शांति बम
व्यंग्य बिम्मी शर्मा

इसी लिए हर जगह बम ऐसे फूट रहे हैं जैसे जीत के जश्न में दही की हांडी । इसी लिए यह बम बहुत शातिं से फूट रहा है किसी को परेशान किए बिना और निर्वाचन में खलल पहुंचाए बिना ही । ओम शातिं शातिं बम की जय ।
जब से देश में निर्वाचन का महाकुंभ शुरु हुआ है तब से बम भी अपनी उपस्थिति जताते हुए फुसफुसाने लगा है । पिछले साल की दिवाली के बचे हुए पटाखे जैसे बिना शोर शराबे के फुसफुस कर के जल जाता है उसी तरह देश के विभिन्न भागों में नेताओं को लक्षित कर के या मतदान केंद्र मे यह बम ऐसे आवाज कर रहा है जैसे यह आलू बम हो । इसी लिए बिना किसी को हताहत किए हुए या घायल किए बिना ही सर्र से निकल जाने वाले इस बम का नाम शांति बम है । आया भी और चला भी गया पर किसी को क्षति नहीं पहुंचाया । है न मजेदार बम ।
दूसरे देशों में देखिए कितने बडे–बडे बम विष्फोट होते है और दर्जनों लोग मारे जाते हैं और हजारों जन घायल हो जाते हैं । पर हमारे देश में अस्पताल का बेड भी इन घायलों का इंतजार ही करता रह जाता है पर कोई भी बम विष्फोट से घायल नहीं होता मरने की बात तो दूर है । मीडिया बम विष्फोट का समाचार लिखने, बजवाने, छपवाने और टेलिकास्ट करने के लिए बावरी हुई जा रही है पर बम है कि विष्फोट होता ही नहीं । शायद बम भी यहां के डाकू जैसे नेता से डर जाता है इसी लिए बम की भी घिग्घी बंध जाती है और बेचारा सिर्फ फुसफुसा कर रह जाता है । बम बनाने वाले ने भी किस खराब मुहुर्त में बम बनाइ थी कि न ये विष्फोट होता है न कोई डरता ही है । बच्चे भी नहीं डरते इस शांति कामी बम से तो फिर भला उम्मीदवार कैसे डरेंगें ?
निर्वाचन के मौसम में हर जगह कहीं न कहीं कुछ न कुछ हो ही जाता है । यहां भी हो रहा है । नेता कम अभिनेता ज्यादा दिखते उम्मीदवार कहीं खेत में बुआई कर रहे हैं, कहीं फसल काट रहे हैं तो गाय को दूह रहे हैं । बस इन उम्मीदवारों का अतिंम काम किसी के घर में शौचालय साफ करना बांकी रह गया है । और यह काम भी निर्वाचन के दिन तक उम्मीदवार कर ही लेगें । जिसकी जितनी योग्यता या क्षमता है वह बस उतना ही काम करेगा । हमारे देश के नेता और चुनाव के उम्मीदवारों की योग्यता शौचालय साफ करने जितना ही है इसी लिए वही कर रहे हैं ।
अब जब एक तरफ अपनी योग्यता और क्षमता का प्रदर्शन करते हुए मतदाता के घर काम कर के उन को रिझाने में सभी उम्मीदवार लगे हुए हैं । वहीं बम और तोड़फोड़ भी अपना काम कर रहे हैं । कहीं एम्बुस बिछाया जा रहा है अपने विरोधी को परास्त करने के लिए तो कहीं खुद ही एम्बुस बिछा कर या बम पड़का कर उम्मीदवार अपने विरोधी नेता और राजनीतिक दल को इस का दोष लगा रहे हैं कि इसी बहाने से अपने मतदाता का सहानुभूति वोट मिल जाएगा और वह जीत जाएँगें । पर उम्मीदवार यह भूल जाता है कि मतदाता अब सयाना हो गया है वह अब सिर्फ नोट या किसी गैजेट से ही पटता है आप की आंखों के नकली आंसू और अभिनय से नहीं ।
इसी लिए शादी, व्याह में जैसे बराती घोड़ी में बैठे दूल्हे के आगे आतिशबाजी करते है और पटाखा फोड़ते हैं । ठीक उसी तरह शातिं बम फुसफुसा रहा है । आखिर में निर्वाचन में खड़ा हर उम्मीदवार एक दूल्हा ही तो है अपने बिश्वास के घोडे पर सवार हो कर जनता के मत या मतपत्र से भरी हुई मतपेटिका से शादी रचाने को उतावला हुआ जा रहा है । भले ही हारने के बाद सत्ता का हनीमून मनाने को न मिले पर शादी रचाने का हक तो उस को है । इसी लिए हर जगह बम ऐसे फूट रहे हैं जैसे जीत के जश्न में दही की हांडी । इसी लिए यह बम बहुत शातिं से फूट रहा है किसी को परेशान किए बिना और निर्वाचन में खलल पहुंचाए बिना ही । ओम शातिं शातिं बम की जय ।