तुम राष्ट्रीयता की बात करते हो ? राष्ट्रीयता तो मधेशियोँ के रग रग में है : दिलिपकुमार यादव
“शर्म कर ओ मेरे मंजील के हम सफर, बन्द कर झूठी राष्ट्रीयता का ये सफर ”
दिलिप कुमार यादव । २९,कपिलवस्तु |
किसी भी परिवार की एक सोच होती है और वह सोच होती है कि यह घर हमारा है इस घर के सदस्य हमारे है । हमारे घर में कोई किसी भी तरीके से चिन्तित ना रहे उसे कोई समस्या ना आए । घर के सभी सदस्यों का घर में बराबर अधिकार है । इन सभी जिम्मेदारियों को घर का अभिभावक पूरा करता है । परन्तु जब घर में ही घर के सदस्यों को अगर बोलने का अधिकार नहीं मिलता, स्वतन्त्रता का अधिकार नहीं मिलता, घर में ही बेगानों की तरह व्यवहार किया जाता है तभी असन्तोष का जन्म होता है और यहीं से अधिकार प्राप्ति की लड़ाई की शुरुआत होती है । बस ऐसी ही हालात इस देश की है । जब संविधान बनने की बात सामने आई तब देश का हर नागरिक खुश था । किन्तु जब देश के एक हिस्से ने संविधान के मसौदे के आने से पहले ही यह देखा कि उन्हें अधिकार से वंचित किया जा रहा है तो विरोध की शुरुआत हुई । जगह जगह प्रदर्शन हुए, लड़ाई हुई, झड़प हुई और प्रशासन की तरफ से पूरी दमन भी हुई । खसवादियों ने राष्ट्रवाद की दुहाई दी और पूरी जोर जबरदस्ती के साथ संविधान को लागू किया । जो पूरी तरह से खस समुदाय का संविधान है ना कि मधेशी, आदिवासी, जनजाति, मुस्लिम का । जो अधिकार प्राप्त थे उसका भी हनन हुआ । और तब शुरु हुआ मधेश आन्दोलन का नया चरण उसके साथ ही शुरु हुई सत्ता की खूनी साजिश और बन्दूक के दम पर आवाज दबाने की कोशिश । कितने मधेशियों के खून को बहाने के बाद भी न तो सरकार शांत हुई है और न ही शांत हुआ है मधेशियों का जोश ।
अपने ही लोगों को बिहारी, यूूपी वाला भारतीय कहने वाली सरकार राष्ट्रवादी है, अपने ही परिवार को अधिकार ना देने वाली सरकार राष्ट्रवादी है । घर–घर में घुसकर प्रशासन से दमन करवाने वाली सरकार राष्ट्रवादी है । ऐसी हालत में राष्ट्रवाद का नारा लगाकर चलने वाली सरकार कबतक राष्ट्रवादी बनी रहेगी यह देखना है । अखिर में मीडिया कब तक नौकर बन कर बैठी रहेगी । मीडिया के जरिये राष्ट्रवादी बनने की विचारधारा को छोड़कर असली राष्ट्रवाद पर आओ । यहाँ जान की आहुति देनेवालों को बचाओ तब बनोगे राष्ट्रवादी वरना बेकार है राष्ट्रवादी का नारा । अब ऐसी दमन कब तक करवाओगे । ये कोई चुहे बिल्ली का खेल नहीं है । वार्ता की नौटंङ्की बन्द करो सकारात्मक वार्ता करो देश को निकासा दो । अभी तो बार्ता भी सम्भव है । ये आन्दोलन आपके दमन से रुकने वाला नहीं है । नेपाल के ५० प्रतिशत से अधिक आबादी वाले जब तक अपना अधिकार नहीं ले लेगें अब तबतक वो चुप बैठने वाले नहीं हैं । अधिकार देने में क्या लगा है । अपनी सोच को बदलो ये आन्दोलन किसी व्याक्ति विशेष का आन्दोलन नहीं है । ना इस आन्दोलन में भाड़े के आन्दोलनकारी हैं । अपने अधिकार के लिए अभी तो ५५ ने ही आहुति दी है । कहीं ऐसा ना हो जो कि अब मधेश अलग देश ही माँगने पर मजबूर हो जाए । और राष्ट्रीयता की बात तुम क्या जानो मधेश की भूमि पर यहाँ के मधेशी सीमा में राष्ट्रीयता दिखा रहे हं । तुम राष्ट्रीयता की बात करते हो ? देश बेचनेवालों तुम राष्ट्रीयता की बात करते हो ? राष्ट्रीयता तो मधेशियोँ में है जो की अपनी मातृभुमि की रक्षा कर रहे हैं । अब रही बात नाकाबन्दी की जो आपकी नजर में भारत का अघोषित नाकाबन्दी दिख रहा है । अपनी आखों के चश्मे को बदल के देखो कौन किया है नाकाबन्दी, नाका बन्द कौन कर रहा है अवरुद्ध और जिसे आप नाकाबन्दी कहते है वो नाकाबन्दी नहीं अवरोध है । नाकाबन्दी का मतलब ढूँढ लो कि नाकाबन्दी किसे कहते है् और अवरोध किसे कहते हैं ? ये नाकाबन्दी नहीं मधेशियाें ने अपना अधिकार पाने के लिए असहयोग अन्दोलन तथा सीमा अवरोध किया है । और आपका प्रशासन जो कि मधेशी जनता को अपनी मानती ही नहीं है, चेहरा देख के गोली चलाती है उसी प्रशासन के खसवादी तुम्हारे कहने पे मधेशियाें को मारते हैं और तुम्हारे ही कहने पर तस्करी भी करवाते हैं । चोरी करना आपने सिखाया है मधेशियाें को जो कि तस्करी करा रहे हैं । वही चोर जब आपको चोर कहता है तो गोली चलवाते हो । “शर्म कर ओ मेरे मंजील के हम सफर, बन्द कर झूठी राष्ट्रीयता का ये सफर ”
