सरकार की नीति देश को विखण्डन की राह पर धकेल रही है
मनोज बनैता, लहान ।मधेश आज से नहीं करीबन २५० वर्ष से शोषित है । जब से मधेस के भू भाग को नेपाल ने अतिक्रमण किया है । उसी समय से मधेशियों को दासत्व की जंजीराें में खस लोगों ने जकड़ कर रखा है । मधेसियों की राष्ट्रीयता के ऊपर बार–बार प्रश्नचिन्ह लगाया जाता रहा है । यहाँ तक कि संंवैधानिक निकाय मे रह रहे व्यक्ति भी इस पुर्वागह से मुक्त नहीं हो पाए हैं । समय समय में सत्ता परिवर्तन और शासक परिवर्तन होता रहता है, मगर उन सभी का मधेश प्रति का मनोविज्ञान वही रहता है ।
वर्तमान को अगर देखा जाए तो ऐसा लगता है नेपाली सत्ता मधेसी को एक इनसान के रूप में भी नहीं देख रहे हैं । जारी आंदोलन में राज्य
यहाँ के मानवाधिकार के ठेकेदार भी मधेश के सवाल में मौन दिखाई पड़ते हैं । मधेश आन्दोलन को कमजोर करने के लिए नेपाल सरकार विभिन्न सरकारी तथा गैर सरकारी संघ–संस्था के मार्फत विभिन्न तथ्यांक में मधेशी, आदिवासी, दलित, थारु, मुस्लिम, जनजाति कह के अलग अलग प्रतिवेदन दिखाने का काम किया गया है । अधिकांश मधेशी युवा मधेश आजाद के सोच में हैं । अगर मधेश आजाद नहीं होता है, तो अगले कुछ दशकों में मधेश में जातीय हिंसा और लाखों लाख मधेशियों की हत्या होने की सम्भावना है । इसकी झलक विगत ४ महीने से मिल रही है । आंदोलन में स्पष्ट दिखाई दे रही है । पहाड़ी लोग सजग होकर हाथ हथियार से सुसज्जित हो गए है । प्रहरियों का दमन चरम सीमा पर है । वे घरों में घुसकर सीधे गोली ठोकने लगे हंै । इसलिए शांतिपूर्ण तरीके से जितनी जल्दी हो मधेश को सम्बोधत करने पर ही हत्या हिंसा का क्रम रुक सकता है, अन्यथा नरसंहार सुनिश्चित है ।
४ महिनों तक आन्दोलन करना कोई छोटी बात नहीं हैं, पर सवाल यह है कि इतना करने के बाद अगर आंदोलन असफल होता है, मांग पूरी नहीं होती है तो मधेशियों की स्थिति क्या होगी ? नेपाल में मधेशी विद्यार्थियों का भविष्य क्या होगा ? क्या पहाड़ी लोग मधेशियों को शंकारहित नजर से देख पाएंगे ? क्योंकि नेपाली शासकों के लिए यह एक मिशाल बन जाएगी, कि ४ महिना आंदोलन करने पर, नाकेबंदी करने पर, पूरा अंतरराष्ट्रीय समर्थन मधेशी के पास होने पर भी मधेशीयों ने पहाडि़यों का बाल भी बांका ना कर सका । आज ४ महीने बीत गये मधेश आन्दोलन को । नेपाली राज्य इस आन्दोलन को मानने को तैयार नहीं है । जितनी देर राज्य क ीओर से हो रही है उतना ही आक्रोश मधेश की युवाओं में बढ़ता जा रहा है । सरकार की गलत नीति की वजह से देश में विखण्डन की सम्भावना और सोच जड़ पकड़ती जा रही है । देश को इस स्थिति में पहुँचाने में सत्ता का बहुत बड़ा हाथ है । ऐसा न हो कि कल उनके हाथों से सब निकल जाय ।