धरती मां की पुकार : अब तो रहम करो
देवेश कुमार मिश्र
कृषि मानव जीवन का मूल आधार है । कोई भी व्यक्ति दुनिया के किसी भी कोने मे रहता हो, किसी भी समुदाय, वर्ग या धर्म संस्कृति का मानने वाला हो आखिर उसके जीवन के भरण पोषण का मुख्य आधार कृषि ही है । विश्व के विभिन्न देशों की जलवायु, मिट्टी, संस्कार, रहन सहन इत्यादि अलग अलग होता है । अलग–अलग जगहों पर रहने वाले लोगों का खान–पान भी अलग–अलग प्रकार का होता है । लेकिन खान–पान किसी भी प्रकार को हो आखिर उसकी उत्पत्ति का मुख्य आधार तो मिट्टी ही है । हर प्रकार की मिट्टी में सभी प्रकार की फसलों का उत्पादन नही किया जा सकता है । अलग अलग फसलों के उत्पादन के लिए अलग–अगल प्रकार की मिट्टी, जलवायु तथा पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । लेकिन उत्पादन के लिए चाहे किसी भी फसल के लिए हो किसी भी मौसम मे हो आखिर चाहिए तो मिट्टी ही । यह सर्वबिदित है कि मिट्टी ही हमारे भरपोषण तथा जीवन निर्वाह का मुख्य आधार है ।
आज विश्व की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, जमीन का खण्डीकरण हो रहा है, प्राकृतिक श्रोत साधन घटते जा रहे हैं, भूमिगत जलश्रोत का स्तर घटता जा रहा है, सतही जल की मात्रा भी कम होती जा रही है । वास स्थान निर्माण करने, सड़क इत्यादि बनाने तथा औद्योगिक कल कारखाना के निर्माण में जमीन का उपयोग होने से जमीन का आकार घटता ही जा रहा है और खाने वालाें की संख्या बढ़ती ही जा रही है । इसलिए कम जमीन में कृषि का पैदावार बढ़ाकर बढ़ती हुई जन संख्या का भरण पोषण करने का कार्य दिन प्रति दिन चुनौती बनती जा रही है । एक तरफ कृषि के प्रयोजन में आनेवाली भूमि का आकार घटना तो दूसरी तरफ अधिक पैदावार करने की बाध्यता यह वर्तमान की मुख्य समस्या बन गई है । इस समस्या से उबरने के लिए या यह कहा जाय कि कृषि से तुलनात्मक रूप से और अधिक पैदावार बढ़ाने के लिए ज्यादा उत्पादन देने वाली तरह तरह के नये नये वर्ण शंकर बीजों के प्रयोग में बढ़ोत्तरी, आधुनिक एंव वैज्ञानिक खेती प्रविधि का प्रयोग, कृषि क्षेत्र मे यांत्रिकरण, रासायनिक उर्वरकों तथा रासायनिक कीटनाशकों तथा हार्मोन का प्रयोग इत्यादि का सहारा लिया जा रहा है । जिसके परिणामस्वरूप कृषि के उत्पादन और उत्पादकत्व में वृद्वि तो हो रही है, लेकिन उत्पादन बढ़ाने के चक्कर में किसान द्वारा जो आज मिट्टी में तरह तरह के रासायनिक उर्वरकों तथा कीट नाशकों का प्रयोग किया जा रहा है उसका मिट्टी पर क्या असर हो रहा है, इसके विषय में बहुत ही कम किसान सचेत एंव जागरुक हैं । अधिकाशः किसान एैसे हैं जो इसके दूरगामी परिणाम पर विचार किए बिना ही इन सबका अन्धाधुंध प्रयोग करते ही जा रहे है । मिट्टी का स्वास्थ्य परीक्षण कराए बिना उसमे विभिन्न प्रकार के आवश्यक अनावश्यक उर्वरको तथा कीटनाशकाें का प्रयोग कितना न्यायोचित एंव जायज है क्या हमने इस पर कभी विचार किया है ? मिट्टी में अदृश्य रूप में छिपे हुए पोषक तत्वाें से पौधे अपना खुराक लेकर शारीरिक बृद्वि एंव विकास करते हुए हमारी आवश्यकता अनुसार की चीजों का उत्पादन करते है । मिट्टी में पहले से मौजूद पोषक तत्व हो या हम जो उपर से देते हैं पौधे सीधे रूप से उसका उपयोग नही कर पाते है । वह पोषक तत्व पहले मिट्टी में घुलता है उसके बाद मिट्टी में रहने वाले तमाम प्रकार के सूक्ष्म जीव उसको पौधों को लेने के लायक वनाते हैं उसके वाद ही पौधा उसको ग्रहण कर पाता है । मिट्टी में रहने वाले इस तरह के तमाम सूक्ष्म जिवाणुओ की क्रियाशीलता को बढ़ाने के लिए मिट्टी में प्रशस्त मात्रा में प्रागांरिक पदार्थो तथा नमी की आवश्यकता होती है इनके अभाव मे इन सूक्ष्म जीवाणुआें की क्रियाशीलता घट जाती है ।
