शोरबाजी ज्यादा
लीलानाथ गौतम
प्रचारबाजी और तामझाम के साथ सम्पन्न नेकपा एमाले का राष्ट्रिय प्रतिनिधि परिषद् सम्मेलन देश को नयी राजनीतिक दिशा देगा, ऐसा बहुतों ने सोचा था। संविधानसभा की अवधि समाप्त हो रही है और संविधान जारी करने का निर्धारित समय समाप्त हो रहा है। ऐसी अवस्था में देश की राजनीति में तीसरी शक्ति के रुप में परिचित एमाले द्वारा अवलम्बन होनेवाली राजनीति देश को प्रभावित नहीं करते, यह हो ही नहीं सकता। लेकिन एमाले ने सम्मेलन को जिस तरह प्रचार किया, उसके अुनसार कुछ भी नहीं हुआ। ‘मिनी महाधिवेशन’ के रुप में प्रचारित इस सम्मेलन से राष्ट्रिय राजनीति को तो कुछ नहीं मिला, स्वयं अपनी ही पार्टर्ीीो भी स्पष्ट राजनीतिक दिशा निर्देशन नहीं कर सका। यह सिर्फविश्लेषण नहीं है, एमाले के नेता और कार्यकर्ता दोनों इस यथार्थ को समझ रहे हैं।
वैसे तो परिषद की बैठक शुरु होने से पर्ूव शक्ति पर््रदर्शन के नाम में पार्टर्ीीे खुलामञ्च टुँडीखेल में जनता की अच्छी उपस्थिति दिखाई दी। पार्टर्ीीे शर्ीष्ा नेता लोग उस उपस्थिति को देखते हुए गद्गद् थे। कल्पनातीत उपस्थिति देखकर एमाले के तीन शर्ीष्ा नेता पार्टर्ीीध्यक्ष झलनाथ खनाल, नेता माधवकुमार नेपाल और केपीशर्मा ओली ने शान के साथ एमाले के लिए खुलामञ्च छोटा पडÞ गया, यह भी कहा। इसके साथ ही एमाले को देश की सबसे बडी पार्टर्ीीी कह दिया गया। मगर ऐसा कहने वाले नेतागण भूल गए कि पाँच वर्षपहले संविधानसभा चुनाव में उन्हें मुहँकी खानी पडÞी थी। उसी हार से उत्पन्न कुण्ठित मनोविज्ञान के चलते वे लोग बडबोलेपन में उतर आए थे। साथ ही उन लोगों ने सहकर्मी दल एकीकृत नेकपा माओवादी और नेपाली कांग्रेस दोनों को पेटभर गाली दी। खुलामञ्च के भाषण में नेता लोग जो कुछ बोले, उसी तरह का प्रतिवेदन प्रतिनिधि परिषद बैठक में पार्टर्ीीध्यक्ष झलनाथ खनाल ने प्रस्तुत किया। इस तरह अपनी वास्तविकता को भूलकर अन्य दल को गाली देने से कोई बात नहीं बनती है।
विशाल जनसमुदाय को देखकर खुशी से पागल होते हुए अन्य पार्टर्ीीे गाली देने से अपनी पार्टर्ीीजबूत नहीं होती। गावँ-गावँ से जबरजस्ती समेटकर भीडÞ जम्मा करना कोई बडी बात नहीं है। एमाले ने यह कोई नया काम नहीं किया है क्योंकि अन्य दलों के सम्मेलन में भी ऐसा हीं होता है। मगर इसी को ‘जनलहर’ कहते हुए प्रचार किया गया। मानना ही पडेÞगा, एमाले ने बढी भीडÞ जम्मा की थी। इस भीडÞ ने एमाले के नेता-कार्यकर्ता में कुछ ऊर्जा भी दी होगी। शहर की अपेक्षा गाँव में पार्टर्ीीी पकडÞ ढिली होती अवस्था में इतनी भीडÞ जमा करने से नेता गणको अपने होस-हवास गवाना नहीं चाहिए था। मगर नेता गण ने भीडÞ को देखते हुए कहा- हम देश चला सकते है, अब दूसरी पार्टर्ीीी जरुरत नहीं है। ऐसा बकवास करना एमाले के लिए शोभनीय नहीं है। यह तो मन का लड्डू घी के साथ खाने की बात है। पार्टर्ीीो सक्षम बनाने के लिए स्पष्ट सैद्धान्तिक और व्यावहारिक कार्यदिशा की आवश्यकता है। साथ ही जनता का दिल जितनेवाली नीति और कार्यक्रम को व्यवहार में उतारना होगा। इस बात को एमाले के नेतागण नजाने कब समझेंगे !
