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सरकार मधेशियों ने नहीं चलाया, सरकार ने मधेशियों को चलाया : कैलाश महतो

कैलाश महतो, परासी , १७ जनवरी |
श्रोत के अनुसार नेपाल सरकार और उसके सुरक्षा कवच माने जाने बाले राष्ट्रिय सुरक्षा परिषद् की बैठक में अगर किसी विषय की चर्चा होती है तो वह है स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन तथा उसके मुखिया डा.सि.केराउत की । नेपाली सरकार, उसके सुरक्षा निकायें तथा आम नेपाली लोग इतने परेशान है कि स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन के नेतृत्व में कोई कार्यक्रम होता है तो नेपाली सरकार अपनी सारी दैनिकी को छोडकर उस कार्यक्रम को असफल करने में सारी शतिm लगा देती है, किसी कार्यक्रम के सिलसिले में अगर डा.राउत निकलने की बात हो तो नेपालियों की सरकार को ऐसा लगता है जैसे जंगल से कोई शेर निकल आया हो जिसे कब्जे में लेने के लिए सैकडों हजारों सुरक्षा फौजों को तैनात कर दी जाती है, और जब डा.राउत नेपाली राज्य के आतंकों को पर्दाफास करने और मधेश देश को आजाद होने की बात पोष्ट करते है या बोलते हैं तो उनके बयान और पोष्ट पर नेपाली लोगों की इतने गालियाँ आ जाती है कि उनके वे गालियाँ खुद प्रमाणित करती है कि वे दहशत में जिना शुरु कर चुके हैं । उनके कई प्रतिक्रिया तो ऐसे होते हैं जो यह दाबा करती है कि डा.राउत की बात कपोल कल्पित और असंभव है । मगर उन मित्रों से डा.राउत और उनके सहयोगी निवेदन करना चाहता है कि मधेश देश आज भी मौजुद है । मधेश आज भी स्वतन्त्र और आजाद है । मधेश उस तरह नेपालियों का उपनिवेश बना है जैसे कभी भारत और अमेरिका अगे्रजों का, चीन कभी जापान का,


तोकेलाउ कभी अंग्रेज होते हुए न्यूजिल्याण्ड का, सिंगापुर कभी मलेशिया का, क्याटेलोनियाँ कभी स्पेन का, पूर्वी टिमोर कभी इण्डोनेशिया का उपनिवेश हुआ करता था ।

कुछ बातें ध्यान देने योग्य भी है । डा.राउत की डक्यूमेण्ट्स और पसिद्धी नेपाली राज्य के लिए नासुर बन गया है । जहाँ पर नेपाल सरकार और नेपाली संविधान को मानने बाली पार्टियाँ लाखों करोडों रुपये खर्च करने के बावजुद दश हजार लोगों को इकट्ठा नहीं कर पाती है, वहीं पर डा.राउत के नाम सुनकर एक पैसे खर्च किए बिना हजारों लाखों की संख्या में लोग जमा हो जाते हैं और उनके बातों को सही मान जाते हैं । यही कारण है कि स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन तथा उसके नेता समर्थक लोग शान्तिपूर्ण मार्गका उच्चतम आधारों को अपना मापदण्ड मानकर लोकतान्त्रिक तरीकों से सभा, सम्मेलन, छलफल, अन्तरक्रिया तथा स्वयं सेवक निर्माण कार्यक्रम भी करते हैं तो नेपाली प्रशासन वहाँ बितण्डा मचाने चली जाती है । उसके मीडिया बाले न जाने कहाँ से वहाँ पर हथियार देख लेते हैं और वो भी भारत से खरीदा हुआ । ऐसा लगता है जैसे नेपाली सरकार, उसके प्रशासन तथा उसके मीडिया बालों को भारत फोबिया नाम का रोग लग गया हो ।

