देश मांगा नहीं जाता, निर्माण किया जाता है : कैलाश महतो
गरीबों का कोई देश नहीं होता, भूखों का कोई धर्म नहीं,
कुछ मधेशियों में यह भ्रम है कि प्रान्त देने को जब नेपाली राज्य नहीं मान रही है तो देश क्या संभव है ? तो हमें एक बात को अच्छे ढंग से समझ लेना होगा कि देश और राज्य में तात्विक भिन्नता है । राज्य किसी से मांगा जाता है, लेकिन देश बनाया जाता है ठीक वैसे ही जैसे कुछ कमरों को भाडे मे मांगा जाता है, घर अपना बनाया जाता है ।
कैलाश महतो, परासी, २४ अप्रैल | २९ मार्च के दिन शाम के ८ः२५ बजे ९८४०२८१६६९ नम्बर से कोई सज्जन मेरे मोबाइल पर फोन करते हैं । वह फोन मेरे परिवार के पास होने की वजह से मुझसे उनकी बात नहीं हो पायी । उन्होंने मेरे परिवार से पूछा कि मुझे नेपाल से अलग मधेश क्यूँ चाहिए । मेरे परिवार ने उन्हें बताया कि यह बात कैलाशजी को ही ठीक से पता है । इसिलिए मुझ से ही वो बात करें तो बेहतर होगा । वे पोखरा से बोल रहे थे ।
ऐसे सवाल शुरु के अवस्था में असंख्य लोगों द्वारा पूछा जा चुका है । अब यह सवाल कुछेक लोग ही पूछते हैं, कारण लोग अब हमसे ज्यादा समझने लगे हैं । फिर भी इस प्रश्न का उत्तर हम बाहर से ज्यादा अपने अन्दर से ही तलास कर सकते हैं ।
वस्तविकता यही है कि लोग किसी से अलग होना नहीं चाहता, बल्कि प्राकृतिक रुप से ही वह पूर्णतः अलग है । हरेक व्यति का वजूद अलग है, अस्तित्व अलग है, शरीर और रुप अलग हैं । उसकी आवश्यकतायें अलग हैं, सोंच अलग है और उसका परिचय भी अलग ही होता है । अलग होना ही प्रकृति है । मिलना तो एक सम्झौता है । सम्झौता टुटा, मिलन खत्म, एकता खत्म ।
अकेले में ही उसकी चहचान है । इसिलिए भी प्राकृतिक और संभोगीय रुप के कारण भी नौ महीनेतक एक महिला के गर्भ मे रहने बाला शिशु भी अपनी माँ के वजुद से अलग होने के लिए बाहर आ जाता है । होश संभालने के बाद वह माँ को सिर्फ सम्मान करता है, न कि वह माँ का ही प्रतिरुप हो जाता है ।
वही बात देश बनने और बनाने में भी लागू होता है । प्रकृति खुद ने भी सृष्टि में अलग अलग हावापानी, वातावरण, मौसम, भूगोल और संरचनायें बनायी है, भले ही ब्रम्हा ने एक ही सृष्टि बनाया हो । अलग अलग विशेषताएँ होने कारण ही अलग अलग मानव और जीविय रंग रुप बने और अलग अलग समाज एवं समुदाय का निर्माण हुआ है । उसीका विकसित रुप बाद में देश, राष्ट्र और राज्य का नाम पाता बताया गया । एक परिवार से लोग सैकडों परिवार बना लेते हैं, एक ही संस्था से अनेक संस्थायें निर्माण हो जाती है । क्यूँ ? क्यूँकि जनसंख्या के वृद्धि के साथ ही संस्थाओं के संख्या में भी इजाफा होना स्वाभाविक है । जब जनसंख्या कम थी, देशों की संख्या भी कम थी, संस्थाओं की आवश्यकता कम थी । मगर जनसंख्या के वृद्धि और उसके आवश्यकताओं के अनुसार देश और संस्थाओं के संख्या में भी वृद्धि होना स्वाभाविक है ।
जहाँतक मधेश की बात है तो यह कालान्तर से ही अलग है । यह न तो नेपाल का है न भारत का । सन् १९५५ के संयुत राष्ट्रसंघीय दस्तावेज, जिसने ब्रिटेन के कहने के बावजुद बिना कोई खोज अनुसंधान मधेश को नेपाल के शासन का शिकार होने के लिए छोड दिया, के अनुसार भी मधेश नेपाली साम्राज्य का उपनिवेश है, उसका कोई अंङ्ग नहीं । स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन तो यह चाहता ही है कि नेपाल मधेश के विषयों पर ब्रिटेन, भारत, अमेरिका और रुस के साथ संयुक्त राष्ट्रसंघ के कार्यालय में बैठें और प्रमाणों पर बहस हो । यह मधेश की मांग है और नेपाल की समस्या है । नेपाल को इस विषय पर अपने प्रमाणों के साथ संयुक्त राष्ट्रसंघ के मञ्च पर सम्बन्धित सारे देशों के साथ दुनियाँ के सामने बैठना चाहिए ।
बहुत सारे राष्ट्रियताओं को जोडकर एक राष्ट्र बनता है । जब सारे राष्ट्रियताओं के लिए समान शासन, समान प्रशासन, समान अवसर, समान व्यवहार और समान प्रतिनिधित्वमूलक नियम और कानुन का निर्माण होता है तो वह देश का रुप धारण करता है । जब किसी समाज या समुदाय के साथ विभेद, दुव्र्यवहार, तिरष्कारपूर्ण रवैया, शोषण, अत्याचार आदि अपनायी जाती है तो वह उपनिवेश कहलाता है, और उपनिवेश से मुक्त होना उस समाज या समुदाय का जन्मसिद्ध अधिकार होता है ।
