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पश्चिम बंगाल की आबोहवा बदल गई है । लाल की लाली फीकी पड गई है । बर्तमान बीरभूम और हुगली जिले रेड फोर्ट माने जाते हैं, वहा भी ममता की बयार बह गई । ममता के तृणमूल के अम्बेला की छाव तले आ गया है पूरा का पूरा पश्चिम बंगाल । सन् १९७० में पश्चिम बंगल में बाममोर्चा की ऐसी आाधी चली थी, जब उसने कांग्रेस से सत्ता छिनी थी । कांग्रेस ३५ साल तक वहा रही । अब इसे संयोग कहें या जो कहें कि फिर ३५ बर्षबाद ही वहा से बाममोर्चा का नामोनिशान मिटा और तृणमूल की ममता की जीत हर्ुइ । सत्ता में आने के बाद बाममोर्चा की पहचान उसकी कठोर नीतियों के कारण बनी । चाहे वह जमीन से या उद्योग से सम्बन्धित नीतियाँ हो । उसके खाते में अगर बडी उपलब्धि अगर भू हदबंदी कानून का बेहतर तरीके से कार्यान्वयन है तो शुरुआती दौर में उद्योगों की बंदी या पलायन उसकी बडी नाकामी रही । पर तृणमूल कांग्रेस सुप्रिमो ममता बनर्जी उदारवाद को सख्ती से जमीन पर उतारने की कोशिशों को ही बाममोर्चा पर हमले का आधार बना लिया ।
माकपा और पश्चिम बंगाल के बाममोर्चा का निर्माण और विकास, चार दशक से ज्यादा में फैले अनगिनत संघर्षों व जनआन्दोलनों के बीच से हुआ है । पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में बाम मोर्चा की भारी हार हर्ुइ है । उससे देश की उन बामपन्थी ताकतों को बढी निराशा हर्ुइ, जो पश्चिम बंगाल को बामपन्थ का गढÞ मानती है । बाममोर्चा सरकार को ३५ वर्षरहने के बाद और १९७७ से एक के बाद एक लगातार सात चुनाव जीत के बाद माकपा के नेतृत्व बाले बाम मोर्चा को सत्ता से हटाया गया है । जनता ने निर्ण्ाायक रुप से बदलाव के पक्ष मे फैसला लिया है और तृणमूल कांग्रेस के गठजोर को जबरदस्त जीत दिलाई है । दक्षिणपंथ से लेकर बामपंथ में माओवादियों तक तमाम ताकते इस चुनाव में पूरी तरह से एकजूट हो गई थी । यह भी साफ है कि पिछले दो साल में पश्चिम बंगाल में बाममोर्चा अपने खोये हुये जनाधारको इस हद तक दोबारा हासिल नही कर पाया, जिस प्रकार लोग उम्मीद कर रहे थे ।
उधर केरल में एलडीएफ की बहुत थोडÞे अन्तर से हार हर्ुइ है और बहुमत से सिर्फतीन सीट पिछे रहा है । युडीएफ दो सीट की बढत से किसी तरह जीत दर्ज कराने मे कामयाब रहे । उधर असम में तरुण गोगोई लगातार तीसरीबाट र्सवसम्मति से प्रदेश कांग्रेस विधायक दल के नेता चुने गए । पर सबसे ज्यादा जहाँ कायापलट हुआ वो पश्चिम बंगाल है । दरअसल, बंगाल अपनी ऐतिहासिक लीडरशीप की भूमिका को पिछले दिनों भूल गया था । राजनीतिक स्तर पर भी और सांस्कृतिक स्तर पर भी । लेफ्ट की राजनीति और कांग्रेस की गलत नीतियो ने उसे जडताबादी बना दिया । सांस्कृतिक स्तर पर वो रवीन्द्र संगीत से आगे नहीं बढÞ पाया और राजनीतिक स्तर पर उसे सिर्द्धार्थ शंकर रायके शासन के दिये धाव ने बाहर निकलने नहीं दिया । ६० के अंतिम और ७० के शुरुआती बर्षोंं में नक्सलबादी हिंसा से निपटने का जो हिंसक तरीका कांग्रेस की सरकार ने निकाला था उसे किसी भी सभ्य समाज में जायज नही ठहराया जा सकता । घाव इतने गहरे थे कि पश्चिम बंगाल को हर कांग्रेसी में सिर्द्धार्थ शंकर राय ही नजर आता था । सीपीएम की किस्मत अच्छी थी कि उसके पास ज्योति बसु जैसे नेता थे, जो मार्क्सवादी जरुर थे लेकिन मिजाज वा स्वभाव से ब्यवहारवादी । वे बाहर से सीपीएम के अनुशासन से बंधे थे । लेकिन सोच के सतर पर उन्होंने अपने नीजी मार्क्सवाद को जडÞ नही होने दिया । जैसे माओ ने सोवियत रुस के लेनिन से प्रेरणा तो ली, लेकिन हुबहू नकल नहीं की ।
पश्चिम बंगाल में पिछले ३४ बर्षों से दरअसल यह हुआ कि सीपीएम ने लोकतंत्र के बावजूद राजनीति और समाज, दोनों को अपने नियन्त्रण में ले लिया । जिस दौरान आम बंगाली अपने पिछडेपन से जूझ रहा था, उसी दौडÞ में देश दुनियाँ की पाँचवी सबसे बढी अर्थव्यवस्था बन गया । बंगाल को अपनी बदहाली दिखी, उसका कारण दिखा, बह भी बदलने को मचल उठा, पर जब उसे वैज्ञानिक दिशाहीनता में फंसी सीपीएम में पुरानी मानसिकता से निकलने का जज्बा नही दिखा तो उसने तौबा करने का मन बना लिया । ममता सही समय पर मौजूद थी । सही राजनीति कर रही थी बरना तमाम ड्रामे करनेबाली को बंगाल कई बार नकार चुका था । ममता भले ही देर से आई पर ये पडाव है या अंतिम मुकाम ये तो आनेवाला वक्त ही बतायेगा । जो भी हो पश्चिम बंगाल में इसबार लोकतान्त्रिक जीत हर्ुइ है । जनता अब काफी समझदार हो चुकी है, फिर चाहे वह बिहार की जनता हो या तमिलनाडु की । अब जनता असली लोकतन्त्र के मूल्यों को समझ चुकी है । चुनाव के समय मे शेराब, कम्बल, साडी और नोट बांटने से अब जनता बोट देनेबाली नहीं है । अब उसे अपने असली और सही नेता की पहचान की क्षमता आ गई है । फिलहाल तो, बाममोर्चा की अप्रत्याशित हार से भारत से तो जैसे बामपन्थियो का पत्ता ही साफ हो चुका है, अब इसका असर नेपाल के माओवादियों पर किता पडता है यो तो वक्त ही बतायेगा । फिलहाल तो जनता अभी बंगाल में लोकतान्त्रिक जीत का जश्न मनाने में मग्न है, अब देखना ये है कि इस ममता की ममता बंगाल पर कबतक बरसती है या ये भी सिर्फगरजनेबाले बादल ही बनकर रह जायेंगे । आगे आगे देखिए होता है क्या । अस्तु ।।        िि
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