Fri. Mar 29th, 2024
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विजेता चौधरी, अगहन १४ । सोमबार को अल्टिमेटम पूरा होने के बाद भी सरकार की तरफ से संविधान संशोधन प्रस्ताव दर्ता न होने पर गठबन्धन व मोर्चा ने तीब्र असंतुष्टि व्यक्त की । यहां तक की भीषण युद्ध व आन्दोलन की चेतावनी भी दे दी । एक बार फिर से सवाल यह उठता है, क्या ये चेतावनियां कारगर सिद्ध हो रही है ? क्या मधेशी नेता फिर से सियासी मोहरे बन कर तो नहीं रह गए ?
इधर सरकार द्वारा तैयार किया गया संशोधन प्रस्ताव को दर्ता से पहले ही समर्थन करने की शर्त रखकर सरकार आगे बढ रही है । सरकार फिर से चित्त भी अपनी और पट भी अपनी की रणनीति के साथ मैदान में उतरी है । यद्यपि, सरकार द्वारा तैयार किया गया प्रस्ताव का मसौदा मोर्चा लगायत के नताओं ने समर्थन करने से इनकार कर दिया है ।
गठबन्धन के संयोजक उपेन्द्र यादव ने बिना मसौदा देखे तथा संसद में दर्ता होने से पहले प्रस्ताव को समर्थन न करने का अडान एक तरफ लिया है । वहीं दूसरी तरफ तराई–मधेश लोकतान्त्रिक पार्टी के अध्यक्ष महन्थ ठाकुर ने कडा टिप्पणी करते हुए एक हाथ में बन्दुक व दूसरी हाथ में संशोधन प्रस्ताव लाना चाहें तो वे कदापि मान्य न होने की अडन ले रहें हैं ।
सरकार द्वारा बनाया गया समौदा में किन–किन मांगों को समेटा गया है, इस विषय में मोर्चा लगायत के नेता अनभिज्ञ हंै । विडम्बना तो यह है कि मोर्चा के पास अब सीमित विकल्प रह गया है । अब मोर्चा या तो अपनी मागों के साथ पुनः आन्दोलन कर सरकार पर दबाब सिर्जना करें ।
अब सवाल यह उठता है कि क्या मोर्चा व गठबन्धन इस बार भी सरकार के झाँसे में आ जाएगें । क्या फिर से आन्दोलन की परिस्थिति सीर्जना होगी ? क्या सरकार इस मुद्दे पर लचकता अपनाते हुए मोर्चा के साथ मसौदा के ऊपर सल्लाह मसविरा कर इस अवस्था को नियन्त्रण कर पाएगी ?



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