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मधेशी गुलाम कैसे नहीं हैं, क्यूँ नहीं है ? ई. श्याम सुन्दर मण्डल

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ई. श्याम सुन्दर मण्डल, भारदह, १७ जनवरी  | (सत्य तथ्य पर एक विश्लेषण) … सन् १८१६ और सन् १८६० में बृटिस साम्राज्य और गोरखाली साम्राज्य के बीच हुए एक सन्धी के तहत मधेश की यह भुमि नेपाली अधिनस्थ हुआ | मधेश की यह भुमि कोई बिजित भूमि नहीं है | बेलायत आज भी साक्ष है | बहूत सारे मधेशी आज भी भ्रम में है कि पहले नेपाल देश गंगा तक फैला हुआ एक विशाल राज्य (नेपालियोंद्वारा प्रचारित “ग्रेटर नेपाल”) हुआ करता था | ईस भ्रम से मुक्त होना बेहद आसान है | चलिए, दो चार प्रश्नों का जबाब मन में ही सोचते हैं और तब विचार करते हैं, “ग्रेटर नेपाल” के वास्तविक रूपके बारे में | ( कथित एकिकरन सम्राट पी. एन. शाह ई.सं. १७४३ में एक छोटा सा राज्य गोरखा के राजगद्दी पर आसिन हुए थे नकि नेपाल के राजा बने थे | क्या उस समय मधेश की यह भूमि गोरखाली राज्य सिमाना में थी ? ० जब १७४३ में पृथ्वी नारायण शाह नेपाल के राजा हुए ही नहीं थे तो हजारों वर्ष पहले मिथिला, कपिलवत्थू पर शासन चला रहे जनक और बुद्ध कैसे नेपाली राष्ट्रिय विभूति बन गए ? क्या यह प्रमाणित नहीं करती की मैथिली, भोजपुरी, अवधी और इससे मिलेजुले भाषा, संस्कृति का विकास करनेवाला नेपाली शासक नहीं खुद हमारी मधेशी शासक ही थे ? ) चूरे पर्वत से दक्षिण गंगातक जो सभ्यता विकसित है :

१. पुरव में उत्तर – दक्षिण मैथिली, मध्य में उत्तर – दक्षिण भोजपुरी और पश्चिम में उत्तर- दक्षिण अवधी भाषा फैली हुई है | यह आज भी अस्तित्व में मौजूद है | क्या भाषा की यह फैलावट प्रमाणित नहीं करती की चूरे पर्वत से गंगा नदी तक फैले भूमिपर नेपालियों का नहीं मधेशियों नें खुद अपना साम्राज्य बनाया हुआ था और उसी वजह से ही मैथिली, भोजपुरी और अवधि भाषा, संस्कृति का विकास संभव हो सका था ?

२. उत्तर – दक्षिण के अलावा पूरव – पश्चिम का सम्बन्ध पर भी गौर करिए : अवध कुमार श्री रामचन्द्र से जनक नन्दनी जानकी की सादी कैसे संभव हो सका था ? अवधि भाषी राम के विवाह मैथिली भाषी सीता से होने का सत्य इस बातको प्रमाणित नहीं करती कि हम भाषिक रूपमें अलग अलग होने के बाबजूद हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक अन्तरघुलन कायम था और आज भी निरन्तर चल रही है ? नेपालियों से क्यों नहीं यह सामाजिक और सांस्कृतिक संबन्ध आज तक बन सका है ? क्या यह तथ्य काफी नहीं है कि मधेश की हमारी यह भूमि कभी नेपाली साम्राज्य के भितर नहीं था ? वास्तव में हम वेलायतियों के कारण ही नेपाली साम्राज्य के गुलाम होनेपर मजबुर हुए हैं | हम पहले अँग्रेजों के गुलाम बनें फिर उनके कारण एक सम्झौते के तहत नेपालियों के गुलाम बना दिए गए | किसी राज्य में अथवा शासन में मानव अस्तित्व रहना ही काफी नहीं होती है | स्वतन्त्रता, समानता, न्याय, मानव अधिकार की रक्षा, प्राकृतिक श्रोत साधन पर समान पहूँच होना भी अनिवार्य रहता है | राष्ट्रबासी होनेके लिए संविधान और कानून ही काफी नहीं होती | मनोवैग्यानिक एकता के साथसाथ राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक समानता भी आवश्यक रहती है | मधेशियों के पास यह आधारभूत चिजें नेपाली साम्राज्य में कलतक भी नहीं था और आज भी नहीं है | हम यहाँ बिलकुल गुलाम हैं | नेपाली उपनिवेश में कैद हैं | स्वतन्त्र मधेश ही हमें आजाद़ बना सकता है, दुसरा कोई विकल्प हमारे पास नहीं है | निचे का तथ्य/प्रश्न हमारी गुलामी का सही प्रमाण है : ( मधेशी अपना अधिकार खुद क्यों नहीं लिख सकता, सदैव नेपालियों से माँगने के चक्कर में मरना ही क्यूँ पड़ता है ? ) जल, जंगल और जमीन के बारे में मधेशी खुद कोई नीति क्यूँ नहीं बना सकता, क्यूँ सदैव नेपालियों द्वारा बनाए गए नीति पर ही चलना पड़ता है ? ( अपनी सुरक्षाके लिए हम अपनी ताकत से नीति क्यों नहीं बना सकते ? क्यों नेपालीदेवारा बनाए गए नीति के तहत गैर मधेशी सेना, पुलिस और प्रशासकद्वारा हमारी सुरक्षा की जाती है ? ° क्यूँ नहीं हम अपने ही नागरिक को नागरिकता दे पाते हैं ? विवाहिता पत्नीको सम्मान एवं समानता के आधार पर नागरिकता सम्बन्धी नियम कानून बना सकते हैं ? )

