मधेश को लंबी लड़ाई लड़नी है,मिलकर लड़ने की आवश्यकता है : मुरलीमनोहर तिवारी
मुरलीमनोहर तिवारी ( सिपु ), बीरगंज , २२ जून | स्व.राजीव दीक्षित जी ने जो बातें कही थी, हमारे देश नेपाल पर हु-ब-हु सटीक बैठता है,”जिस ब्यक्ति को शैक्षिक योग्यता के आधार पर चपरासी की नौकरी नही मिल सकती, वह मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक हो सकता है। बिडम्बना है इस देश की, कि जिस व्यक्ति ने जीवन में कभी खेत में हल नहीं जोता वह कृषि मंत्री है। इसी देश में कई ऐसे शिक्षा मंत्री हुए है, जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नही देखा। जिसने चाय की दुकान तक नही चलाई वह बाणिज्य मंत्री होता है। अर्थशास्त्र का क-ख तक नहीं जानने वाला बार-बार अर्थमंत्री बनता है। जिसने अपने बच्चो को सेना में नही भेजा, जिसके बच्चे बिदेशो में पलते है, वह रक्षा मंत्री है। जिसे बिज्ञान और तकनीक का अंतर पता नही वह बिज्ञान मंत्री है और जो इनसब में भी कुछ नही है, वह प्रधानमंत्री है। जो नेताओ के घर में रोटियां पकाती रही वो राष्ट्रपति हो सकती है”।
अज्ञानी जब ज्ञानी का शासक होता है तो राष्ट्र का पतन हो जाता है। मूर्ख दो ही होते है, पहला शासक, जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा साधक जो शासक को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है और उसका पालन कराता है। नतीजा तबाही, बर्बादी, बिनाश,बंटवारा…..और रही बात जनता की तो जनता तो हर युग में जनता ही रहती है, जो कुछ नहीं जानता। जो दुःख, शोषण और शासन झेलती रहती है, तख़्त बदलते है, ताज बदलते, राजा-महाराजा के चेहरे बदलते है, लेकिन जनता वही की वही रहती है।
वह जनता कही की भी हो सकती, चाहे पहाड़ की हो या मधेश की। जनता को मिलता क्या है, आश्वासन का झांसा। अब मधेश में ही बहुत उथल-पुथल मचा है। बात शुरू होती है, मोर्चा के ६घटक दल मिलकर एक हो गए, सब ने इसका स्वागत किया। मोर्चा में दो दल रह गए स.स. फोरम और राजपा। राजपा ने फोरम को मोर्चा से निकाल दिया, या यों कहें राजपा ख़ुद अलग़ हो गया, विरोधाभाष यही से शुरू हुआ, मधेश को एकत्रित करने के उद्देश्य से गठित राजपा एकता के कार्य में नहीं, फोरम के बिरोध में लगा।
बिवाद का पहला कारण रहा, फोरम का पहाड़ में चुनाव लड़ना, यहां ये प्रचारित किया गया कि फोरम का पहाड़ में संगठन करना, मधेश के लिए घातक है। जबकि हम ये भूल गए की हमारी लड़ाई पहाड़ी लोगों के खिलाफ नहीं बराबरी के अधिकार के लिए है। बाबूराम भट्टराई को साथ लेना नागवार गुजरा, अगर बाबूराम भट्टराई को मधेश में से जोड़ना ग़लत है, तो राजपा का शरद सिंह भंडारी को जोड़ना सही कैसे हो सकता है ? वैसे भी पहाड़ में बड़े दल इस प्रकार मिले की कई जगह निर्बिरोध हो गया, फोरम के चुनाव लड़ने से कम से कम चुनाव अवधि भर तो निर्विरोध होने से रोका गया। भगवन राम, रावण से लड़ने में बिभीषन का साथ लिए तो वानर सेना ने तो बगावत नही किया, नहीं किसी को प्रश्न उठाते सुना। फिर उपेंद्र यादव पर हंगामा क्यों बरपा।
मधेश में मधेश के अधिकार के लिए कई संगठन कई तरीक़े से काम करते है, जब तक उनके लक्ष्य का समय समाप्त नही हो जाता, किसी को ग़लत या सही नही ठहरा सकते। फोरम का तर्क है,की संविधान संशोधन के लिए शक्ति संतुलन आवश्यक है, इसके लिए चुनाव में जाना होगा, अगर चुनाव में नही गए तो जनता कांग्रेस, एमाले, माओवादी में से एक को चुनने को बाध्य होगी, जिससे हमारी शक्ति और कमजोर होगी, फिर यही स्थिति बिधायक और संसदीय चुनाव में भी रहेगी। जिससे मधेश चक्रब्यूह में फंस जाएगा।
राजपा का मानना है, जब तक संशोधन नही होता चुनाव में नही जाना चाहिए, इसी अड़ान का लाभ लेकर पहाड़ में चुनाव करा लिया गया, और अब प्रदेश न.२ को छोड़कर बाक़ी जगह कराया जा रहा है, जबकि गौरतलब है कि एक ही समय में पूरे नेपाल में चुनाव हुआ रहता तो अन्य दलों की शक्तियां बट जाती, लेकिन अब जब भी प्रदेश २ में चुनाव होगा सारे दल अपनी पूरी शक्ति झोंक देंगे, इसमें पैसा पानी की तरह बहाया जाएगा। दूसरी बात राजपा ने चुनाव बहिष्कार तो किया, लेकिन कही भी चुनाव रोक तो नहीं पाया। रामग्राम के कार्यक्रम के दौरान पुलिस ने गोली चलाई, उस समय महंथ ठाकुर से साथ-साथ अन्य नेता गण को मंच छोड़कर भागने की जरूरत क्या थी ? जब आंदोलन और संघर्ष ही कर रहे तो जनता गोली खा सकती है, आप क्यों नहीं ?
उसके बाद अध्यक्ष मंडल के ६ नेता कही भी शामिल क्यों नही हुए, ६-६ युवा और विद्यार्थी संगठन कुछ क्यों नही किए ? प्रदेश न.१ और ५ के राजपा नेता सक्रीय क्यों नही हुए ? प्रदेश न.५ में जो-जो सांसद राजपा से जीते है, उनके ही रिश्तेदार स्वतंत्र उम्मीदवार क्यों है ? अगर राजपा की नियत ठीक है, तो पहले उन नेताओं पर कार्यवाही करें, अन्यथा इस चुनावी बहिष्कार को चुनाव चिन्ह ना मिलने का बहिष्कार माना जाएं ? सबसे बड़ी बात भारत में आजादी के संघर्ष में कई संगठन थे, नरम दल, गरम दल, कांग्रेस, मुस्लिम लीग, आजाद हिंद फौज, लेकिन आजादी आने तक इन्होंने कभी आपस में टकराव नहीं किया, गांधी हमेशा सुभाष चंद्र बोस को स्नेह करते थे, और बोस भी गांधी जी का सम्मान करते थे, यहाँ तक की अपने फ़ौज की टुकड़ियों का नामकरण भी अहिंसक गांधी जी और अन्य नेता के नाम पर करते थे। मधेश को अभी बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है, इसलिए आपस में नही लड़ कर, मिलकर लड़ने की आवश्यक्ता है।