CK Raut
डा.सी.के. राउत

वैसे ही डा.राउत जब बाहर निकलते हैं तो नेपाल का ऐसा लगता है मानो वहाँ तूफान आ गया हो । नेपाली सरकार हकलाने लगती है । उसके प्रशासन यन्त्र और समाज दोनों में हलचल मच जाती है और यह निष्कर्ष निकाल लेते हंै कि अब वे उस किनार को पकडे, जहाँ से तूफान आया हो । और यह विज्ञान के खिलाफ है । नेपाली लोग समझते ही नहीं है कि तूफान को बाधा डालने बाले शातिmयों को कोई किनारा नहीं मिलता । वह मिट जाता है । क्यूँकि तूफान तो तूफान ही होता है । वो किसी के वस में थोडे ही रहता है । कभी कभी उसका रास्ता बदल जाता है । मगर वो रुकता नहीं है, क्यूँकि वह अवश्यम्भावी है ।

नेपाली कुछ पूतिक्रियावादी लोगों का मानना है कि डा.राउत पागल है । स्वतन्त्र मधेश देश उनका सिर्फ कल्पना है । यह असंभव है । जर्ज वासिंगटन तथा गाँधी को भी अंग्रेजों ने पागल ही कहा था । उनके सपने को भी उन्होंने असंभव ही कहा था । मार्टिन लुथर किंग तथा अब्राहम लिंकन को भी गोरों ने पागल और उनके अभियानों को असंभव ही कहा था । मण्डेला और ली क्वान यू को भी वही संज्ञा दी गयी थी । बुद्ध को भी लोगों ने पागल और अबारा ही कहा था । मगर बुद्ध भगवान हो गये । लोगों तथा औपनिवेशिक शासकों के लाञ्छना न किसी बुद्ध और गाँधी को छोडा, न किसी मण्डेला और ली क्वान यू को छोडा, न किसी मार्टिन लुथर किंग या सन यात्सेन को ही रोक पाये और देखते ही देखते उनके राष्ट्र«, राष्ट्रियता और वे स्वयं भी मुक्त हो गये ।

जहाँतक डा.राउत की बात है, हमें नहीं लगता कि वे सफलता या असफलता की बात करते हैं । सफलता या असफलता अब डा.राउत के लिए कोई मायने नहीं रखता । क्यूँकि व्यतिmगत रुप से वे पूर्ण सफल हैं । और एक सफल आदमी ही अपने राष्ट्र और राष्ट्रवासिंयों की सफलता की कामना करता है । जो अपने जिन्दगी में कभी हार को नहीं स्वीकारा, उसे असफलता की कहानी कोई सुनाये तो वह हास्यास्पद ही होगी । अब तो गुलाम हम मधशियों को तय करना है कि हम गुलाम होने में ही अपनी सफलता मानते हैं या गुलामी के छाती पर सबार होना ।

बी.बी.सी नेपाली न्यूज खबर २०७२ पुष ३० गते रात्री के ८ः४५ बजे को माने तो नेपाल सरकार के एक प्रमुख मन्त्री अग्नि खरेल का कहना है कि मधेशी मोर्चा के अनुसार का सीमांकन असम्भव है । मधेशी मोर्चा अगर सहमत नहीं होती है तो माघ ५ गते से नेपाली संसद अपने ढंग से संसद में दर्ता रहे संसोधन विधेयक को आगे बढायेगी । अब मधेशी मोर्चा तथा उसके नेतृत्व को सोंचना अनिवार्य होगा कि नेपाली खस दल तथा उनके नेतृत्व मधेशी मोर्चा को कुछ देने नहीं, अपितु अपने ही अडान पर वे मोर्चा का सहमति चाहते हैं । और वह अब ज्यादा संभव है । क्यूँकि मोर्चा के नेताओं ने अलगाव चाहने बालों का मुँह बन्द करने के लिए नेपाल सरकार तथा नेपाली पार्टियों को यह करना होगा, वह करना होगा…कहकर एक तरफ नेपाली राज्य और उसके नश्ल को मजबूत करने का काम किया है तो दुसरी तरफ मोर्चा का विश्वास मधेशी जनता में घटाने का भी काम किया है । उसी के परिणाम स्वरुप पश्चिम मधेश का मधेश बन्दी कुछ दिन पहले पूर्ण रुप से टुट चका था तो अब पूर्वी मधेश के वीरगञ्ज जैसे सशतm नाका भी खुलने की खबर है । मधेशी मोर्चा पर भरोसा नहीं होने के कारण ही मधेश बन्द के समय भी अन्य मधेशियों के साथ मोर्चा के नेता एवं उनके परिवार के सदस्य तकों ने तस्करी करके राज्यको पाला है ।