वर्तमान परिवेश में देखा जाय तो अधिकाशः किसान अपने खेतों मे गोबर के खादो या कम्पोष्ट वाली खादों की जगह लगातार रासायनिक उर्वरकों का ही प्रयोग कर रहे हैं जिसके परिणामस्वरुप मिट्टी में प्रांगारिक पदार्थो की मात्रा दिन प्रति दिन घटती ही जा रही है । मिट्टी में पहले से मौजूद पोषक तत्व हो या उपर से उपलब्ध कराये गए तत्व हो पौधे उसका समुचित मात्रा में उपभोग करने मे समर्थ नही हो पा रहे हैं । जिसका असर यह हो रहा है कि पौधे मिट्टी में खाद्य तत्वों की उपलब्धता के बावजूद भी उसका प्रयोग नही कर पा रहे हंै । इसके अलावा मिट्टी में रहकर क्षति पंहुचाने वाले या पौधों को उपर से नुकसान करने वाले कीटों तथा रोग फैलाने वाले जिवाणुआें के नियंत्रण हेतु कीटनाशकों के प्रयोग से भी मिट्टी विषाक्त होती जा रही है जिसके कारण मिट्टी में रहने वाले लाभदायक सूक्ष्म जिवाणुओं की या तो क्रियाशीलता घट रही है या तो विष के प्रभाव से उनकी संख्या घट रही है । जिससे पौधो के लिए आवश्यकतानुसार का पर्याप्त मात्रा में खाना का बन्दोवस्त नहीं होने के कारण पौधे कमजोर होते जा रहे हैं । जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव हमारे कृषि उपज पर पड़ रहा है । इसकी पूर्ति करने के लिए रासायनिक उर्वरको की मात्रा बढ़ाइ जा रही है । आखिर कब तक बढाते रहेंगे ? इससे मिट्टी और दूषित तथा अस्वस्थ होती जा रही है । विश्व में बहुत तेजी से औद्योगीकरण हो रहा है । यह एक अच्छी बात है और वर्तमान परिवेश के लिए जरुरी भी है । लेकिन देखा क्या जा रहा है कि अधिकांश उद्योग तथा कल कारखाना उद्योग से निकले हुए कचरे एंव दूषित पानी को सफाई तथा प्रशोधित किए बिना सीधे खुले रूप में, खेतों में या नदी तालाबों में बहा देते हंै जिसके परिणामस्वरूप हमारी फसलो पर इन पानी में घुले हुए विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों का बड़ा नकारात्मक असर पड़ रहा है साथ ही साथ हमारी भूमि भी दूषित होती जा रही है । कल कारखानों तथा उद्योगों से निकले इन रसायन युक्त दूषित पानी का समय रहते व्यवस्थापन नही किया गया तो हमारी भूमि धीरे धीरे बंजर एंव मरुभूमि मे परिणत होती जाएगी । बहुत से कृषक ऐसे भी है जो खेतों में रासायनिक उर्वर काें तथा कीटनाशक विषादि का प्रयोग करते समय खाली प्लाष्टिक की थैलियो तथा बोरों को खेत मे ही छोड़ देते हैं जिससे धीरे धीरे वह मिट्टी में मिलता जाता है और मिट्टी के भौतिक एंव रासायनिक गुणों में नकारात्मक असर करने के साथ–साथ मिट्टी की उत्पादन क्षमता को भी घटातेजा रहे हंै ।
समय रहते विचार नही किए और इसी तरह के रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करते रहे तो वह समय अब बहुत दूर नही है, जब मिट्टी बंजर भूमि में परिवर्तित हो जाय और हमारे किसी काम के न रह जाय । उस समय हमारे पास भूमि रहकर भी हम भूखों मरने के लिए बाध्य हो जाएँगें । इस लिए अब भी समय है धरती मां की पुकार सुने, उनकी भावनाओं का सम्मान करें और अब इससे ज्यादा उन्हें तड़पने के लिए बाध्य न करे नहीं तो हम सबका जीवन तथा अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है ।