Sat. Oct 12th, 2024

कम्यूनिष्ट पार्टी चलाने की विधि जनवादी केन्द्रियता है । इसमें बहुमत के निर्ण्र्को लागू करने तथा अल्पमत का कदर किये जाने की बात होती है । लेकिन हमारे पार्टीअध्यक्ष कमरेड ने जनवादी केन्द्रियता को पुरानी प्रणाली मानते हैं । बहुमत व अल्पमत की नहीं सहमति की बात करते हैं । उनका मानना है कि सहमति के बिना पार्टी विभाजन आ सकता है । वो यहाँ तक कह गए कि सहमति में नहीं आने वालों के लिए पार्टी बाहर जाने का दरवाजा भी खुला है ।
मेरा मानना है कि जनवादी केन्द्रियता लागू करने में कमजोरी हो सकती है । लेकिन इसका कोई विकल्प नहीं है । बहुमत-अल्पमत की बात नहीं मानने, सहमति का प्रयास भी नहीं करने व पार्टी चालन के लिए दूसरी विधि को भी नहीं मानने की वजह से आज पार्टर्ीीी यह दर्ुदशा हर्ुइ है । अभी पार्टर्ीीे भीतर रहे अस्वस्थ अन्तरसंर्घष्ा के लिए अध्यक्ष कमरेड ही जिम्मेदार हैं ।
जनयुद्ध शुरु होने के बाद भी नेतृत्व पहचान की संकट आयी थी । इसके बाद जबरदस्त रूप से नेतृत्व केन्द्रीकरण की बात उठायी गयी थी । एकल नेतृत्व होने या सामूहिक नेतृत्व में जाने पर कई महीनों तक बहस चलती रही । चौथे विस्तारित बैठक में ही एकीकृत नेतृत्व की अवधारणा पारित हर्ुइ । लेकिन इसके बाद भी पार्टर्ीीें इस मुद्दे को लेकर बहस चलता ही गया । सामूहिक नेतृत्व की बात व्यावहारिक तौर पर देखने को नहीं मिली । महासचिव से अध्यक्ष बनाया गया । और फिर उसके बाद पूरी की पूरी आन्तरिक व्यवस्था अध्यक्ष के र्इद-गिर्द ही सिमट कर रह गयी । लेकिन मेरा मतलब सिर्फअध्यक्ष को ही दोषी बताना नहीं है । उस समय नेतृत्व स्तर पर रहे सभी नेताओं की कमजोरी रही होगी ।
खरिपाटी में हुए सम्मेलन तक आते आते नेतृत्व में ही सभी शक्ति को केन्द्रित करने का विचार आया । पार्टर्ीीी विभिन्न कमिटियों से ऊपर अध्यक्ष होने की गलत परम्परा की शुरुआत हर्ुइ । इसका असर जिला स्तर तक भी देखने को मिला । इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पार्टर्ीीे भीतर इस समय व्याप्त अस्वस्थ अन्तरर्सर्ंघष के लिए तत्काल महाधिवेशन बुलानी चाहिए । महाधिवेशन से पहले सभी जिला समितियों को मजबूत करना होगा । केन्द्र व जिला के बीच रहे जितनी भी समितियाँ हैं, जिनमें मनोनीत लोग भरे पडेÞ हैं । उन्हें मजबूत करने की कोई जरुरत नहीं है । क्योंकि ऐसे मनोनित हुए सभी नेता अपने आप को कुछ अधिक ही शक्तिशाली समझने लगे हैं । सभी जिलों में सम्मेलन कर निर्वाचित लोगों की समिति बनाई जानी चाहिए । पार्टर्ीीे भीतर आर्थिक पारदर्शिता भी आवश्यक है । यह काम केन्द्र से शुरु होनी चाहिए ।
वैसे तो घोषित रूप से सभी वामपंथी हैं लेकिन व्यवहार में यह समस्या है । इसको ठीक करना होगा । केन्द्रीय समिति को अधिकार संपन्न बनाना होगा । इस तरह से सैद्धांतिक व व्यवहारिक पक्ष मिलाने पर ही अंतरसंर्घष्ा को व्यवस्थित किया जा सकता है ।
-पोलिटव्यूरो सदस्य रहे कार्की डा. बाबुराम भट्टर्राई पक्षधर हैं)



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: