Fri. Mar 29th, 2024

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य शरीर सर्वेश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति है । भगवान ने मनुष्य को दस इन्द्रियां एक मन और बुद्धि देकर सर्वगुण सम्पन्न बनाया है । फिर भी बहुतेरे लोग यह मानते है कि मनुष्य धन, सम्पत्ति और वैभवादि से ही सम्पन्न बनता है और इनके अभाव में वह दरिद्रता का दंश ही झेलता है । दूसरी ओर संत स्वभाव वाले लोग संतोष को ही परम धन की संज्ञा देते है । संत प्रवर श्री कबीर दास जी तो यहाँ तक कहते हैं कि मनुष्य के पास जब सन्तोषरूपी सम्पदा का आविर्भाव होता है, तब सब प्रकार के धन धूल के समान हो जाते हंै, अर्थात् सन्तोष सबसे बड़ा धन है, जिसके मिलने पर किसी धन को प्राप्त करना शेष नहीं रहता–
गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन धन खान ।
जब आवे संतोष धन तो सब धन हरि समान ।।
आज चारों ओर अशान्ति की ज्वाला धधक रही है । हर आदमी अशान्त नजर आता है, क्योंकि वह निरन्तर किसी न किसी वस्तु अथवा परिस्थति का अभाव अनुभव कर रहा है । यह एक विडम्बना ही कही जाएगी कि सब कुछ होते हुए भी एक अजीब तरह का अभाव मनुष्य को घेरे हुए है । कोई भीयक्ति पूरी तरह संतुष्ट नजर नहीं आता । किसी से भी बात करके देख लो, हमें यही सुनने को मिलेगा कि बांकी सब तो ठीक है, बस एक अमुक चीज की कमी है । यह भी देखने को मिलता है कि सम्पन्नता में जीवन जीनेवालायक्ति अधिक दुःखी है । और विपन्नता में जीवनयतीत करने वाले लोग अपेक्षाकृत कम दुःखी है । सम्पन्न लोग परिस्थितियों का रोना अधिक रोते हें जबकि विपन्नता में जीनेवाला प्राणी शिकायत कम करता है । वह अपना जीवन अनन्त शक्ति के प्रति आस्थावान होकर बिताता है और अपने में मग्न रहता है ।
बड़े–बड़े जो दीखे लोग । तिनको त्यापै चिंता रोग ।
कहने का तात्पर्य है, मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि वह कभी किसी भी परिस्थितियों से सन्तुष्ट नहीं होता, यहाँ तक कि एक सम्पन्नयक्ति भी अपनी सम्पनता में विपन्नता के ही दर्शन करता है, उसकी नजर हमेशा उस वस्तु पर रहती है, जो उसके पास नहीं होती और सब चीजे तो एक वैभवशालीयक्ति के पास भी नहीं हो सकती । इस बात को हम एक बोधकथा के माध्यम से भी समझ सकते है ।
सुन्दर वन में एक कौआ रहा करता था, उसने पहले कभी बगुला को नहीं देखा था । बरसात का मौसम आया तो दूर देश से एक बगुला उड़कर उस सुन्दर वन में आया । उसे देखकर कौए को बड़ा दुःख हुआ । उसे लगा कि उसका रंग कितना काला जब कि बगुला कितना गोरा और सुन्दर है । उसने बगुले के पास जाकर कहा– बगुला भाई आप तो बहुत गोरे हैं, देखते ही मन को मोह लेते हैं । यह देख सुनकर आपको बहुत सुख मिलता होगा । बगुला बोला– अरे मैं तो पहले से ही दुःखी हूँ । जरा, तोता को देखो, वह कितने सुन्दर दो रंगों से रंगा है । मुझ पर तो एक ही रंग है । अब दोनों मिलकर तोते के पास पहुुँचे और उसकी सुन्दरता की प्रशंसा करते हुए