लिबिया संर्घष् पर बंटता विश्व
करुणा झा
लिबिया के सैन्य तानाशाह कर्नल गद्दाफी की हठधर्मिता के बहाने अमेरिका एंड कंपनी को एक बार फिर तेल की अर्थव्यवस्था में दखल देकर अपना प्रभाव जमाने और उसे मनचाहा फायदा लेने का मौका मिल गया है । पिछले कुछ समय से अरब देशों में जिस तरह की अस्थिरता, सत्ता तंत्र के विरुद्ध असंतोष और बदलाव की लहर चली, उससे समुचा वैश्विक समुदाय चिंतित है । भूमंडलीकरण और बाजारवाद के कारण अब विश्व के एक कोने में मची हलचल का असर दूसरे कोने पर क्षण भर में पडÞ जाता है, ऐसे में अगर शासन तंत्र के बदलाव के लिए क्रांतियाँ हो तो चिंता और चिंतन स्वभाविक है । जब ट्यूनिशिया और उसके बाद इजिप्ट में जनता निर्भिक होकर शासकों के विरुद्ध आंदोलनरत हर्ुइ, तो ये घटनाएं विश्व राजनीति में नए अध्याय के रुप में जुडÞी । बिना किसी सुस्पष्ट नेतृत्व के जनता ने संगठित होकर लगभग रक्तपात हीन क्रांति को सफल अंजाम तक पहुँचाया । यह अपने आप में किसी अचरज से कम नहीं था । इजिप्ट में मुबारक शासन के अंत के बाद यह लगने लगा था कि यही परिणाम अन्य आंदोलनरत देशों में भी होगा । किंतु लिबिया में कर्नल गद्दाफी पूरी तरह मरने-मारने पर उतारु हो गए हैं । डेढÞ माह पर्ूव वहाँ क्रांति प्रारंभ हर्ुइ तो यह लग रहा था कि गद्दाफी ज्यादा दिनों तक विरोध नहीं झेल पाएंगे । गद्दाफी के विरोधी चाहते हैं कि देश में व्यापक राजनीतिक सुधार हो और १९६९ से सत्ता पर काबिज गद्दाफी हटे । गद्दाफी के विरोधी लिबिया की सेना के खिलाफ मोर्चा ले रहे हैं और अपने लक्ष्य के लिए शहीद भी हो रहे हैं । इस नाजुक समय में संयुक्त राष्ट्र संघ से निर्ण्ाायक भूमिका निभाने की अपेक्षा स्वाभाविक थी ।
पिछले हफ्ते सुरक्षा परिषद में ब्रिटेन, प|mांस और लेबनान ने लिबिया में नो फ्लाई जोन घोषित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे दस देशों ने र्समर्थन दिया ओर स्थायी सदस्यों में से किसी ने वीटो नहीं किया । इस तरह लिबिया की हवाई सीमा में राहत सामग्री ले जाने वाले विमानों को छोडÞ शेष सभी उडÞाने पूरी तरह प्रतिबंधित हो गई । यह कर्नल गद्दाफी पर दबाव कायम करने का एक तरीका था । इसके अलावा प्रस्ताव में यह भी वणिर्त है कि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों को लिबिया में जारी हिंसा को रोकने के लिए हर जरुरी कदम उठाने की इजाजत है और बेनगाजी शहर में गद्दाफी की सेना द्वारा पर््रदर्शनकारियों पर जो हिंसा की जा रही है, उसे भी रोकने की मंजूरी है । लेकिन यह नजर आ रहा है कि अमेरिका, प|mांस, ब्रिटेन आदि देश सुरक्षा परिषद में पारित इस प्रस्ताव का बेजा फायदा उठा रहे हैं । दो दिन पहले गठबंधन सेनाओं का लिबिया पर जो मिसाइल आक्रमण प्रारंभ हुआ है, उसमें अब तक सौ से अधिक जानें जा चुकी है । इस सेना ने गद्दाफी के दफ्तर को नेस्तनाबूद करने में सफलता तो पा ली है, लेकिन उसके इरादों को अब तक तोडÞा नहीं जा सका है । इसका यही अर्थ है कि इस हमले से न लिबिया के नागरिकों की सुरक्षा की जा सकती है, न वहाँ जारी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है । अमेरिका ने बडÞी चतुर्राई से अपने सिर पर कोई आरोप लगने से पहले कह दिया कि वह इस सेना की कमान नाटो को सौंपेगा । अमेरिका की ऐसी धर्ूतता पहले खाडÞी युद्ध और बाद में इराक हमलों के वक्त दुनियाँ देख चुकी है ।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सुरक्षा परिषद में जारी प्रस्ताव के मुताबिक स्थायी सदस्य देशों को लिबियाई निवेश प्राधिकरण, लिबियाई केन्द्रीय बैंक और लिबियाई नेशनल आयल कंपनी की संपत्ति जब्त करने के आदेश भी दिए गए हैं । कर्नल गद्दाफी फिलहाल अपनी जिद से पीछे नहीं हट रहे हैं, बल्कि उन्होंने हथियारों के गोदाम को खोलने का ऐलान किया है और गठबंधन सेना के खिलाफ उतारने के लिए अपने नागरिकों को सशस्त्र करने की ठान ली है । सहज बुद्धि यह कहती है कि गठबंधन सेनाओं के आगे गद्दाफी अधिक दिनों तक नहीं ठहर पाएंगे, तब क्या लिबिया का अंजाम इराक की तरह और गद्दाफी सद्दाम की गति को प्राप्त होंगे – क्या संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इस संकट का कोई ऐसा हल नहीं निकाल सकते, जिसमें कम से कम रक्तपात और हिंसा हो । क्या लिबिया पर कुछ सक्षम देश सैन्य ताकत दिखाएंगे और कुछ सक्षम देश केवल बयानबाजी करते रह जाएंगे – इन प्रश्नो पर चिंतन वक्त की मांग है । अन्यथा लिबिया की तेल संपत्ति कुछ स्वार्थी ताकतों के हाथों जाते देर नहीं लगेगी ।
