कुर्सी और सत्ता के जयचन्दों ने फिर फंसाए मधेसी जनता को : सर्वदेव ओझा
सर्व देव ओझा, नेपालगंज, २०७४/०२/२ गते | मधेस के अधिकार में संघियता , स्वशासन , और सामाजिक न्याय का कल तक बड़ा बड़ा भाषण और अपने आप को बड़े क्रन्तिकारी प्रदर्शित करने वाले अपने आप को कल तक मधेस का मशीहा बताने में भी बे-हिचक भाषण देते आ रहे आखिर आज धीरे धीरे उनकी यथार्थ रूपी कलाई खुलती दिखाई दी ! आखिर ये ही यहाँ के पछौटेपन , गरीबी , भेदभावपूर्ण व्यवहार तथा राज्य से मिलीभगत के रूप में विभेदकारी संरचना एवं औपनिवेसीकरण के प्रमुख जिम्मेवार दिखाई देने वाले भेडिये ही आज यहाँ फिर एक बार अपने वास्तविक रूप के साथ पुनः तराई मधेस की जनता के ही बीच से उभर कर बाहर दिखाई देने शुरू हो गए !
इससे पहले भी स्वर्गीय रामजनम तिवारी , स्वर्गीय गजेन्द्र बाबु आदि एकल नेता इन्ही छिपे भेडियो से ही परेशान हुए और इन व्यक्तिगत स्वार्थी पदलोलुप छिपे मधेसी जयचन्दों के करण ही यहाँ तराई मधेस की अधिकार को राज्य से लेने वा पूरा करने में असमर्थ रहे ! फिर भी २०६३/०६४ में दुबारा मधेस विद्रोह और आंदोलित हुवा ही , जिसमे भी मधेस ने आज के इन्ही कुछ जयचन्दों और राज्य के कुछ बिचौलिये दलालों के नेतृत्व को ही स्वीकार करके ५२ मधेस के होनहार शहीदों की आहुति दिलवाई , आखीर ५२ शहीदों के खून के मूल्य पर उस समय सम्बिधान सभा के प्रतिनिधि के रूप में कुल ८७ प्रतिनिधि भेजा ही था , उसके बाद क्या हुवा किसी से भी छिपा नहीं है , इन मधेसी नेतृत्व को राज्य की कुर्सी का मोह भंग कभी नहीं हुवा ! हर बार उसी में चिपकाने की आदत सी पड़ गयी , लेकिन उस समय उन मधेस के ५२ शहीदों और घायलों तथा अपांग लोगो की याद् तक भी नहीं छुवा ? राज्य के द्वारा निर्णय भी कार्यान्वन तक भी नहीं करा सके ! शायद वो शहीद इन नेताओं को कभी माफ़ नहीं करेंगे !
फिर भी मधेस कभी थका नहीं , अपने अधिकार के नाम पर दुबारा इन्ही नेताओं के भरोशे पर संबिधान जारी करते समय और बीच में विभिन्न विरोध के समय आज २०७३ साल तक अपने मधेस और मधेसियो के अधिकार प्राप्ति के लिए प्रत्यक्ष १०५ मधेसी अपने प्राणों की आहुति देते हुए शहीद हो गए ! इसी मुद्दे पर हजारो की संख्या में घायल और अपांग भी हो गए ! इसके बाहेक मधेस के अधिकार सम्पन्नता हेतु हमारे लिए ही अप्रत्यक्ष रूप में कम्ती में १००० लोग राज्य के शासक के द्वारा मार दिए गए ! साथ में लमसम २००० लोग अभी भी बन्दी जीवन की जिन्दगी विताने पर मजबूर है ! आखिर यहाँ तक के बलिदानी का प्रतिफल आज तक इन मधेसी बिचौलिये नेतृव और कुछ बीच के जयचन्दों के करण क्या मिला ?