अगर नेपाली राज्य मोर्चा के अनुसार ही सिमांकन कर दे तो क्या कल्ह के मधेश और मधेशी सुरक्षित रह सकेंगे ? क्या टिकापुर, बेथरी, बेलहिया, भैरहवा, नेपालगञ्ज, जलेश्वर, फुलजोर, नवलपुर, इटहरी आदि जैसे घटना और नेपाली आक्रमण को रोक पाने की कोई आधार है ? नहीं । क्यूँकि मधेश के ही कंचनपुर, कैलाली, बर्दिया, दांग, कोहलपुर, बुटवल, नारायणघाट, भरतपुर, बर्दिबास, इटहरी, झापा, आदि जैसे जगहों में आज मधेशी सुरक्षित नहीं है । जहाँ मधेशी बाहुल्य क्षेत्र बाँकी है, वहाँ के सारे प्रशासनिक इकाई, भंसार, राजस्व, आर्थिक क्षेत्र, व्यापार, मीडिया, शिक्षा आदि सम्पूर्ण क्षेत्र खस आर्य नेपालियों के पकड में है । दिन प्रतिदिन उसकी संख्या में इजाफा होता जा रहा है और मधेशियों का शिक्षा, व्यापार, भूमि, आय, रोजगारी और राजनीति सब के सब कमजोर होता जा रहा है । मोर्चा इन सबकी ग्यारेण्टी कैसे करेगी ?

मधेश का राजनीति भी दिन व दिन कमजोर होते जा रहे इस परिस्थिति में मधेशियों की मत की सुरक्षा का भी संकट बन गया है । मधेशी मोर्चा अगर सरकार में सामेल होने को ही अपनी सफलता और अधिकार मानती है तो यह मधेश के लिए अब मान्य नहीं हो सकता । क्यूँकि सरकार में जाने से अधिकार मिलता तो विगत के मन्त्रीमण्डल में ५५ प्रतिशत के करीब में मधेशी लोग रहे । राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उप–प्रधानमन्त्री, गृह तथा रक्षामन्त्री लगायत के महत्वपूर्ण मन्त्रालयों के मुखिया रहे मधेशियों ने सरकार में सामेल होने तथा सत्ता भोगने के अलावा मधेश और मधेशियों के लिए कौन सा तीर मार दिए ? सत्ता में रहना और सरकार चलाना दो अलग अलग बातें हैं । मधेशियों ने सरकार नहीं चला पाया, सरकार ने मधेशियों को चला चलाकर गद्यार तथा मधेशद्रोही बना दिया ।

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद पर रहकर भी गुलाम रहे । बेचारे रोते रहे, मगर पदों से चिपके रहे । नेपालियों ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को समावेशी तक बनाने की जरुरी नहीं समझा । पद से हटने के बाद रहने के लिए घरतक का भाडा देने की उचित व्यवस्था करना राज्य ने मुनासिव नहीं समझा है ।
समय रहते ही मधेशी मोर्चा गंभीर बनें । अपनी ही देश की पूनस्र्थापना करें । मधेश देश के आजादी में भाग लें । सारा देश और सम्पूर्ण अथोरिटी अपने हाथों में लें, मधेश और मधेशी का कल्याण करें ।



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