संविधान निर्माण पर नकारात्मक प्रभाव:
लक्ष्मणलाल कर्ण
संवैधानिक समिति अर्न्तर्गत विवाद समाधान उपसमिति की एक बैठक में नए संविधान का नाम ‘नेपालको संविधान’ रखने पर सहमति हर्इ उस समय माओवादी नेता देव गुरुंग उपस्थित नहीं थे । बैठक खत्म होने से थोडी ही देर पहले पहुँचे गुरुंगको जब समिति के संयोजक रहे उनके ही पार्टर् अध्यक्ष प्रचण्ड ने इस बात की जानकारी दी तो गुरुंग ने इस पर आपत्ति जताई । विवाद समाधान उपसमिति की बैठक में नए संविधान में संवैधानिक अदालत की व्यवस्था करने पर सहमति करने पर भी देव गुरुंग ने आपत्ति जताई थी । संवैधानिक अदालत के बदले संसद की एक समिति को संवैधानिक विवादों के विषय को देखने की जिम्मेवारी दिए जाने की बात पर गुरुंग अडे रहे ।
उपसमिति के संयोजक बदलने के विषय पर भी माओवादी के भीतर विवाद देखने को मिला । समिति द्वारा किए गए निर्ण्र्ााें को बाद में पार्टर्ीीारा संशोधन करने का प्रस्ताव करने पर नैतिक संकट आने की वजह से प्रचण्ड के बदले नारायणकाजी श्रेष्ठ को संयोजक बनाने का प्रस्ताव माओवादी द्वारा रखा गया । मोहन वैद्य समूह का दबाव था कि प्रचण्ड को उपसमिति का संयोजक पद छोडÞ देना चाहिए ।
संवैधानिक समिति, विवाद समाधान उपसमिति तथा मेरे ही संयोजकत्व में बनी विशेष समिति में देव गुरुंग बहुत ही कडÞा रूप में प्रस्तुत होते आ रहे है । प्रचण्ड समय परिस्थिति को देखकर और अन्य दलों की सहमति में जाने का प्रयास करते हैं तो देव गुरुंग इसका कडÞा रूप से प्रतिकार करते है । गुरुंग पार्टर्ीीे निर्ण्र्ाापर ही अडिग रहते हैं और पार्टर्ीीे भीतर चल रहे विवाद के कारण और अधिक कडेÞ ढंग से प्रस्तुत होते हैं ।
अपनी ही पार्टर्ीीध्यक्ष की अध्यक्षता में हर्ुइ बैठक में सहमति के प्रति विमति जताते हुए उपाध्यक्ष मोहन वैद्य के निकट रहे देव गुरुंग ने बैठक में साफ कह दिया कि ये सहमति पार्टर्ीीनर्ण्र्ााके विपरीत है और इस निर्ण्र्ााको अंतिम निर्ण्र्ाानहीं मानने की बात स्पष्ट कर दी । संविधान सभा या उसके अर्न्तर्गत के समति की बैठकों में प्रायः एक स्वर में बोलने वाले माओवादी नेताओं में पिछले कुछ दिनों से हर विषय, हर मुद्दे पर उनके बीच मतभेद साफ देखने को मिलता है । हर विषय पर भिन्न मत प्रकट करना तो अब माओवादी नेताओं की रोजमर्रर्ााी बात हो गई है । इसको माओवादी के भीतर आन्तरिक द्वंद्व के प्रभाव के रूप में विश्लेषण किया जा सकता है । संविधान सभा की सबसे बडी पाटीं के आन्तरिक गुटबन्दी का प्रभाव क्रमशः नए संविधान निर्माण में भी देखने को मिल रहा है । यद्यपि माओवादी के नेता मानते हैं कि आन्तरिक विवाद से संविधान निर्माण कार्य पूरी तरह अवरोध नहीं हर्ुइ है । ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है ।
काम तो नहीं रुका है लेकिन इसका लक्षण दिख रहा है । यह बात तो तय है कि संविधान सभा में सबसे बडी पार्टर्ीीोने के कारण उसके आन्तरिक विवाद का असर पूरे देश व मुख्य मुद्दों पर पडÞना लाजिमी है । इसलिए जब इससे देश प्रभावित होता है तो शान्ति प्रक्रिया व संविधान निर्माण इसके प्रभाव से कहाँ बच सकती है ।
देश के बडÞे राजनीतिक दल में देखे गए विवाद से देश पर किस कदर असर होता है इसका उदाहरण ००७ साल तथा ०४८ साल में संसद की सबसे बडी पार्टर्ीीेपाली कांग्रेस में देखे गए आन्तरिक विवाद के कारण निर्वाचित संसद को ही विघटन करना पडÞा था । इस उदाहरण को देखते हुए यदि माओवादी ने अपने भीतर के आन्तरिक द्वंद्व का लोकतान्त्रिक ढंग से समाधान नहीं किया तो संक्रमणकाल में रहा देश बुरी तरह प्रभावित होने की बात तय है ।
माओवादी के भीतर का विवाद बढता गया तो नए संविधान निर्माण पर इसका प्रभाव भी और अधिक बढÞता जाएगा । संविधान निर्माण में माओवादी की भूमिका सबसे बडी पार्टर्ीीोने के नाते सबसे अधिक है । लेकिन जिस तरह से विवाद धीरे धीरे उग्र रूप लेते जा रहा है, ऐसे में संविधान सभा के अस्तित्व पर भी खतरा हो सकता है ।
-विवाद समाधान उपसमिति के सदस्य तथा कार्यदल के संयोजक से बातचीत पर आधारित)