मधेशी सभ्यता के जनक, सीता और बुद्ध कैसे नेपाली बिभूति हो गए, परंतु उन्हीं के प्रजा मधेशी क्यूँ सदैव धोती, बिहारी जैसे शब्दों से अपमानित होता रहा है ? ( ‘मधेशी, पहाडी़, हिमाली हामी सबै नेपाली’ तो कहा जाता है परंतु मधेश में जहाँ पहाड़ी और हिमाली की बहुलता हो वहाँ नेपालियों के वोट पाने में मधेशी असक्षम क्यों होता रहा है ? ° मधेशी यहाँ कभी खुदका सरकार क्यूँ नहीं बना सकते, क्यों सदैव नेपालियों के सरकार में केवल सामिल भर हो सकते हैं ? प्रधान मंत्री में वोट देने के बदले उपहार में मंत्री पाते हैं, क्यूँ ? ) गोरखाली साम्राज्य के लोग हर जगह नेपाली माने जाते हैं, किन्तु जनक और बुद्ध साम्राज्य के लोग मधेश में भी विदेशी क्यूँ कहलाते रहे हैं ?( दहाल, खनाल, गुरूंग, राई, नेपाल, रिजाल चाहे जहाँ कहीं के भी हो (बरमा, भूटान, भारत आदि) वे सभी नेपाली होते रहे हैं, किन्तु चौधरी, झा, मंडल, यादव, राम, मरिक, पासवान, साह, खान, मैथिल, भोजपुरिया, अवधि आदि सदैव विदेशी क्यों होते रहे हैं ? ) सेना, निजामति, सुरक्षा आदि के लिए मधेशी क्यूँ सदैव असक्षम माने जाते हैं, क्यों मधेशियों पर सदैव अविश्वास लगा रहता है ?( नेपाली भाषा बोलने वाला, गुरूंग/नेवारी बोलनेवाला हर जगह नेपाली है किंतु मैथिली, भोजपुरी, अवधि बोलनेवाला सब बिहारी, क्यूँ ? ) मिथिला सम्राट जनक, उनके पुत्री सीता और कपिलनस्तु कुमार बुद्ध को नेपाली मान लिए गब किन्तु मैथिल, भोजपुरिया, अवधि आजतक भी अंगिकृत क्यूँ है ? इसके अलावा भी अन्य बहूत सारे प्रश्न एवं तथ्य है जो नेपाली साम्राज्य में मधेशियों को गुलाम होने का प्रमाण देता है | (डा. सीके राउतद्वारा लिखित ‘मधेश का इतिहास’ भी देखिए) फेक, गुलाम, खच्चड़ आदि के लिए यह सारे तर्क मिथ्या हो सकती है | बनावटी और बेवुनियाद लग सकती है | किन्तु सत्य तो यही है |

श्यामसुन्दर मंडल
श्यामसुन्दर मंडल

 



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6 thoughts on “मधेशी गुलाम कैसे नहीं हैं, क्यूँ नहीं है ? ई. श्याम सुन्दर मण्डल

  1. कैसे और क्युँ मानुँ, मधेसी गुलाम है ?