बंट रहा है विश्व कई देशों द्वारा
हमले की निंदा
लिबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी को हटाने के लिए पश्चिमी देशों द्वारा किया गया हमला, सीधे तौर पर विश्व को दो भागों में बांट रहा है । भारत, जर्मनी, चीन और रुस पश्चिम देशों द्वारा लिबिया पर किए हमले पर चिंता जता चुके हैं । दूसरी तरफ अमेरिका, प|mांस और ब्रिटेन हमले को और तेज करने की योजना बना रहे हैं । अरब लीग ने हालांकि लिबिया को नो फ्लाइंग जोन बनाने का र्समर्थन किया है, लेकिन जिस तरीके से सामान्य नागरिक भी हमलों का निशाना बनाया जा रहा है, उससे वे भी खुश नहीं हैं । लिबिया पश्चिम देशों से लंबी लडर्Þाई लडÞने की तैयारी कर रहा है ।
अरब लीग के महासचिव अम्र मूसा ने कहा कि लिबिया में वर्तमान स्थिति चिंताजनक है और अरब देशों ने इस तरह के हमले का र्समर्थन नहीं किया है । पौलैड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने भी साफ कर दिया है कि वे लिबिया में हमलों का र्समर्थन नहीं करते हैं । रुस ने हमले में शामिल तीनों देशों से कहा है कि वे केवल चुने हुए ठिकानों पर ही हमले करें और बेकसूर नागरिकों को निशाना न बनाएँ । जर्मनी ने भी, हालांकि गद्दाफी की निंदा की है, लेकिन लिबिया में सीधे युद्ध में हिस्सा लेने से इंकार किया है । कुल मिलाकर, गद्दाफी के खिलाफ हवाई हमलों में शामिल देशों को ज्यादा र्समर्थन नहीं मिल रहा है । लेकिन हमले जारी है ।
लिबिया को बांटने का षडयंत्र –
हमला करने वाले देशों की नजर लिबिया के तेल भंडारों पर लगी है । लिबिया के अधिकांश तेल ठिकाने बेंगाजी और देश के पर्ूर्वी हिस्से में हैं, जहाँ सत्ता का विरोध करने वाले लडÞाको का कब्जा है । मुअम्मर गद्दाफी ने बेंगाजी पर वापस कब्जा करने के लिए बडÞा हमला किया, लेकिन उसके ठीक बाद पश्चिमी देशों ने लिबिया पर हमला बोल दिया । ब्रिटेन, प|mांस के विशेष लडÞाके दस्ते भी लिबिया में हैं, और हवाई हमलों के साथ, जमीनी युद्ध भी छेडÞे जाने की पूरी आशंका है ।
पश्चिमी देशों की नजर लिबिया के पर्ूर्वी हिस्से के तेल भंडारों पर है । फिलहाल इन देशों का उद्देश्य बेंगाजी सहित तेल भंडारों पर जनता का कब्जा रखना है, जिससे गद्दाफी कमजोर हो सके । यदि इन तेल भंडारों पर अमेरिका र्समर्थकों का कब्जा रहेगा तो वहर् इरान ओर सीरिया जैसे अमेरिका विरोधी तेल उत्पादक देशों की धमकियों की चिंता नहीं करेगा । माना जाता है कि अमेरिका का लक्ष्य, लिबिया को बांटना है- ताकि तेल उत्पादक क्षेत्रों पर उसके र्समर्थक काबिज हो सकें । यमन, ओमान, बहरीन और साऊदी अरब में भी पर््रदर्शन हो रहे हैं और बेकसूर नागरिक मारे जा रहे हैं, लेकिन उस तरफ से अमेरिका ने आँखें मूंद ली हैं । क्योंकि यहाँ दोनों पक्ष अमेरिका के प्रभाव में हैं ।
एशिया पर असर
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लिबिया पर नो फ्लाइंग जोन लागू करने के मुद्दे पर हुए मतदान के दौरान अनुपस्थित रहा । इससे भारत ने लिबिया से अपने संबंध कायम रखे हैं । लेकिन लिबिया में गद्दाफी के खिलाफ चल रहे आंदोलन के बाद, तेल के दाम बढÞ गए हैं । एशिया और भारत में तेल के दाम १०० डलर -४५००रुपये) प्रति बैरल हो गए हैं । भारत में मुद्रास्पिmति में बढÞोतरी होने की आशंका है । चीन ने भी लिबिया के मामले पर भारत जैसी नीति अपनाते हुए पश्चिमी देशों द्वारा लिबिया पर किए हमले के खिलाफ चेताया है । mmm