पूछा– हे तोते ! आपको अपनी प्रशंसा सुनकर कितना आनन्द मिलता होगा । आप बड़े सौभाग्यशाली है, जो आपको भगवान ने इतना सुन्दर और बनाया है । तोता बोला– अरे मैं तो तुम दोनों से ज्यादा दुःखी हूँ । जरा मोर को देखो, वह कितने सुन्दर रंगों से रंगा हुआ है । अब तीनों मिलकर मोर के पास पहुँचे तो देखा कि मोर को मारने के लिए शिकार उसके पीछे लगा हुआ है । मोर के सुरक्षित होने पर उन्होंने मोर से अपनी बात कही तो मोर बोला– भाइयो, मेरा जीवन तो मेरे मनमोहक रंगों और पंखों के कारण दूभर और असुरक्षित हो गया है । ये रंग न होते तो आज मैं भी तुम लोगों की तरह चैन की वंसी बजा रहा होता । अब उन सबकी समझ में यह बात आयी कि भगवान ने हर प्राणी को मौलिक और विशिष्ट पहचान वाला प्राणी बनाया है । किसी को छोटा अथवा बड़ा नहीं बनाया है । यदि हम असन्तुष्ट रहना चाहे तो हर परिस्थितियों में असन्तुष्ट रहेंगे, पर यदि सन्तुष्ट रहना चाहे तो भी हर परिस्थितियों में सन्तोष के कारण उपलब्ध हैं ।
दुनिया में ऐसे कई लोग मिल जाएंगे, जो अति सम्पन्न होते हुए भी सादगी से आम लोगों की तरह रहना पसन्द करते हैं । विश्व की जानी–मानी कम्पनी इबे के संस्थापक पियेरे ओमिदयार कहते हैं कि मेरे पास इतना धन है कि दुनिया की महंगी से महंगी गाडी खरीद सकता हूँ, पर जब आपको यह पता चलता है कि आप सब कुछ खरीद सकते है तो आपकी कोई इच्छा शेष नहीं रह जाती । तड़क–भड़क से दूर रहनेवाले पियरे कहते है कि जीवन में सादगी अमूल्य होती है, विश्व की एक अन्य जानी–मानी कम्पनी फेसबुक के संस्थापक मार्क जुक्करवर्ग अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर लिखते हैं कि वह कम से कम पारिश्रमिक लेने में विश्वास करते हैं और अपनी सारी इच्छाओं को दफन करना चाहते हैं । वह अकसर साधारण ही शर्ट में नजर आते हैं, वे कम कीमतवाली फाँक्सवैगन जीटी आई कार चलाते हैं ।
भारत की प्रसिद्ध आईटी कम्पनी के मालिक अपने कार्यालय जाने के लिए आटो रिक्शा का इस्तेमाल करते हैं । वे प्रति वर्ष करोड़ो रूपयों का दान करते हैं पर अपने पर कुछ खर्च करना उन्हें पसन्द नहीं है । एक अन्य जानी–मानी कम्पनी एप्पल के सीईओ टिम कुक २४०० करोड़ डॉलर के मालिक हैं । पर फिजूलखर्ची कतई नहीं करते । अमेरिका में इनका घर मात्र २०१५ स्क्वायर फीट में है । वे कहते हैं कि मैं अपनी पहचान साधारण रहन–सहन से बनाना चाहता हूँ । वहीं दुनिया की एक प्रसिद्ध कम्पनी टम्बलर के संस्थापक डेविड कार्प के रहन–सहन को देखकर कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता है कि वे अरबपति है, वे विलासितावाली वस्तुओं का उपभोग नहीं करते और अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम रखने में विश्वास करते हैं । इन सब धनीयक्तियों की जीवन शैली से यह बात तो प्रमाणित होती ही है कि ‘सुख’ सम्पन्नता का मोहताज नहीं है, वह हमारी सोच और सन्तुष्टि का हमराही है ।

 



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