पार्टर्ीीी गुटबन्दी जब चरम उत्कर्षमें पहुँची थी, उस समय पार्टर्ीीकता के नाम में एमाले ने देशव्यापी ‘पार्टर्ीीकीकरण अभियान’ सञ्चालन किया था। एकता की घोषणा तो हर्ुइ, मगर शर्ीष्ा नेता लोग दिल से आपस में नहीं मिले थे। इसके विपरीत पार्टर्ीीे अन्दर अलग समूह दिखाई पडÞने लगा। पार्टर्ीीध्यक्ष झलनाथ खनाल, नेता केपीशर्मा ओली के करीब हो जाने के बाद पार्टर्ीीहासचिवर् इश्वर पोखरेल और नेता माधवकुमार नेपाल की नयी गुटबन्दी पार्टर्ीीें दिखाई दे रही है, यह तो सब जानते हैं। इसी तरह एमाले के लिए मुख्य आदर्श व्यक्तित्व मदन भण्डारी द्वारा प्रतिपादित ‘जनता का बहुदलीय जनवाद’ की व्याख्या और विश्लेषण करते समय दो ध्रुवों में विभाजित हुए नेता लोग इतनी जल्दी कैसे मिल सकते थे – दूसरी पीढÞी के नेताओं के दबाब में आकर तीन महिना पहले बिर्तामोड में खुले आकाश के नीचे हाथ मिलाते हुए तीन नेता दिखाई दिए थे, उसके बाद उन तीनों नेता के बीच आपस में वार्तालाप का अभाव ही है। तर्सथ, ऐसी अवस्था में सम्पन्न एमाले प्रथम परिषद बैठक ने ठोस आधार के बिना ही पार्टर्ीीे आन्तरिक गुटबन्दी समाप्त हो गई, -ऐसा दावा पर किसे विश्वास होगा –
हाँ, परिषद बैठक में पार्टर्ीीध्यक्ष झलनाथ खनाल द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन में आन्तरिक विकृति, विसंगति और अराजकता के बारे में कुछ टिप्पणी और आत्मालोचना हर्ुइ है। पर उससे ज्यादा प्रतिवेदन में दूसरे दलों के बारे में अनावश्यक टिप्पणियाँ की गई हैं। इतना ही नहीं, माओवादी, कांग्रेस और मधेशी मोर्चा सभी को गाली देते हुए अपनी पार्टर्ीीो सबसे अच्छी पार्टर्ीीा दावा किया गया। इस प्रकार दूसरो को गाली देने के बदले अपनी कमी-कमजोरी को ढूढÞकर हटाते हुए आगे बढÞना चाहिए था। पर प्रतिवेदन में ऐसा संकेत विल्कुल नहीं है। इस प्रकार तीन खराब पार्टर्ीीें के बीच में खुद को अच्छा कहने से एमाले अच्छी पार्टर्ीीहीं बन सकती।
पिछले चरण में एमाले की राजनीति माओवादी प्रति आक्रामक होने में सीमित रह गई है। उसी तरह माओवादी के साथ सत्तासमीकरण करने से पिछली बार एमाले के लिए मधेशी मोर्चा शत्रु के समान हो गया है। ये दोनो बातें परिषद् के सम्मेलन में भी दिखाई दी। संविधानसभा चुनाव में अपनी पार्टर्ीीो हरानेवाले माओवादी को ठीक करना है, ऐसा मनोविज्ञान एमाले में दिखाई दिया। माओवादी अगर अच्छा काम करता है तो भी उस का विरोध करना एमाले के लिए लाभदायक नहीं होगा। उसी तरह मधेशी मोर्चा का विरोध करने से एमाले की जो साख मधेश में गिर गई है, उसे उठाया नहीं जा सकता। माओवादी को उग्रवादी, कांग्रेस को यथास्थितिवादी और मधेशी मोर्चाको विखण्डनवादी का आरोप लगाकर खुद को पाकसाफ परिवर्तनकामी दावा करना सिर्फखयाली पुलाव पकाना है।
अध्यक्ष खनाल के प्रतिवेदन के अनुसार जारी शान्ति प्रक्रिया और संविधान निर्माण में एकीकृत नेकपा माओवादी, नेपाली कांग्रेस और मधेशी मोर्चा बाधक हैं। एमाले ने माओवादी और कांग्रेस दोनों को अग्रगमन में बाधक कहते हुए मधेशी मोर्चाको संकर्ीण्ातावादी और विखण्डनवादी का आरोप लगाया है। खनाल के प्रतिवेदन के अनुसार माओवादी उग्रवामपन्थी, अराजकतावादी है तो कांग्रेस यथास्थितिवादी और सुधारवादी है। इस प्रकार सम्पर्ूण्ा दोष अन्य पार्टर्ीीे माथे पर थोप कर अध्यक्ष खनाल एक मात्र अपनी पार्टर्ीीो र्सवश्रेष्ठ होने का दावा पेश करते हैं, पर उनका दावा आधारहीन है। अपनी पार्टर्ीींे सशक्त भावी कार्यदिशा के बारे स्पष्टता नहीं होना इसका प्रमाण है। हाँ, परिषद बैठक में जेठ १४ के अन्दर किसी भी सूरत में संविधान बनना चाहिए, इस बात पर जोड दिया है। परन्तु एमाले का यह कथन कोई नयी बात नहीं है क्योंकि निश्चित समय सीमा के अन्दर संविधान कैसे जारी होगा – इसका वातावरण कैसे बनेगा – इन बातों का खुलासा प्रतिवेदन में नहीं है।
