विद्रोह करना कोई अपराध नहीं : विशेश्वर प्रसाद कोईराला
विद्रोह न करने बालों की संसार में कोई अस्तित्व नहीं है । बदलते हुए परिस्थितियों से संघर्ष न करने बाले डायनोसर की दुनियाँ में सिर्फ कहानी रह गयी है, अस्तित्व नहीं । अपने अस्तित्व रक्षा के लिए भी मधेशी समाज को विद्रोह करना होगा । विद्रोह करने के लिए डर को त्यागना होगा । क्यूँकि डरपर ही शासक का शासन टिका होता है । हम डरना छोड दें तो अपना देश निर्माण कर सकते हैं । शासन कायम कर सकते हैं, अत्याचारी शासकों से अलग होकर नयाँ भविष्य खोज सकते हैं ।
जो शासन हमारा नहीं, वे शासक हमारा कैसे हो सकता ? जिस धरतीपर हमारा शासन नहीं, वह देश हमारा कैसे हो सकता ? जिस प्रशासन में हमें डरकर रहना पडता हो, उसमें हमारी सहभागिता कैसे हो सकती ? जहाँ पर हमारे राष्ट्रियता का पहचान नहीं, भाषा की मान्यता नहीं और संस्कृति का जर्गेना नहीं, वह हमारा राष्ट्र कैसे हो सकता ?
एक तरफ राजपा कहने लगी है कि मधेशियों का माग पूरा किए बगैर मधेश में चुनाव होना बडी दुर्घटना ला सकती है तो दूसरी तरफ नेपाल सरकार का कहना है कि चुनाव न होने से देश में बहुत बडी संकट की खतरा मंडरा रही है । दोनों पक्षों की भाषा और अडानों से तो यही संकेत मिल रहे हैं कि मधेश में संकट अवश्यम्भावी है । उस संकट से मधेश को ही क्षतविक्षत होना है । और वह संकेत दिख रही है मधेशी म्यादी प्रहरियों के भेष में भी । मधेश को तोडने के लिए एक तरफ चुनाव का प्रपंच रचा जा रहा है । वहीं दूसरी तरफ मधेशी यूवाओं को म्यादी प्रहरी में भर्ना कर नेपाली शासन एक तीर से कई शिकार करने लगी है । चन्द हजार रुपयों में मधेशी यूवाओं का अस्तित्व ही कुछ महीनों के लिए खरीद सा लिया गया है । ख्वाबों के रंङ्गीन दुनियाँ में सफर कर रहे मधेशी यूवा अपने को नेपाली शाही सेना ही समझकर अपने ही मधेशियों के साथ बद्तमिजी करने लगे हैं । अपस में भिडन्त करने लगे हैं । नेपालियों की गुलामी को ही अपनी मर्दानगी और शक्ति मानने लगे हैं ।