हाल फिलहाल ही क्यालिफोर्निया अमेरिका से अलग होने का निर्णय किया है । चार करोड जनसंख्या रहे क्यालिफोर्निया को स्वतन्त्र राष्ट्र चाहने बालों ने जनमत संग्रह कराने के लिए ५८५,४०७ हस्ताक्षर कराने के लिए अमेरिकी सरकार के महान्यायाधिवकता के कार्यालय में जनमत संग्रह के उद्देश्य से निवेदनतक दर्ता करवा चुके हंै । ज्ञात हो कि सन् १८६५ के American Civil War के दौरान संयुतm सैनिक शतिm ने Confederate States of America पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । अमेरिका से California को अलग होने के निर्णय से यह बात स्पष्ट हो जाता है कि किसी भूमि के जनता और उसके साधनश्रोतों पर शासन करने के लिए उस भूमि के जनता से अनुमति लेनी पडती है । उसके मतों का सम्मान करना पडता है । क्यालिफोर्निया की जनता ने उनके मतों को सम्मान नहीं मिलने के कारण को ही मुद्दा बनाकर क्यालिफोर्निया को अलग राष्ट्र बनाने की निर्णय ले चुकी है ।
मधेश की जनता की मतों का बलत्कार तो दो सौ वर्षों से हो रही है । मत मधेश का, साधनश्रोत मधेश का, लगानी मधेश का, मगर शासन नेपालियों का । मधेशियों पर नेपालियों का सिर्फ शासन ही नहीं, अत्याचार, तिरष्कार, गालियाँ, दोहन, शोषण, विभेद और जातीय संहार भी हावी है । मधेश में तो नेपालियों का खुल्लम खुल्ला औपनिवेशिक शासन है जिसे खत्म होना मधेश राष्ट्र के लिए पहला शर्त है ।
कुछ मधेशियों में यह भ्रम है कि प्रान्त देने को जब नेपाली राज्य नहीं मान रही है तो देश क्या संभव है ? तो हमें एक बात को अच्छे ढंग से समझ लेना होगा कि देश और राज्य में तात्विक भिन्नता है । राज्य किसी से मांगा जाता है, लेकिन देश बनाया जाता है ठीक वैसे ही जैसे कुछ कमरों को भाडे मे मांगा जाता है, घर अपना बनाया जाता है । मधेशी मोर्चा मधेश के जिस भू–भाग को राज्य के रुप में नेपालियों से मांग रहा है, वह नेपालियों के कब्जे में रहे औपनिवेशिक भूमि है । मगर वही मधेश की भूमि मधेशियों का देश है जैसे ब्रिटीश शासित भारत अंग्रेजों का उपनिवेश था, भारतीयों का देश बना । देश मांगा नहीं जाता, निर्माण किया जाता है ।
मधेशी मोर्चा और कुछ हिम्मतचोर तथा नेपालपरस्त लोगाें का यह कहना भी जायज है कि देश बनाना आसान नहीं । तो यह जग जाहेर है कि देश बनाना कठिन कार्य है जो उन लोगों जैसे शख्सों से संभव नहीं है । अगर मोर्चा या उसके भाषा बोलने बाले लोगों से ही संभव होता तो मोर्चा के नेता तथा उनके परिवारों के सदस्यों के मांगने या लडने से ही मधेश प्रान्त बन जाता । क्यूँ मधेश के किसान, मजदुर, यूवा और विद्यार्थियों को गोली खाना पडता ? परिवर्तन बाबु साहबों के लिए कठिन होता है, परिवर्तनकामी देहाती, किसान, मजदुर, यूवा और विद्यार्थियों के लिए नहीं । देश भी वेही लोग बनायेंगे । बाबु साहब लोग आजादी के करीब में या आजाद मधेश के मञ्चों पर लम्बे लम्बे भाषण देने आयेंगे ।
देश फोडने की बात ही नहीं है, देश बनाने की बात है । मधेशी जिस शासन तले जी रहा है, वह केवल Country है, उसके Home Country नहीं । मधेशियों को अपना Home Country बनाना होगा । मधेशी नेपाल का विरोधी नहीं है, वह केवल अपने अस्तित्व का प्रेमी है । गरीब और अमीरों का निश्चित कोई देश नहीं होता । अमीरों का तो थोडा बहुत हो भी जाय तो वे केवल उसके आधार पर विश्व में राजनीतिक पहचान, व्यापार और दलाली के लिए । मगर गरीबों का न कोई देश होता है, न भूखों का कोई धर्म ।
ओशो कहते हैं, “जिन चीजों से कोई हानी नही होती, उनसे कोई लाभ भी नहीं हो सकता । सभी महत्वपूर्ण चीजें खतरों से ही भरी होती है ।” कुछ लोगों के अनुसार मधेश देश बनाना खतरापूर्ण है । बहुत हदतक उनका कहना सही भी है । मगर उन्हें यह पता नहीं कि छोटे खतरों के पिछे बडी उपलब्धियाँ हमेशा खो जाती है । इसिलिए जब खतरा ही मोलना हो तो बडा खतरा मोलें, जिससे मधेश देश बनाने का सौभाग्य प्राप्त हाें, हम और हमारा अस्तित्व स्वतन्त्र हो ।