तराई मधेस और यहाँ बसोबास कर रहे साधारण मधेसी जनता , यहाँ के आदिबासी थारू जनता , अल्पसख्यक तथा दलितों जनसमुदायों को आज इस शोसक सत्ताधारियो से क्या मिल गया ? कभी कहते है सम्बिधान संशोधन के बिना कोई निर्वाचन न होगा , और न होने दूंगा ! फिर सरकार के शासकीय मनस्थिति के लोग इन्हें कौन सा और कितना घूटी पिला दिया की बिना संबिधान संशोधन के ही कुछ मधेसी का नाम बेचते हुए पहले चरण के २०७४ बैशाख ३१ गते के निर्वाचन में भाग लेना पड़ा ! साथ में अपना निर्वाचन चिन्ह भी भाड़े में देना पड़ा ? इतने पर भी कल तक भाषण में भूकने से पीछे नहीं हेट की ये तो कुछ नहीं , मगर दूसरे चरण के २०७४ साल जेष्ठ ३१ गते होने जा रहे बाकी के चार प्रदेशो में बिना संबिधान संशोधन न ही चुनाव में भाग लेंगे और न ही चुनाव होने देंगे ? आखिर फिर इन मधेसी ठेकेदार जयचन्दों को आज जेष्ठ १ गते राज्य के शासक नेतृत्व के द्वारा थप कितना जन्मघूटी पिला दी की उनकी भाषा ही बदल गयी ! आज कहने पर बाध्य हो गए की जेष्ठ ३१ के निर्वाचन में संबिधान संशोधन के बिना भी भाग लेना पड़ा ? ये कौन सा चमत्कार है ? या कोई नया विपदा या विबसता आ पडी ! नहीं तो क्या आज अपने आप को बहुत बड़े लोकतन्त्रबादी का भाषण देने वाले नेता क्या भूल गए ? कहा गए सब वादे ? कैसे भूल सकते हो उन शहीदों की बलिदानी ? क्यादिन में न सही रात में भी सोते समय याद् नहीं आता ? पैसा और भौतिक साधन चाहे जितना भर लो ! मगर “ पानी , पैसा और आग ,, जिस रस्ते से जीतनी तीब्र गति से आर्जन करोगे ! उसी गति से ही वह खुद अपना रास्ता ढूढ़ निकलेगी ! और जायेगी भी वैसे ही ! चाहे डाक्टर खाए , वा अन्य मद से ? खैर धैर्यता भी कोई चीज है , आओ ! विना संबिधान सन्शोधन के निर्वाचन में , मधेसी शहीद की उर्जा , उनकी शक्ती , उनकी बलिदानी इसी मधेस की मिट्टी इन्तजार कर रही है ! वैसे विगत के इतिहास से मधेस के नेताओं और उनके कारनामो से इस धरती की भी नयी खोज और नयी सोच भी चल रही है ! शायद आने वाले दिन में मधेस में कोई जयचन्द नहीं निकल पायेगा ! इस बार मधेस मधेसी नेताओं और पार्टियों का नेतृत्व नहीं , स्वयं साधारण मधेसी जनता , साधारण आदिबासी जनता , और इस भूमि पर बैठे अल्पसंख्यक , दलित सभी अपने अपने स्तर से ही आंदोलित होने की संभावना चाहे वह परदे के आगे से हो वा परदे के पीछे से , सबसे पहले मधेसी जयचन्दों से लडेगी ! परिणाम जो भी हो ! इस बार शायद नेतृत्व ने वह भूल किया तो लडाई शायद लम्बे दिनों तक भी चलने की संभावना बढ़ सकती है , लेकिन शासक दलाल , पदलोलुप और जयचन्द नहीं होंगे ? नेताओं के चाटुकार और पदलोलुप कुछ कार्यकर्ता जरुर होंगे , मगर अब तुम्हारे इस इतिहास को देख और भाषण पर प्रभावित शायद जनता नहीं रहेगी !
मेरा सुझाव यही होगा की अभी कुछ समय है , अपने आप को सुधारने का , हो सके तो जनता और यहाँ की मिट्टी से माफी माग़ लो ! शायद क्षम्य हो जाये ? अन्यथा प्रत्येक जिले जिले के कार्यकर्ता और जनता में विरोध की बारूद बन चुकी है , शायद कहा कब फूटे , आंधी जोरो से चलने वाली है , अपने आप को सम्भाल लो ! ये मेरे तरफ से कोई अन्यथा न ले , कोई धमकी नहीं है केवल सम्भालने के लिए सभी नेतृत्व को सुझाव है ! मै अपने दिल और मन की राजनीतिक विश्लेषण की ही बात लिखता हु ! “ गिर कर उठाना , उठ कर गिरना ,, यही समाज और समय ने सिखाया भी है ! मै नहीं हम सब की भावनाओं पर भी जरा अंतरआत्मा से सोचे ? आज के लिए बस छोटा सा इतना ही !!! धन्यवाद !!!