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नेपाल में पेन्टिंग का अच्छा अवसर है : डॉ. संजीदा खानम

डॉ. संजीदा खानम

डॉ. संजीदा खानम भारत के विख्यात आर्टिस्ट हैं । उन्होंने श्रीलंका और भूटान के विभिन्न आर्ट गैलरी में अपनी कला प्रस्तुत कर चुकी हैं । एक हफ्ते पहले काठमांडू के ठमेल में स्थित मिथिला यें आर्ट गैलरी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय आर्ट वर्कशॉप में अपनी चित्रकारी के जरिये लोगों का दिल जीत लिया । ध्यातव्य है कि डॉ. संजीदा खानम ने एम.जी. काशी विद्यापीठ वराणसी से सन् २००९ में ललित कला में विद्यावारिधि की उपाधि हासिल की है । चित्रकारी के क्षेत्र में ढेर सारे पुरस्कार से सम्मानित डॉ. संजीदा फिलहाल बम्बई आर्ट सोसाइटी से जुड़ी हुई हैं । चित्रकारी से सम्बन्धित विभिन्न विषयों में हिमालिनी के सह–सम्पादक विनोदकुमार विश्वकर्मा ने डॉ. संजीदा खानम से बातचीत की । पेश है, बातचीत का सम्पादित अंश–
० ललित कला से आप कैसे जुड़ी ?
– देखिये, मुझे बचपन से ही पेन्टिंग में रुची थी । बचपन में अपने घर की दीवारों पर कुछ न कुछ पेन्टिंग बना लेती थी । और पेन्टिंग भी अपने शरीर में पोत लेती थी । मुझे पेन्सिल से ड्रॉइन्ग करना अच्छा नहीं लगता था, कलर से ज्यादा खेलती थी मैं । मेरी दीदी भी पन्टिंग से जुड़ी हुई थी । उनके सारे पेन्ट्स को खोल–खोलकर पेन्टिंग करती थी । दीदी मुझे डांटती भी थी । मैं कहती थी कि देखों, तू छोटे–छोटे पेन्ट्स से काम करती हो, एक दिन मैं भी बड़े–बड़े पेन्ट्स से काम करुंगी । मेरे पापा इंजीनियर थे, लेकिन वे भी पेन्टिंग कर लेते थे । मुझे लगता है कि पेन्टिंग मेरे परिवार के गॉड गिफ्ट है । बचपन में अपनी सहेलियों को मैं पेन्टिग बना देती थी और वे मेरे होमवर्क बना देती थी । इस प्रकार धीरे–धीरे मेरी रुची पेन्टिंग की ओर बढ़ती गई । और आज मैंने इसी विषय पर उच्च शिक्षा भी हासिल कर चुकी हूँ ।
० समाज के लोग किस प्रकार कला से जुड़े हुए हैं ?
– सभी के अंदर कला है, चाहे वह फोक आर्ट के रुप में हो, या ट्रेडिशनल आर्ट के रुप में हो या कन्टेम्परेरी के रुप में ही क्यों न हो । समाज के हर लोग यही चाहता है कि हमारा घर बिखरा न हो, इसके लिए वे घर को सजाते हैं । इसी प्रकार किसी के अंदर डांस की कला होती है, किसी के अंदर खाना बनाने की कला होती है । किसी के अंदर पेन्टिंग की कला होती है । किसी के अंदर म्यूजिक, गीत, परफॉमिंग करने की कलाएं होती हैं । इस प्रकार देखा जाए तो हर लोगों के अन्दर कुछ न कुछ कला अवश्य होती है ।
० ललित कला से लोग क्यों जुडे ? आप क्या कहती हैं ?
– देखिये, ललित कला एक पावर है । आपके अंदर अगर कोई कला है तो आप कभी बेरोजगार नहीं होंगे । लोग इंजीनियरिंग व डॉक्टरी करके रोजगार की खोज में निकलते हैं । लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें योग्यता के अनुसार की नौकरी नहीं मिलती है । आपके अंदर अगर सिंगिंग, म्युजिक, पेन्टिंग, स्कल्पचर, फोटोग्राफी जैसी कलाआों में कोई भी कला हो, तो इस कला के जरिये आप अपनी आमद खर्च निकाल सकते हैं । आप अपने बच्चे को आइएस ऑफिसर बनाएं लेकिन उनके अंदर एक कला भी हो तो उसका स्वभाव सफ्ट होगा और वह सामाजिक भी होगा । कला के जरिये भी वह बच्चा अपनी आमद खर्च निकाल लेगा ।
० कैसा है नेपाल में ललित कला का अवसर ?
– मुझे लगता है कि अन्य देशों की अपेक्षा नेपाल में पेन्टिंग का ज्यादा अवसर (स्कोप) है । आर्ट के प्रति यहां के लोगों में जागरुकता भी ज्यादा है । नेपाल आए हुए एक हफ्ते हो गए । जिस दिन से मैं इस अंतर्राष्ट्रीय आर्ट वर्कशॉप में शामिल हुई, तब से लेकर समापन के दिन तक मैंने देखा कि यहां के हर सिनियर–जुनियर आर्टिस्ट एक साथ काम किया । कोई भी आर्टिस्ट अपने आप को बड़ा नहीं माना । हम सभी ने एक साथ एनज्वॉय किया, मस्ती किया । र्और एक साथ काम भी किया । इस प्रकार हम देखते हैं कि नेपाल में पेन्टिंग का अच्छा अवसर है, लेकिन पेन्टिंग अच्छा होना चाहिए ।
० अंत में आप हिमालिनी के जरिये कुछ कहना चाहेंगी ?
नेपाल आने से पूर्व मेरे मन में एक सवाल उठता था कि नेपाल हमारे लिए परदेश है । हमें अपना आदमी नहीं मिलेगा । हमारी भाषा भी वहां के लोग नहीं समझ पाएंगे । लेकिन मिथिला यें आर्ट गैलरी में आने के बाद मुझे यही से एक अपनापन, लगाव व अच्छे–अच्छे विचार मिलने लगे । बहुत सारी चीजों के बारे में जानकारी हुई । नेपाल मुझे अपने ही देश जैसा महसूस हुआ । क्योंकि यहां की संस्कृति, सभ्यता, भाषा, वेशभूषा आदि सभी चीजें समान हैं । यहां तक कि यहां के लोग भी अंग्रेजी से ज्यादा हिन्दी समझते हैं, बोलते हैं और लिखते हैं भी हैं । अगामी दिनों में मुझे अपने विचार अभिव्यक्ति के लिए किसी प्रकार की समस्या नहीं होगी । यहां के लोग भी बहुत अच्छे हैं, सहयोगी हैं । हिमालिनी की पूरी टीम को तहेदिल से शुक्रगुजार करना चाहती हूं ।

डॉ. संजीदा खानम

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