है । दुर्गुण बढ़ते हैं अतः देश को समर्थ और समृद्ध बनाने के लिए मानव में मानवता के गुणों का विकास करना आवश्यक होता है जिसे हम नैतिक शिक्षा के द्वारा विकसित कर सकते है ।आज नेतागीरी इतनी सस्ती हो गई है कि इसकी खरीददारों की हर दिशा में भरभार है । वजनदार कीमती व्यक्तित्व उस दिशा में ना बहे यही उसके लिए श्रेयष्कर है । आज नेताओं का कोई धर्म नहीं है, वे स्वार्थपरता के घेरे में फंस चुके है । आज देश को समृद्ध बनाने की दिशा में सोच कम हड़ताल, सड़क जाम, अराजकता फैलाने के लिए, देश बिखण्डन करने के लिए, हड़ताल करने के लिए वे अग्रसर नजर आते है । देश समृद्ध एवं समर्थ बनाने के लिए देश की, कृषि –उत्पादन, देश की जड़ीबूटी आदि का प्रशोधन, देश में उत्पादित वस्तुओं का निर्यात, जलस्रोत से ऊर्जा उत्पादन, देश के धार्मिक ऐतिहासिक, भौगोलिक दर्शनीय स्थानों की सुव्यवस्था तथा देश में दैवी प्रकोप से पीडि़त प्राणियों की तत्काल जीवन सुरक्षा करना ही देश के नेताओं का प्रमुख कर्तब्य होता है । देश की सेवा में जीवन के अमूल्य क्षणों का योगदान देने वाले पेंन्सनर, कर्मचारी, सुरक्षाकर्मी, शिक्षक आदि को समयानूकुल तलब भत्ता वृद्धि करने से, मंहगाई रोकने, मिलावट आदि रोकने, जैसे कार्य करने से देश में भ्रष्टाचार की कमी होती है, परन्तु नेता जब निजी स्वार्थपरक होकर अपनी सुविधा खोजता है तो अराजकता का सम्राज्य हो जाता है और देश अधोपतन की ओर चला जाता है ।
आज हमें सैंकड़ों वर्षो के अधिनायकवाद से मुक्ति मिली है और हमने लोकतान्त्रिक प्रणाली में प्रवेश किया है । इस प्रणाली की खास बात यह है कि जनता स्वेच्छा से अपना प्रतिनिधि चुन सकती है । जिसके समक्ष वह अपने बिचारों को स्वतन्त्र रूप से व्यक्त कर सके पर जहा“ पर जनता के द्वारा निर्वाचित सांसद कम हों और नेताओं के द्वारा पाकेट से निकले, अशिक्षित संविधान से अनभिज्ञ, जाहिल सा“सदों की संख्या अधिक हो वहा“ उनके समक्ष अपनें विचार व्यक्त करना तो सिर्फ बालू में पानी डालने जैसा होगा । अतः जिस देश में शिक्षित विद्वान विधि– विधान के ज्ञाता, जनता के उत्पीड़न के प्रति संवेदनशील व्यक्तित्व देश की बागडोर थामते हैं वह देश समृद्ध और समर्थ बनता है । लोगों में सद्वृत्तियों को जागृत करने का काम हो । देश में अधिकारों का दुरुपयोग न हो, जाति–पा“ति, धर्म, वर्ग, आतंक,, धन के प्रलोभन पर निर्वाचन प्रणाली न टिकी हो, यदि ऐसी व्यवस्था होती है तो प्रजातन्त्र टिकाऊ होता है । प्रजातन्त्र की सफलता एक जिम्मेवार वोटर पर तथा न्याय व लोकहित को ध्यान रखने वाले सचेता स्तर के चुने हुए प्रतिनिधियों पर निर्भर होती है ।
नेता समाज का नेतृत्व करने वाला ऐसा मार्ग दर्शक होता है, जिसे समाज की अनगिनत समस्याओं का गहन अध्ययन एवं ज्ञान होता है । साथ ही उस में वह क्षमता भी होती है कि वह उन समस्याओं का हल निकाल सके । परन्तु आज का नेतृत्व आजकल व्यवसायिक होकर एक धन्धे का रूप ले चुका है । सबकी छवि प्रमाणिकता की कसौटी पर कसने पर धुंधली दिखाई पड़ती है । आज समाज की बागडोर संभालने का समय सृजताओं पर आन पड़ा है । अतः जरुरत है आज ऐसे सर्जकों की, नए राष्ट्र के नवनिर्माण करने वाले उन प्रतिष्ठाओं की, जो वास्तव में समाज और देश के लिये कुछ करना चाहते हैं । उनके लिये समाज सेवा का असीमित क्षेत्र कार्य करने के लिए खुला पड़ा है । समाज सेवा अन्तःकरण की प्रेरणा से की जाती है उसमें पद–प्रतिष्ठा की रुकावट नहीं होती । आज राजनीति का परिमार्जन, अज्ञान– अभाव से जूझने वाले धर्मतन्त्र लोक शिक्षण कर सकने वाले, अपने आचरण से प्रभावित कर सकने वाले, राष्ट्र को पतन के गर्त से उबारने वाले मिशीनरी स्तर के कार्यकर्ताओं के द्वारा ही सम्भव हो सकता है । चंद प्रतिष्ठा से कोशों दूर रह, समाज ,संस्कृति के लिए कार्य करने वालों ने ही किसी समाज या राष्ट्र का उत्थान किया है ।
आज की जो सारी समस्याएं जो देश को ग्रसित किए हुए हैं, वे किस कारण जन्मी है और उन समस्याओं का निराकरण या समाधान कैसे सम्भव है इस पर व्यापक दूरदर्शिता की आवश्यकता है । इनकी मुख्य जड़ें हमारी संस्कृति के आधार भूत तत्वों में विद्यमान हंै । भ्रष्ट चिन्तन एवं पुष्ट आवरण से देश का निर्माण सम्भव नहीं है । इसके लिए देवमानव जब संगठित होकर देश निर्माण का बीड़ा उठाएंगें तभी सशक्त और समर्थ राष्ट्र का निर्माण होगा ।
आज देश को आवश्यकता ऐसी शिक्षा की है जो देश के कर्णधारों का सर्वागीण विकास कर सके उनके अन्तर में मानवीय गुणों के साथ ही साथ राष्ट्र प्रेम सदाचार, नैतिक, सत्यता, और सत्कर्मों का भाव भर सके लोभ, लालच, चाटुकारी, चोरी, चुगली एवं देशद्रोह, आतंकी भावनाओं का समन कर सके, तभी देश सवल, समृद्ध एवं समर्थवान बन पाएगा ।
(लेखक अवधी सा“स्कृतिक बिकास परिषद्, बा“के के अध्यक्ष है।)

