Fri. Sep 13th, 2024

बहुदलीयता पश्चात् के दो दशक से अबतक की अवस्था को देखने के बाद नेपाल के हिमाल, पहाडÞ और मधेश के नागरिकों की कहें वा नेपालियों की कहें, सबों के लिये मिथिलांचल की यह लोकोक्ति- ‘का पर करब श्रृंगार पिया मोर आन्हरहै ।’ अर्थात् किस पर गर्व करें जब घर के मालिक ही अन्धें हों वा एक दूसरी उक्ति- मधुरा का पेड जो खाये वह भी पछताये, जो न खाये वह भी पछताये।’ जैसे लोकतान्त्रिक ठेकेदारों से संचालित नेपाल का लोकतन्त्र बन गया है। सच कहें तो लोकतन्त्र का पर्यायवाची कहाने वाली ‘नेपाली कांग्रेस’ पार्टर्ीीुरु से ही यबप तचभभ की तरह रहती आयी है और आज की दारुण अवस्था के लिए जिम्मेदार स्वयं गिरिजाप्रसाद कोइराला को कहा जाये तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। वैसे तो शुरु से ही बी.पी. कोइराला के गलत सोच के कारण ही वह पार्टर्ीीभी लोकतान्त्रिक मूल्य-मान्यताओं को आत्मसात नहीं कर सकी थी। महामानव स्व. सुवर्ण्र्ाामशेर जो, उस पार्टर्ीीे एक मात्र सही संस्थापक, संरक्षक, सर्म्बर्धक और संपोषक थे, जिनकी कृपा की बदौलत बी.पी. बन पाये, उन्हीं को उस पार्टर्ीीे भूला दिया। संयोग अच्छा था कि महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री जैसे महान् विभूति भारत में हुए। दुर्योग से कहीं वे नेपाल में होते तो बी.पी. और उन की टोली उन सबों के नामों को भी महामानव सुवर्ण्र्ाामशेर की ही तरह इतिहास के पन्ने से ही गायब कर देती।
शासकों की राजनीति तो देखिये- शुरु से ही पहाडÞ में रहनेवाले को पहाडÞी और मधेश में रहनेवाले को मधेशी कहकर ‘फूट डालो और राज करो’ की कपटपर्ूण्ा नीति के तहत दोनों वगोर्ं को लडाते आ रही है। इतना ही नहीं, त्रेतायुगीन प्राचीन मिथिला राज्य -क्षेत्र सम्प्रति पर्ूव में मेची अंचल के झापा से पश्चिम में नारायणी अंचल के रौतहट ही नहीं चितवन के देवघाटधाम) की राजधानी जनकपुरधाम थी और जिसके नरेश राजषिर् एवं ब्रम्हषिर् जनक थे, वे और उनकी पुत्री जगत जननी सीता दोनों देश के अग्रणी और प्राथमिक राष्ट्रीय विभूति हैं। ठीक उसी प्रकार बाद में लुम्बिनी के गौतम बुद्ध तीसरे राष्ट्रीय विभूति हैं- उनकी सन्तानों और वंशजों को भारतीय कहा जा रहा है। जबकि मिथिला और लुम्बिनी क्षेत्र के आदिवासी नागरिक के कई शताब्दी बाद भारत के मुगल शासकों के अत्याचार के बाद महाराणा प्रताप के वंशज शाहवंशीय राजा के पीछे-पीछे भारत से आनेवाले सत्ता पर काबिज होने वाले राजाओं के साथ उनके पिछलग्गू सभी असली नेपाली बन गये लेकिन त्रेतायुग से इस मिट्टी से जुडÞे राजषिर् जनक की सन्तान अब तक भी नेपाली नहीं भारतीय सम्बोधित की जाती है।
लोकतन्त्र पर्ुनर्वहाली पश्चात् अस्तित्व में आये विभिन्न मधेशवादी कहे जानेवाले राजनीतिक दल और उनके नेतागण भी एक-दूसरे से ‘संयुक्त मधेशी मोर्चा गठन’ करने के बाद भी सामीप्य और एकात्मकता कायम नहीं कर पाये। तो फिर मधेश और मधेशी समुदाय के लिए वे क्या कर पाएँगे – न आजतक कुछ कर पाये हैं न कभी कुछ कर पाएँगे ! यदि वे कुछ कर पाये होते तो ऐतिहासिक प्राचीन तालाबों, सागरों व पोखरों से भरा विश्व का ही अग्रणी नगर और त्रेत्रायुगीन प्राचीन मिथिला राज्य की राजधानी जनकपुरधाम आज तक व्रि्रूप ही नहीं होती।
कहावत है- ‘घर फूटे गवाँर लूटे’ अंग्रेजी की भी कहावत है- ुग्लष्तभम धभ कतबलम, मष्खष्मभम धभ ाबििु इसको अच्छी तरह समझते हुये भी अपनों में ही फूट होने के कारण आज सरकारी संयन्त्र की चालबाजी के कारण आज जय प्रकाशप्रसाद गुप्ता भ्रष्टाचार के आरोप में सत्तासीन मन्त्री होते हुए भी जेल भेज दिए गए। और बहाना उस अपांग निकाय- अख्तियार दुरुपयोग अनुसन्धान आयोग के मुकदमे को लिया गया है, जो एक अदना सा काम आज तक नहीं कर पाने के कारण स्पष्ट दोषी र्-कर्मचारी और उसके अधिकारी दोनों) होते हुए भी आज तक पदोन्नत होते हुए काफी धन-सम्पत्ति आर्जन करते आ रहा है। सम्बद्ध प्रसंग इस प्रकार हैः-
