बहुत जल्द टूटेगा मधेश का चक्रव्यूह : मुकेश झा
नेपाल के राजनैतिक महाभारत में मधेश के विरुद्ध सत्ताधारियों के द्वारा उसी तरह की चक्रव्यूह निर्माण किया गया है, जिसको तोड़े बगैर मधेश का स्वाभिमान और अधिकार वापस आना मुश्किल है ।
मधेश के राजनैतिक चक्रव्यूह का तीसरा घेरा मधेशवादी राजनैतिक पार्टियों में मधेशवाद की कमी ।
महाभारत एक ऐसा शब्द जो तुमुल युद्ध का पर्याय बन गया है, एक ऐसा युद्ध जिसमे अनगिनत लोग मारे गए और युद्ध के साथ ही एक युग समाप्त हो गया । आज भी अगर कहीं युद्ध की चर्चा होती है तो महाभारत का ही नाम लिया जाता है । महाभारत काल सिर्फ युद्ध के लिए प्रख्यात हो ऐसी बात नहीं वह एक घटनाक्रम है और उसके पात्रों ने मानव सभ्यता के मूल्य मान्यताओं का चित्रित किया है । अपने–अपने कर्तव्य से च्युत होने से समष्टि परिणाम क्या हो सकता है इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण महाभारत की घटना है ।
नेपाल के राजनैतिक महाभारत में मधेश के विरुद्ध सत्ताधारियों के द्वारा उसी तरह की चक्रव्यूह निर्माण किया गया है, जिसको तोड़े बगैर मधेश का स्वाभिमान और अधिकार वापस आना मुश्किल है ।
नेपाल एक ऐसा भूगोल है, जिसमें बहुराष्ट्रीयता समाहित है । इसका इतिहास बता रहा है कि यह अलग–अलग छोटे–छोटे राज्यों को जोड़कर एक देश बनाया गया है, तो इसमें बहुराष्ट्रीयता होना कोई आश्चर्य नहीं है । नेपाल के शाह वंशीय राजतन्त्र के सूत्रधार पृथ्वीनारायण शाह ने नेपाल को ‘चार वर्ण छत्तीस जाति की फुलवारी’ कह कर सम्बोधित किया जो कुछ हद तक सही था परन्तु पंचायत सत्ता के सूत्रधार ने जो ‘एक भाषा एक वेष’, एक राजा एक देश वाली बात कही उससे लोगों को अपनी पहचान मिटती हुई दिखी और सजग लोगों ने विद्रोह किया जिसके फलस्वरूप नेपाल आज एक लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में कागज पर लिखा हुआ है ।