संविधान निर्माण की समयावधि समाप्त हो रही है। खनाल के प्रतिवेदन अनुसार राज्य पुनर्संरचना के लिए पहचान और सामर्थ्य का आधार अभी भी बहस का विषय है। पाँच वर्षों से जारी यह बहस एमाले के लिए कब समाप्त होगी और संविधान निर्माण का वातावरण कब बनेगा – जेठ १४ के अन्दर ही संविधान बनाने के लिए दबाव देने वाली पार्टर्ीीे पास इसका जवाब नहीं है। जातीय राज्य का विरोध करने पर भी संविधान निर्माण तथा शासकीय स्वरुप और संघीयता के विषय में भी ठोस रुप में एमाले प्रष्ट नहीं है। इतना होते हुए भी परिषद बैठक ने प्रत्यक्ष निर्वाचित कार्यकारी प्रधानमन्त्री और आलंकारिक राष्ट्रपति होना चाहिए, अपनी इस बात में अडिग रहने का निर्ण्र्ााकिया है। फिर भी एमाले का अन्तिम बटम लाइन यही है, ऐसा कहने का आधार नहीं है। क्योंकि अपने किसी भी निर्ण्र्ााऔर अडान में एमाले दृढÞता के साथ कायम नहीं रहता और उस में परिवर्तन करता रहता है। पार्टर्ीीे इतिहास से यही पता चलता है।
आत्मालोचना की दृष्टि से देखने पर भी खनाल का प्रतिवेदन पार्टर्ीीो सुधारोन्मुख बनाने की अपेक्षा पार्टर्ीीे अन्दरुनी गठबन्धन को मजबूत बनाने में केन्द्रित दिखता है। पार्टर्ीीे अन्दर शक्तिशाली कहाने वाले नेता केपीशर्मा ओली के विचार को आधार बनाकर प्रतिवेदन तयार करने से इस बात की पुष्टि होती है। उदाहरण के लिए पार्टर्ीीें विगत में की गई गलती के बारे में आत्मसमीक्षा करते समय अध्यक्ष खनाल ने आठवें महाधिवेशन के बाद अपनी हर परिस्थिति में साथ देने वाले उपाध्यक्ष बामदेव गौतम की कटु आलोचना की है। मधाव नेपाल की सरकार गिराने के लिए उपाध्यक्ष गौतम ने ६० लोगों का हस्ताक्षर अभियान सञ्चालन किया था। इस प्रसंग को अध्यक्ष खनाल ने जोर-सोर के साथ पार्टर्ीीें उठाकर पार्टर्ीीी कमजोरी को स्वीकार नहीं किया, यह तो पार्टर्ीीे भीतर बने अपने नये गठनबन्ध के रुप में रहे नेता केपीशर्मा ओली को खुश करने के लिए किया गया। क्योंकि हस्ताक्षर अभियान खनाल की ही मौन स्वीकृति और र्समर्थन से चला था। गौतम का उक्त हस्ताक्षर अभियान पार्टर्ीीे लिए निश्चय ही गलत था। परन्तु माओवादी विरोधी राजनीति ही प्रजातान्त्रिक और क्रान्तिकारी राजनीति है, इस भ्रम में रहे केपी ओली के समकक्ष खुद को खडÞा करने से अपना कद उचा नहीं होगा, ऐसा समझने में खनाल चूक गए।
खुलामञ्च के भाषण से परिषद बैठक में पेश प्रतिवेदन तक देखें तो एमाले में कोई उल्लेखनीय परिर्वत होने के आसार नजर नहीं आते। निचोड में कहा जा सकता है- एमाले नेता के भाषण और अध्यक्ष खनाल का प्रतिवेदन अपनी गलती को ढÞकते हुए दूसरे की गलती को खुलासा करना जैसा लगता है। एमाले का प्रतिनिधि परिषद सम्मेलन शुरु से अन्त तक अन्य दलों पर दाष लगाना और अपनी प्रशंसा करना, बस, इन्ही दो बातों में सीमित रहा। निष्कर्षमें कहा जा सकता है कि एक नम्बर की पार्टर्ीीनने के लिए दूसरो को गाली देना जरुरी नहीं है। अपितु खुद में सुधार लाना जरूरी है। ±±±