पिलखन का पेड़ : पूनम पंडित
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गाँव के मेरे घेर में ,
पिलखन का था पेड़ पुराना i
मेरे परदादा ने लगाया था ,
मेरे दादा ने सींचा था ,
वो परिंदों का बसेरा था
नीचे गाय – भैंस का डेरा था i
हम सब खेला करते थे ,
शीतल छाया पाते थे ,
नित पंछी चहचहाते थे
सभी देख हर्षाते थे i ”
नई पीढ़ी जो आ गई,
विचारों में भिन्नता आ गई i
” गाँव घेर बिसरा दिए ,
पेड़ – रुख भुला दिए ,
देखा अब एक दौर नया
समय पुराना बीत गया i
”विकार मनों में आया जो ,
पेड़ अब ना भाता वो i ”
कोई कहे कोटर में साँप है ,
इसका घर में होना पाप है ,
परिंदे गंदगी फैलाते हैं
अब ना हमको ये भाते हैं i ”
खामियाँ बहुत गिना डाली ,
पेड़ काटने की योजना बना डाली i ”
और फिर एक दिन —
वह दरख्त काटा जाने लगा ,
छोटा सा बच्चा वह सब मंजर देख रहा ,
उसका कोमल मन काँप गया
विकट स्थिति को वह भाँप गया i
दौड़ कर अपने घर आया ,
दादी माँ से लिपट वो बोला ‘
गंदे लोगों से पेड़ बचालो
वह रो रहा , उसे सम्भालो ‘
” सच ही तो कहा बच्चे ने , वृक्ष में भी तो जीवन होता है i
जब उसको कष्ट पहुचाते हैं तो वह भी तो रोता है i ”
बच्चे की सुन करुण पुकार
दौड़े सब पेड़ की ओर,
हो चुकी , तब तक बहुत देर
विशाल दरख़्त हो चुका था ढेर i
उसी वक्त बच्चे ने लिया एक संकल्प ,
उसी जगह पर रोपा एक नव कल्प i
” भविष्य में फिर होगा सृजन
इसी पेड़ के नीचे बीतेगा फिर बचपन
वही होगी छाँव ,परिंदों का बसेरा छायेंगी खुशियाँ , होगा नया सवेरा i ” ….पूनम पंडित
५७ विकास एन्क्लेव
रोहटा रोड ( मेरठ ) उ प्र