पिता
कहते हैं हमारे वज़ूद को इस धरती पर लाने वाली होती हैं माँ जो नौ महीने एक अंश के रूप में हमें अपनी कोख में सहेजती अपने खून से हमें सींच कर इस ज़मी पर उतारती है ।परंतु हम यह भूल जाते हैं कि हमारे व्यक्तित्व को ज़मी पर आने के बाद जो शख्स निखारता है वो होते हैं पिता आज मैं उन्ही को नमन करती हूँ । और अपनी यह कविता पिता को समर्पित करती हूँ ।
हमारे सम्पूर्ण अस्तित्व की वो नीव जिस पर हमारा वज़ूद टिका होता है …..
एक विशाल काय वृक्ष रूपी परिवार को जड़ रूपी ताकत से विकसित कर उसकी शाखाओं को हरा भरा कर फलीभूत करता है
पिता …..
जो पुरे परिवार की खुशियो को पूरा करने के लिए कभी खुद के बारे में नहीं सोचता …….
कोई भी शब्द पिता के सम्मान में पूर्ण नहीं हो सकते प्यार का एक एक विशाल सागर हैं पिता
” आप की छाँव ने
हर दुःख से ढक कर हमें
एक शीतलता का एहसास दिया
जो खुवाहिशे हमने मन में भी की
आप ने उन्हें साक्षात किया
पल भर के लिए भी जिंदगी में
किसी कमी का नहीं एहसास दिया
बन कर एक ढाल आपने पुरे परिवार को
आत्मसात किया …………..!!