    * जल, जंगल और जमिनका उपभोग पर मधेसीको पावन्दी है क्या ? मुझे तो नहि लगता कि जल, जंगल और जमिन से केवल मधेसी हि बञ्चित है । रहि बात नीति बनाने कि तो किसिने घोषित रुपसे मधेसीको नीतिनिर्माता बनने से रोका तो नहि है । उसका भि प्रक्रिया है, जिसे पूरा करने पर मधेसी भि जल, जंगल और जमिन के बारेमे निति बना सकता है ।
    * मधेसी सभ्यता के जनक, सीता और बुद्ध नेपाली बिभुती होना हर मधेसीके लिए गर्व कि बात है । रहि बात उनके प्रजा मधेसीयों को धोती, बिहारी कहना । नेपाली संविधान के किस धारा या उपधारा मे लिखा गया है कि मधेसी बिहारी और धोती है ? अगर लिखा है तो धारा, उपधारा उल्लेख करे । नहि तो कुछ असमाजिक तत्व के कहने भर से मधेसी बिहारी या धोती कैसे हो सकता है ?
    * जहाँ तक चुनावमे हिमाली और पहाडि समुदाय बाहुल्य क्षेत्र से मधेसी उम्मेदवार जितने या न जितने कि बात है । तो, वो मेरे ख्याल से हमारे यहाँ जनता मे फैले जातीय मानसिकता उसका प्रमुख कारण है । जैसे कि यादवको ब्राह्मण वोट नहि देता है, ब्राह्मणको यादव वोट नहि देता है, मंडलको साह वोट नहि देता है, हिन्दुको मुस्लिम वोट नहि देता है । इसलिए दुसरे पर अंगुली उठाने से पहले खुद मधेसी समुदायके अवस्थाको एक बार निश्पक्ष ढंग से मुल्यांकन करे ।
    * संविधान मे तो कहिँ ऐसा प्रावधान नहि है कि नेपाल मे सरकार केवल पहाडी हि बना सकता है, मधेसी नहि । अगर कहिँ उल्लेख हुवा हो तो जरुर कहे ।
    * नेपाल मे रहने बाले चौधरी, झा, मंडल, यादव, राम, मरिक, पासमान, साह, खान, मैथिल, भोजपुरीया, अवधी आदि नेपाली है । अगर इन्हे कोइ विदेशी समझता है तो उसका ये नादानी है । फिर भि हम चाहे तो इसका विकल्प ढुंड सकते है । विकल्प है देशका नाम परिवर्तन । मुझे विश्वास है, अलग देश बनाने का मुहिम छोड्कर यदि हम नाम परिवर्तनका मुहिम चलाएंगे तो निकट भविस्यमे हि हमे सफलता मिल सकता है ।
    * सेना, निजामती, सुरक्षा आदि के लिए मधेसी अयोग्य नहि है । जिसे नेपालके संविधान ने भि स्वीकार किया है । बल्की अब तो क्रमिक रुपसे मधेसीका सहभागिता भि बढते जा रहा है । २०६३ से पहले और अभि २०७३ मे बहुत सुधार हुवा है । आशा करिए २०८३ तक और सुधार होगा ।
    * भाषाके आधार पर विभेद पहले था । लेकिन वर्तमान मे ऐसा कुछ नहि । अगर वाकइ ये राज्य मैथिली, भोजपुरी, अवधी बोल्ने बाले को बिहारी मानता तो उल्लेखित भाषाको राष्ट्र भाषा बनाता हि क्युँ ?
    * ऐसा नहि कि हर मैथिल, भोजपुरिया, अवधीको अंगिकृत माना जा रहा है । अगर वैसा होता तो मेरा नागरिकताका किसिम वंशज कैसे हो गया ? हाँ, नागरिकताके विषय मे कुछ त्रुटि है, जिसे सुधार करने लिए संविधान संशोधन प्रस्ताव नेपाल सरकारद्वारा संसद मे पेश कर दिया गया है । आशा करे कि वे प्रस्ताव पारित हो जाए ।

    फिर भि कैसे मानुँ, मधेसी गुलाम है ?

    1. Thank you Roshan ji for such an factual answer to these silly questions which is creating huge confusion among the people of Madhesh … I being Madhesi never got any problem, neither i was treated out of the blue of Nepal nor i was treated as Indian but many places of madhesh for eg: “BHARDHA” famous place of saptari i encountered with a person in bus station and he was a broker between passenger and bus conducter, he used to take additional money as a ticket fare and then only allow people to go by bus n passenger cannot directly go by bus without ticket from that counter.. Does that make sense? are passenger from other place ?? no… they r frm same place but they do still suffer … … I just want to say that our own madhesi people don’t support each other then how come we can expect support and help from others. so instead of campaigning for this too big issue first of all we need to deal with small issues and make our madhesh pure first then comes other….. I don’t want to indicate any name but the politics of madhesh is running only on the greed, creating same in the people and stay for the same till we die… For eg: there are lots of industries, Hospitals, other government and private sector for job but there is still no fare competition for people to be hired in that… Can we say that Madheshi people are fare enough in terms of opportunity and equality for all madhesi? No….. never this is not because we didn’t got opportunity to implement and make this fare for our people but people who was elected, they also do same n think only for their relatives……. their relatives are not only who choose them but all the majority people choose them and want to bring justice for people of Madhesh…..i am sorry if this comment hurt anybody’s sentiments….. This is my point of view…. n Different people have different opinion on particular situation.

    2. aap bilkul sahi keh rahe ho.
      mein 3 saal se physical may writing may first ho raha hu. army k kernel may. fir v mujhe q nahi job mil rahi nepali samarajya me.???? jo shrestha mere say bahut niche tha wo bangaya mein q nahi????? jawab hai koi? q ki me madheshi hu. bhai. kitna v chupalo hum madheshi hai.

  2. Well done shyamji we have know about the past.we must have get our own right.There should be fair in each and every sector of every post.If they won’t give then we have to snatch from them?

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