२०६२ साल भाद्र १७ गते के ‘जागरण साप्ताहिक’ जनकपुर धाम पत्रिका में धनुषा जिला विकास समिति के अधिकारी ने अस्थायी ना.सु. स्तर के कर्मचारी बसन्त कुमार मण्डल को उद्यम विकास अधिकृत पद पर और खरदार स्तर के पुरुषोत्तम शर्मा को वरिष्ठ सामाजिक परिचालक पदपर पदोन्नत किया। जिला प्रशासन कार्यालय, धनुषा में कार्यरत अ.दु.अ.आ. के शाखा अधिकृत रामहरि रेग्मी ने.प.सं. ४/आ/०६१/०६२ च.नं. ३१३६ मिति २०६१/३/२९ को औपचारिकता निवाहने के उद्देश्य से स्थानीय विकास अधिकारी, धनुषा को पत्र भी लिखा। मगर कही से कोई कारवाई नहीं हर्ुइ तो उस सम्बन्ध में तत्कालीन प्रमुख आयुक्त र्सर्ूयनाथ उपाध्याय के समय में उजूरी पडÞी मगर न्यायकर्ता और भ्रष्टाचार निवारण करनेवाले या कहे जानेवाले र्सर्ूयनाथ उपाध्यय ने कुछ नहीं किया -आम्दनी का स्रोत जो था)। फिर ललित बहादुर लिम्बू के कार्यकाल में भी उजूरी पडÞी, मगर ललित बहादुर लिम्बू ने भी र्सर्ूयनाथ उपाध्य की तरह ही भ्रष्टाचार को फलने-फूलने के लिये छोडÞ दिया। फलस्वरुप अ.दु.अ.आ. का आशीष पाकर वे दोनों कर्मचारी आज तक कार्यरत ही हैं। क्या उस आयोग को फिर भी ‘अख्तियार दुरुपयोग अनुसन्धान आयोग’ ही कहा जायेगा या उसके अब तक के कामों को देखकर ‘भ्रष्टाचार संरक्षण तथा सर्म्वर्द्धन आयोग’ कहना उपयुक्त होगा –
दूसरी महत्वपर्ूण्ा बात, इस पंक्तिकार से २०६८/०९/१७ के दिन अपरान्ह १६ः०० बजे अ.दु.अ.आ. के सचिव भगवती काफ्ले ने एक प्रसंग के क्रम में खुद ही कहा था कि मन्त्रिमण्डल से हुए निर्ण्र्ााके सम्बन्ध में वे कुछ नहीं कर सकते हैं। फिर जय प्रकाशप्रसाद गुप्ता तो मन्त्री थे, उनके सम्बन्ध में उन्होंने कैसे कारवाई आगे बढर्Þाई – इससे स्पष्ट होता है कि ‘अख्तियार’ तो एक बहाना मात्र है, यह चाल तो ऊपरी जमात का है, फिर भी मधेशवादी कहे जाने वाले नेताओं को होश क्यों नहीं आता – क्या यह क्रम एक-एक कर उपेन्द्र यादव, राजेन्द्र महतो, महन्थ ठाकुर, हृदयेश त्रिपाठी तथा अन्य के साथ नहीं होगा – ठीक उसी प्रकार कमजोर अन्य दलों के नेताओं के साथ नहीं होगा – सवाल न पहाडÞ का है न मधेश का, सवाल है नेपाली जनता को गुमराह करते हुए खुद लूटते रहने का।
नेपाली जनता को अब सोते नहीं रहना चाहिए। चाहे पहाडÞ के हों या मधेश के, सब नेपाली हैं। सब को एक साथ मिलकर अपने देश के दुर्योधनों और दुशासनोंको खदेडÞना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो त्रेतायुग में राम के हाथों मरकर गति प्राप्त करने वाले कुम्भकर्ण्र्ााी आत्मा पुनः चित्कार करने लगेगी- ‘अरे नेपाल की जनता ! मैं तो केवल ६ महीना ही सोया करता था, तुम लोग तो बीस वर्षसे सोए ही हुए हो। अच्छा हुआ जो मैं त्रेतायुग में ही मारा गया, नहीं तो मैं तुमलोगों की चिरन्रि्रा देखकर ही ६ महीना के बाद शर्म से खुद ही मर गया होता।
इसलिए सत्तासीनों के बहकावे में न पडÞकर पहाडÞ और मधेश की जनता को अपने कल्याण के लिये एकजूट होकर आगे बढÞना हीं होगा, कारण अब तक न पहाडÞ को कुछ मिला है न मधेश को। बना है तो केवल दुर्योधन और दुशासनों का दल। हस्तिनापुर का अस्तित्व तो प्रायः मिट ही गया है। अन्त में सबों के लिये प्रेरणा गीतः-
तू न पहाडी बनेगा न मधेशी बनेगा
नेपाल की सन्तान है, नेपाली बनेगा।
सत्तावालों ने शुरु से ही फूट डालकर लूटा
सबों की नीयत में है खोट सभी है खोटा ।। तू न…
भाषा ही तो सम्बन्ध विस्तार और मेल की कड है
सब को मिलानेवाली हिन्दी ही अच्छी लडहै।। तू न…।
मत करो विवाद मिलकर बढ आगे सब साथ
नहीं तो ये शासक सदा देते रहेंगे तुम्हें मात।। तू न..।
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