विद्रोह करना कोई अपराध नहीं : विशेश्वर प्रसाद कोईराला
मधेशी दल इतने उल्लू सा दिखायी देने लगी है कि वो अपने ही किए पर बारम्बार बेइज्जत हो रही है । छः दल सम्मिलित मधेशी पार्टियों का राजपा अब न मधेश का, न नेपाल का होने का संकेत मिलने लगा है । सुशिल, रामचन्द्र, विद्या भंडारी, प्रचण्ड और देउवाओं ने बारम्बार एक ही दलिल देकर मधेशी संसदीय मतों से राष्ट्रपति तथा प्रधानमन्त्री के पदों पर पहुँचने का काम किया है । हर चुनाव में जितने बालों ने जितने से पहले संविधान को संसोधन करने, मधेश के मागों को सम्बोधन करने की दलिलें दी है । मगर जितने के बाद सबों ने एक ही काम का अन्जाम दिया है कि संविधान संसोधन बिना ही चुनाव हो जिसमें नेपाली राज पूर्णतः सफल है । शेर बहादुर देउवा ने भी उसी परम्परा को कायम करते हुए उनके पास दो तिहाई की बहुमत होते हुए भी संविधान संसोधन से साफ इंकार कर दी है । चुनाव के बाद विपक्षियों को सहमति में लाकर ही संविधान संसोधन करने की जो देउवा ने तर्क किया है, उससे मधेश में प्रचलित एक चर्चित उखान याद आती है, “न राधा के नौ मन सत्तु होइहें, न राधा नचिहें ।”
मधेश को विद्रोह ही करना है तो विद्रोह वो होनी चाहिए जिससे मधेश को अन्त्यहीन आजादी मिले । कभी गैरों से कोई समझौतों के लिए शहादत देनी न पडे । क्यूँकि बी.पी ने कहा है, “विद्रोह करना कोई अपराध नहीं, कोई पाप नहीं । कोई देशद्रोह नहीं होता, अगर देश निर्माण की बात आती है तो ।”
