बहुत जल्द टूटेगा मधेश का चक्रव्यूह : मुकेश झा
नेपाल एक ऐसा ‘खेत’ है जहां आतंकवाद का फसल लहलहाने की संभावना बहुत ही प्रबल है ।
जैसे हम अपने घर को सम्पन्न बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं उसी तरह हमे स्थानीय तह के माध्यम से गांव एवम् नगर को सम्पन्न बनाना होगा । जितना कम जनसँख्या वाला गांव हो उतनी ज्यादा संपन्नता । लेकिन नेपाल सरकार मधेश की सम्पन्नता तो देख ही नहीं सकती । इसीलिए कांग्रेस, एमाले व माओवादी के स्थानीय मधेशी नेतृत्व को अपनी पार्टी के केन्द्र पर दवाब दे कर मधेश को सम्पन्नता की ओर ले जाना चाहिए ।
नेपाल के राजनैतिक चक्रव्यूह का चौथा घेरा वैदेशिक कूटनीति की है, भौगोलिक दृष्टि से विश्व के दो महाशक्ति देश चीन और भारत के बीच अवस्थित इस देश पर दोनों ‘मित्र राष्ट्र’ अपनी प्रभुता तो दिखाना ही चाहते हैं, अमेरिकन और यूरोपीयन शक्ति भी अपनी शतरंज पर इसे बिछाना चाहता है । चीन एवम् भारत की गतिविधियों पर नजदीक से नजर रखने के लिए नेपाल एक उपयुक्त भूगोल है ।
सिर्फ वैदेशिक कूटनैतिक नियोग ही नहीं, आतंकवादी गतिविधि करने वाले गिरोहों के लिए भी नेपाल की भूमि उतनी ही फलदायी है । विश्व के कुख्यात आतंकवादी गिरोह के कुछ सदस्य पकड़े जाने, जाली नोटों के कारोबारी गिरफ्तार होने की खबर आती रहती है । भले ही वैदेशिक कूटनैतिक हस्तक्षेप एवम आतंककारी गतिविधि के लिए प्रयोग किया जा रहा नेपाल की भूमि का प्रत्यक्ष असर बाहर नहीं दिखाई दे रहा हो परन्तु यह नेपाल के चक्रव्यूह का दुतरफा घेरा है और इसका दूरगामी असर बहुत ही खतरनाक होने वाला है । नेपाल में वैदेशिक हस्तक्षेप तब तक रहेगा जब तक यह पराश्रित है । जब तक देश वैदेशिक अनुदानों पर चलता रहेगा, नेपाल को दाता राष्ट्र के स्वार्थ की पूर्ति करना ही होगा । भ्रष्ट प्रशासन, गैर जिम्मेवार नेतृत्व, अचेत नागरिक जहाँ हो वहां आतंकवादी अपना पैर फैलाये यह बड़ी बात नही । नेपाल एक ऐसा ‘खेत’ है जहां आतंकवाद का फसल लहलहाने की संभावना बहुत ही प्रबल है ।
देश के आंतरिक रोजगार के अवसर को समाप्त कर बैदेशिक रोजगार में युवाओं को जाने के लिए मजबूर करना भी चक्रव्यूह का एक घेरा है । युवा परिवर्तन का परिचायक होता है, अगर युवा ही देश से बाहर हो, तो देश के अंदर होने वाली राजनैतिक बेईमानी में कोई बोलने वाला नहीं रहेगा और तथाकथित राष्ट्रीय पार्टी अपने मन मुताबिक देश को नचा सकेगे इस सोच से प्रभावित हो कर इस घेरा को खड़ा किया गया । नेपाल से युवाओं का पलायन भी दो ध्रुव में हो रहा है । एक आर्थिक रूप से सक्षम परिवार के युवाओं का पलायन और एक आर्थिक रूप से अक्षम परिवार के युवा का पलायन । अगर अनुपात के हिसाब से देखें तो मधेश से जो युवाओं का पलायन है उनमें ज्यादातर परिवार की आर्थिक अक्षमता को समाप्त करने के लिए, परन्तु पहाड़ी समुदाय के युवाओं का पलायन सक्षम परिवार से है, जिसमें ज्यादातर उच्च शिक्षा हासिल करने या नौकरी करने के लिए हैं । इससे राजनीति में भी फर्क पड़ा है । जो युवा सक्षम परिवार से गये हैं वह ज्यादातर सत्तासीन पार्टीयों काँग्रेस, एमाले, माओवादी के पक्षधर हैं और अपनी समर्थित पार्टी की गतिविधियों को हर तरह से सहयोग कर रहे हैं, परन्तु मधेशियों की जो समर्थित पार्टी है वह बाध्यतावश उतना सहयोग नहीं कर पाते । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काँग्रेस एमाले माओवादी समर्थित बहुसंख्यक गैर आवासीय नेपाली यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में एवम् बौद्धिक परिवेश में होने के कारण उनकी आवाज गलत को सही और सही को गलत में परिणत कर देती है परंतु मधेशी युवा विदेश में होते हुए भी मलेशिया, अरब, दुबई, कतार जैसे देशों में शारीरिक श्रमिक के रूप में कार्यरत होने से वह अपनी आवाज उस स्तर तक नहीं पहुंचा सकते ।