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पाकिस्तान से करीबी नेपाल के लिए घातक सिद्ध हो सकती है : श्वेता दीप्ति

क्या नेपाल आगामी समिट का बहिष्कार करेगा ?
इधर भारत ने इस्लामाबाद सार्क समिट को हेड कर रहे नेपाल को भी अपने फैसले के बारे में बता दिया है। इसमें कहा गया है कि उड़ी हमले के बाद बने हालात को देखते हुए भारत समिट में शामिल नहीं हो सकता है।सीमा पार से आतंकवादी हमले किए जा रहे हैं और सार्क सदस्य देशों के अंदरूनी मामलों में दखल दिया जा रहा है। यह काम इस रीजन के एक देश की ओर से हो रहा है। इस देश ने ऐसा माहौल बना दिया है कि समिट सफल नहीं हो सकती है।
श्वेता दीप्ति , काठमांडू , २८ सितम्बर | 
आज जहाँ विश्व का हर देश आतंकवाद के मसले पर एक होता नजर आ रहा है वहीं नेपाल अपनी खामोशी को लेकर कई चिंता को जन्म दे रहा है । उडी हमला भले ही भारत में हुआ लेकिन उससे बेखबर रहकर नेपाल चिन्ता से मुक्त नहीं हो सकता । देखा जाय तो नेपाल की धरती कहीं ज्यादा संवेदनशील है इस मसले पर । पाकिस्तान से करीबी नेपाल के लिए घातक सिद्ध हो सकती है क्योंकि सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से नेपाल सबल नहीं है और बहुत ही सहज तरीके से यहाँ की धरती आतंकवादी उपयोग कर सकते हैं । तराई क्षेत्र में जिस तरह से मदरसे बन रहे हैं और वहाँ मजहबी शिक्षा की आड़ में जो कैम्प चलाया जा रहा है, उस पर सरकार की ओर से कोई चौकसी नजर नहीं आ रही है । इसी भाँति ईसाई धर्म के बढते प्रभाव को भी सरकार नहीं रोक पा रही है । ये बातें एक राष्ट्र के हित में कभी भी नहीं हो सकती । विश्व का हर देश आतंकवाद के मसले पर एक होकर लड़ना चाहता है ऐसे में नेपाल को तय करना होगा कि वो अन्य देशों की भाँति आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होना चाहता है या इस मसले से स्वयं को अलग रखना चाहता है । आगामी सार्क सम्मेलन में नेपाल हेड की भूमिका में है ऐसे में नेपाल को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी ही होगी । पाकिस्तान और भारत की तल्खी के बीच चीन ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वो भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ नहीं देगा ।
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उडी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को घेरने की पूरी कोशिश शुरु कर दी है और इसमें भारतीय प्रधानमंत्री मोदी सफल होते हुए नजर आ रहे हैं । इसी नीति के तहत २९ सितंबर को नरेंद्र मोदी पाक को मोस्ट फेवर्ड नेशन एमएफएन का स्टेटस दिए जाने का रिव्यू करेंगे। इसमें फॉरेन और कॉमर्स डिपार्टमेंट के अफसर हिस्सा लेंगे।
१९९६ में भारत ने पाक को  एमएफएन का दर्जा दिया था। हालांकि, पाकिस्तान ने कई बार वादे करने के बाद भी भारत को अब तक एमएफएन दर्जा नहीं दिया है।
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशनऔर इंटरनेशनल ट्रेड नियमों के तहत एक देश दूसरे देश को यह स्टेट्स देता है।
इस स्टेट्स के मिलने के बाद कोई भी देश एमएफएन स्टेटस देने वाले देश की तरफ से आश्वस्त रहता है कि वह उसे व्यापार में नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
२०१५, १६ में भारत का कुल व्यापार ६४१ बिलियन डॉलर का रहा था। इसमें पाकिस्तान के साथ महज २.६७ बिलियन डॉलर का बिजनेस हुआ।
भारत ने पाकिस्तान को २.१७ बिलियन डॉलर कुल एक्सपोर्ट का (कुल एक्सपोर्ट का 0.83%) का एक्सपोर्ट किया, जबकि पाकिस्तान से भारत को ५० करोड़ डॉलर का इम्पोर्ट (कुल का 0.13%) किया गया। यानी पाक के साथ इम्पोर्ट एक्सपोर्ट 1%  से भी कम रहा।
एसोचैम के जनरल सेक्रेटरी डीएस रावत के मुताबिक, पाकिस्तान के साथ भारत का जिस तरह व्यापार है, उसके आधार पर पाक को  MFN दिया जाए या नहीं यह विचार किया जाएगा । किन्तु कारोबार को देखते हुए यह तय है कि  इसका बाइलेटरल ट्रेड पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
 उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान की दुनियाभर में आलोचना की जा रही है। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कहा है कि पाक, भारत की स्ट्रैटजिक पॉलिसी को लेकर उसका लंबे समय तक सब्र का इम्तहान नहीं ले सकता। अगर इस्लामाबाद, नरेंद्र मोदी का सहयोग करने का ऑफर ठुकराता है तो वह एक अछूत देश की तरह अलग थलग पड़ जाएगा। ये भी लिखा कि नरेंद्र मोदी अभी संयम रखे हुए हैं लेकिन ये हमेशा नहीं रह सकता। इधर भारत ने इस्लामाबाद सार्क समिट को हेड कर रहे नेपाल को भी अपने फैसले के बारे में बता दिया है। इसमें कहा गया है कि उड़ी हमले के बाद बने हालात को देखते हुए भारत समिट में शामिल नहीं हो सकता है।सीमा पार से आतंकवादी हमले किए जा रहे हैं और सार्क सदस्य देशों के अंदरूनी मामलों में दखल दिया जा रहा है। यह काम इस रीजन के एक देश की ओर से हो रहा है। इस देश ने ऐसा माहौल बना दिया है कि समिट सफल नहीं हो सकती है।
भारत रीजनल को ऑपरेशन और कनेक्टिविटी के अपने वादे पर हमेशा भरोसा रखता है, लेकिन इन मामलों में तभी आगे बढ़ सकते हैं, जब आतंक से फ्री माहौल हो।
उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान को अलग थलग करने की पॉलिसी कामयाब होती दिख रही है। कम से कम पांच तरीकों से मोदी सरकार ने पड़ोसी देश को घेर लिया है। इस बार सार्क समिट नवंबर में इस्लामाबाद में होनी वाली है। मोदी इसमें नहीं जाएंगे। इस रीजन में आतंकवाद बढ़ने की बात कर भूटान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश ने भी नहीं जाने का फैसला लिया है। इससे पाक पर दबाव बना है। पर नेपाल ने अब तक कोई वक्तव्य जारी नहीं किया है हाँ समिट का वेन्यू बदलने की मांग जरुर की है।
फॉरेन मिनिस्ट्री के स्पोक्सपर्सन विकास स्वरूप ने मंगलवार की रात भारत सरकार के इस फैसले के बारे में जानकारी दी और कहा कि  पाकिस्तान ने ऐसा माहौल बना दिया है कि समिट सफल नहीं हो सकती है। भारत रीजनल कोऑपरेशन और कनेक्टिविटी के अपने वादे पर हमेशा भरोसा रखता है, लेकिन इन मामलों में तभी आगे बढ़ सकते हैं, जब आतंक से फ्री माहौल हो।
वैसे सार्क के नियमों के अनुसार अगर एक भी सदस्य देश समिट का बहिष्कार करता है तो  समिट कैंसिल मानी जाती है ।
उड़ी में आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान को आतंकी देश करार देने के लिए अमेरिका में रहने वाले भारतीयों ने भी मुहिम छेड़ दी है। इन लोगों ने एक पिटीशन कैम्पेन शुरू किया है, जिसमें १ लाख सिग्नेचर करवाने का टारगेट है। ये ऑनलाइन पिटीशन २० सितंबर से शुरू की गई है।
इसमें कहा गया है कि अमेरिका और भारत समेत दुनिया के कई देश पाक की आतंकी गतिविधियों से प्रभावित हैं। पिटीशन में कम से कम एक लाख सिग्नेचर लिए जाने हैं। इसके बाद ही ओबामा एडमिनिस्ट्रेशन इस पर विचार करेगा।
हाल ही में रिपब्लिकन सांसद टेड पो भी अमेरिकी पार्लियामेंट में पाक को आतंकी देश करार देने के लिए बिल ला चुके हैं।
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में रिपब्लिकन सांसद टेड पो ने एक अन्य सांसद डाना रोहराबेकर के साथ पाकिस्तान स्टेट स्पॉन्सर ऑफ टेररिज्म डेजिग्नेशन एक्ट (HR 6069)’ पेश किया।
पो हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में टेररिज्म पर बनी सब कमेटी के चेयरमैन भी हैं।
पो के मुताबिक, अब वक्त आ गया है कि हम पाकिस्तान को उसकी दुश्मनी निकालने के लिए पैसा देना बंद कर दें। उसे वह घोषित कर देना चाहिए जो वो है।
पो ने ये भी कहा, पाकिस्तान एक ऐसा सहयोगी है, जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। वह कई सालों से अमेरिका के दुश्मनों को मदद दे रहा है।
इस स्थिति में नेपाल सरकार की कूटनीति पर नजर है और देखना है कि सरकार किस नीति  के तहत आगे बढती है ।



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