वह घाव जो भरा नहीं
विद्यादेवी भण्डारी
०४९ साल असार १५ गते । मेरी चार साल की बेटी निशा ने अपना जन्मदिन मनाने की काफी जिद की थी । इस समय तक मेरे परिवार में जन्मदिन मनाने की फर्र्ुसद और चलन दोनों ही नहीं था । इसी दिन पहली बार बडे खुशी के साथ छोटी बेटी निशा का जन्मदिन मनाया गया । इसी क्रम में मदन ने हंसते हुए कहा, “कल मेरा भी तो जन्मदिन था । लेकिन तुम्हें सिर्फबेटी की ही जन्मदिन याद है मेरी नहीं ।”
मदन की यह बात सुनकर मैं दंग रह गयी । पहली बार मालूम चला कि असार १४ गते मदन का जन्म दिन आता है । मैंने भी कहा अब अगले साल से आपके जन्मदिन को भी हम मनाएँगे । पहले आपका फिर बाद में बेटी निशा का जन्मदिन मनाएँगे । मेरी यह बातें सुनकर मदन मुस्कुराए बिना नहीं रह पाए ।
लेकिन वह अगला मौका फिर कभी नहीं आया । जेठ ३ गते फिर कभी ना आने के लिए वो हमेशा के लिए मुझे और अपने को छोडÞकर चले गए । मैं उनका जन्मदिन तो नहीं मना सकी । लेकिन उनकी यादों को जिन्दा रखने के लिए उनके जन्म दिवस पर हर साल मदन जयन्ती मनाती हूँ । उनके निधन के डेढÞ महीने बाद ही उनके जन्मदिवस पर मैंने एक पौधा रोपा था । जो कि हमेशा उनकी मौजूदगी मेरे आस पास या घर के पास होने का एहसास दिलाता है । उसकी शीतल छाँव में हमें ऐसा लगता है मानों उनकी छत्रछाया उनका स्नेह, उनका आशर्ीवाद आज भी हमारे साथ है ।
उनके जन्मदिन पर पहले मैंने कोशिश की कि पार्टर्ीीे तरफ से किसी कार्यक्रम का आयोजन हो लेकिन किसी ने मेरा साथ नहीं दिया । बाद में मैं खुद ही हर वर्षमदन जयन्ती मनाती और देश की वर्तमान राजनीतिक हालत पर विद्वतजनों को बुलाकर चर्चा परिचर्चा करती । कई साल बाद आखिरकार पार्टर्ीीे भी उसे माना और अब पार्टर्ीीी आयोजना में यह सब होता है ।
मदन मेरी जिन्दगी के अभिन्न अंग थे । उनके नहीं रहने का अभाव हमेशा ही मुझे टीस देती है । राजनीति में सक्रिय होने की वजह से इस बात को अपने चेहरे पर नहीं आने देती हूँ लेकिन मन में कहीं ना कहीं उनकी कमी हमेशा मुझे खलती रहती है ।
उनको गुजरे १८ वर्षहो गए लेकिन आज भी मुझे इस बात का रंज है कि उनकी हत्या करने वाले को ढूँढा नहीं जा सका । कई लोग इसे भले ही दर्ुघटना का नाम देते है । मुझे यह भी मालूम है कि इस हत्या का कोई प्रमाण नहीं मिला है । इतनी प्लानिंग करके जिस हत्या को अंजाम दिया जाता है, उसके प्रमाण थोडÞे ना मिलते है । लेकिन यदि सरकार पूरी ताकत लगा दे तो इस राज से पर्दा उठाया जा सकता है ।
मुझे यह भी मालूम है कि मदन की हत्या के बाद से मेरी ही पार्टर्ीीी तीन बार सरकार बन चुकी है । में खुद एक सरकार में रक्षा मंत्री भी रह चुकी हूँ । लेनिक फिर भी उनकी हत्या का प्रमाण जुटाने में असपल रही । इस समय सरकार का ध्यान किसी दूसरे महत्वपर्ूण्ा कामों पर है । इस वजह से उस तरफ ध्यान ना जाना स्वाभाविक है ।
लेकिन आज भी मेरा यही मानना है कि दोषी को तो सजा मिलनी चाहिए । मदन सिर्फएमाले पार्टर्ीीे नेता नहीं थे बल्कि पूरे देश के नेता थे और यह सरकार का दायित्व बनता है कि उनकी हत्या करने वाले को कानूनी कठघरे में लाए । जब तक सरकार इसको एक मिशन बनाकर नहीं चलेगी तब तक इंसाफ नहीं मिल सकता है ।
मदन को खोने की पीडा तो शायद कम ना हो । लेकिन उनके हत्यारे को सजा मिलता देख शायद वह घाव जो अभी तक भरा नहीं, उसपर मलहम का काम करे । इस एक आश लिए मैं आज तक जिन्दा हूँ ।
लेखिका ः दासढुंगा घटना में मारे गए एमाले के पर्ूव महासचिव मदन भण्डारी की पत्नी, पर्ूव रक्षामंत्री एवं एमाले की उपाध्यक्ष हैं ।)
