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92 साल बाद आरएसएस का सपना साकार, देश के तीनों सर्वोच्च पद पर स्वयंसेवक

*{मधुरेश प्रियदर्शी की स्पेशल रिपोर्ट}*

भारत के उपराष्ट्रपति पद पर एनडीए प्रत्याशी एम वेंकैया नायडू की जीत के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ गई है। आजादी के बाद ये पहला मौका है जब देश के तीनों सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर आरएसएस के स्वयंसेवक काबिज हुए हैं। उपराष्ट्रपति के पद पर वेंकैया नायडू की जीत ने संघ के सपने को साकार कर दिया है। आज की तारीख में देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति निर्वाचित वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ के आंगन से निकले हुए स्वयंसेवक हैं। इतना ही नहीं देश के सर्वोच्च पदों पर तीनों आसीन शख्सियतों की जिंदगी भी एक दूसरे से काफी मिलती जुलती है। इन तीनों नेताओं की जिंदगी के उन पहलूओं पर नजर डालते हैं जहां काफी कुछ एक जैसा दिखता है।

*गरीबी में बीता बचपन*

ये तीनों ही नेता काफी सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि से आए हैं। इनकी तीनों की जिंदगी काफी मुफलिसी में गुजरी है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जीत के बाद कहा था कि उनका बचपन फूस के घर में बीता। इसी तरह पीएम मोदी कहते रहे हैं कि बचपन में वे चाय की दुकान पर चाय बेचते थे। तो वहीं नायडू के पिता किसान थे और काफी साधारण माहौल में उनकी परवरिश हुई।

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*संघ की पृष्ठभूमि*

मौजूदा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तीनों संघ के आंगन में पले बढ़े हैं। नरेंद्र मोदी ने 17 साल की उम्र में 1967 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली। संघ प्रचारक के रूप में काम करने के दौरान पार्टी हाईकमान में उनकी पकड़ बनी और 2001 में उन्हें गुजरात का सीएम बनाया गया। 2013 में मोदी ने दिल्ली की सियासत का रुख किया और 2014 में बंपर जीत के साथ पूर्ण बहुमत की बीजेपी सरकार बनी।
आज देश के अधिकांश राज्यों में बीजेपी की सरकार है और मोदी बीजेपी की जीत का दूसरा नाम बन चुके हैं। इसी तरह रामनाथ कोविंद भी संघ की पृष्ठभूमि से आए हैं। 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद रामनाथ कोविंद तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई के निजी सचिव बने। इसके बाद वे भाजपा नेतृत्व के संपर्क में आए और संघ से जुड़ गए। साल 1993 और 1999 दो बार राज्यसभा सांसद भी रहे। दलित तबकों के लिए लगातार काम किया और बीजेपी के दलित मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे। आज वे देश के राष्ट्रपति हैं। वेंकैया नायडू की जिंदगी भी कुछ ऐसे ही गुजरी है। नायडू युवा काल से ही संघ से जुड़ गए थे और वे बचपन में संघ कार्यालय में ही सोते थे। जमीनी स्तर से काम करते हुए नायडू ने आज इस सर्वोच्च पद तक अपनी जगह बनाई है।

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*तीनों का कोई राजनीतिक गॉडफादर नहीं*

इन तीनों नेताओं में एक और समानता है। तीनों ने बिना किसी सियासी गॉडफादर के पार्टी और राजनीति में अपनी जगह बनाई। संघ के सबसे प्राथमिक सदस्य के रूप में जुड़कर सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते हुए तीनों नेताओं ने ये ऊंचाई हासिल की है। आज ये तीनों जो कुछ भी हैं वो उनकी मेहनत और मशक्कत का नतीजा है।
*साफ-सुथरी छवि*
दिलचस्प बात ये हैं कि तीनों ही नेताओं की छवि काफी साफ-सुथरी मानी जाती है। भ्रष्टाचार के आरोपों से तीनों पाक साफ हैं। यहीं वजह है कि विरोधी पार्टियां इनकों कटघरे में खड़ा करने में नाकामयाब रही हैं। 2014 में मोदी कांग्रेस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया कर सत्ता में विराजमान हुए थे। मोदी सरकार के तीन साल में भ्रष्टाचार का एक भी मामला सामने नहीं आया है। ऐसी ही स्वच्छ छवि तीनों नेताओं की है।

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गौरतलब है कि 92 साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। संघ खुद को राष्ट्रवादी संगठन बताता है। संघ का सपना इतने लंबे सफर के बाद पूरा हुआ है। आज देश के तीनों सर्वोच्च पदों पर स्वयंसेवक विराजमान हैं। संघ रुपी वट वृक्ष अब फलदार हो गया है। देश की सत्ता के इन शीर्ष पदों पर अपने स्वयंसेवकों के विराजमान होने का लेस मात्र भी घमंड संघ और उसके कार्यकर्ताओं को नहीं है। संघ अपने सेवा कार्य और सांस्कृतिक गतिविधियों में पूरे मनोयोग से लगा हुआ है। तभी तो कहा गया है कि ” संघे शक्ति युगे युगे।”

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