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नया“ साल, कर दो सब को मालामाल !

मुकुन्द आचार्य

वि.सं. २०६८ साल आ गया है । उसका भव्य स् वागत कर ना है  औ र  इस शुभ अवसर  पर  खूब दरि यादिली से  शुभकामनाएँ लूटाना है । फरुसत में हों तो , आप भी मे री ओ र  से  कुछ शुभकामनाएँ नए वर्षके  आगमन पर  बटो र  लीजिए । आप भी क्या याद करेंगे  ! किसी दरि यादिल शाहंशाह से  पाला पडा था ।
सबसे  पहले , नयाँ साल अर्थमंत्री भरत मोहन अधिकारी को  मालामाल करे । क्योंकि ‘माल’ को  ले कर  अर्थ सचिव खनाल औ र  अर्थमंत्री अधिकारी के  बीच अच्छा तकरार  हुआ । अधिकारी जी कुछ अधिक ही बूढे  हो  चले  हैं । बूढा बाघ मुँह में आए हुए शिकार  को  सकुशल लौ टने  दे , वह भी इस कलयुग में – ना बाबा ना ! ऐ सा नहीं हो  सकता ।
नयाँ साल आपर्ूर्ति मंत्री -चाहे  जो  हो ) को  इतना मालाम ाल कर  दे  कि पे ट्रो ल, डीजल, गै स, मिट्टी ते ल आदि की बिक्री से  उन्हे ं औ र  ज्यादा कमीसन खाना न पडेÞ । औ र  जनता की पीठ पर  मह ँगाई के  को डÞे  न पडे Þ ।
संविधान सभा मे ं ६०१ सभासद है ं । नयाँ साल दो -तीन वषोर् ं से  इन्हे ं मालामाल किए जा र हा है , मगर  ये  सभासद अब भी भूखे  है ं । संविधान बनाने  के  समय सो ते  है ं औ र  समय बीत जाने  पर  दूसर ो ं की गलती दिखाकर  र ो ते  है ं । ऐ से  नालायक सभासदो ं को  मालमाल कर  दे ना, हे , नव वर्ष!
बनिया-बै ताल कहलाने  वाले , आजकल  व्यापार ी-उद्यो गप ति कहलाते  है ं । इनकी आर्थिक भूख कभी तृप्त नहीं हो ती । नयाँ साल, तूँ कुछ ऐ सा कर  कमाल, दे श भले  ही बन जाए कंगाल मगर  ये  मगर मच्छ हो  जाएँ मालमाल । ये  जै सा भी बिल भाउचर  पे श कर े ं, उसे  शंकास् पद नजर  से  कोर् इ भी सर कार ी गर्ुगा न दे खे ं । दे खे  भी तो  नकली बिल असली नजर  आए । फिर  किसी अर्थ सचिव को  अपने  जमीर  को  बचाने  के  लिए नौ कर ी से  हाथ न धो ना पडे Þ ।
नयाँ साल ! तू कुछ ऐ सा कर  यार  ! यह जो  प्रधानमंत्री की कर्ुर्सर्ीीै  न, इस पर  बै ठने  वाले  के  नितम्ब मे ं चिपकने  वाला ऐ सा बे जो डÞ र सायन लगा दे , जिसके  लगाने  पर  वह जल्दी कर्ुर्सर्ीीो डÞ न सके  । मतलब एक मजबूत सर कार  दे  दो  ने पाल को  । इतना भी नहीं कर ो गे  तो  तुम्हार े  आने  जाने  पर  लो ग क्यो ं तवज्जो  दे ंगे , भाँड मे ं जाए नयाँ वर्ष।
दे श मे ं जितने  भी हाकिम साब लो ग है ं, सभी को  नयाँ वर्षविशे ष रुप से  ‘माल माल’ कर  दे  । दे खना, अख्तियार  की नजर  न लगे  । सर कार ी अफसर  का शानदार  घर  दे खकर  अख्तियार  ऐ सा गीत गाना शुरु न कर  दे  ः-
‘नजर  लागी सै याँ तो र े  बंगले  पर  !’
नयाँ साल बढÞती महँगाई को  भी ‘पै के ज’ मे ं कुछ दे  । सबने  मान लिया है  कि यह महँगाई औ र  मौ त इन दो नो ं से  कोर् इ भी नहीं बच सकता । इन दो नो ं मे ं चो ली-दामन का साथ है  । अर्थात् महँगाई धीर े -धीर े  हमे ं मौ त की ओ र  ले  जाती है  । औ र  गर ीबो ं को  मौ त के  मुँह मे ं डालकर  स् वयं लौ ट आती है , बाजार ो ं मे ं सज धज कर  बै ठने  के  लिए, नगर  बधू की तर ह !
नयाँ साल अपर ाधियो ं के  लिए खूब लाभदायक, फलदायक, शुभदायक साबित हो  । अपर ाधी औ र  प्रहर ी के  बीच इतने  सुमधुर  सम्बन्ध हो ं, जै से  साली औ र  जीजा जी के  बीच हो ता है , जै से  पति- पत्नी के  बीच हो ता है , जै से  ब्वायप|mे ण्डर्-गर्लप|mे ण्ड के  बीच हो ता है  । जै से  घर वाला औ र  बाहर वाला के  बीच हो ता है  । जै से  भंसार  कर्मचार ी औ र  तस् कर  के  बीच कितना मदिर  औ र  मधुर  सम्बन्ध हो ता है  ।
नयाँ साल ! एक छो टा सा काम तुम जरूर  कर ना ! संविधान भले  ही बने  न बने  मगर  औ र तो ं को  ‘नार ी हक’ के  नाम पर  सभी अधिकार  दे  दे ना । वै से  भी हर  घर  मे ं उनका ही तो  शासन है  । व्यावहारि क रुप मे ं जब हर  घर  मे ं इनकी ही तूती बो लती है , तो  कागज मे ं लिख दे ने  मे ं क्या जाता है  – मर्द लो ग अपना ‘इगो ’ नहीं छो डÞना चाहते  । यही तो  मुसीबत है  । मगर  क्या किया जा सकता है  – समय-समय की बात, मर्ुर्गी मार े  उछल कर  लात ।
नए वर्षमे ं ठमे ल मे ं ‘तर्ीथयात्रियो ं’ की संख्या बढÞे  । मसाज, ब्यूटीपार्लर , कै सिनो ं, र े ड लाईट एरि या सब जगह ‘भीडÞ’ नामक अवस् था दिखाई दे  । महिला-पुरुष सब विदे श जाएं । कुछ कमाएं न कमाएं मगर  साथ मे ं ‘एड्स’ जरूर  ले  आएं । दे श की बढÞती जनसंख्या को  र ो कने  मे ं यह ‘एड्स’ बहुत कार गर  सिद्ध हो गा ।
इस नए वर्षमे ं संवत्सर  का नाम है - ‘क्रो धी’ । जर ा बचके  र हना भै या । सब से  बडÞा रुपै या !

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