थारू मधेशियों नें ललकारा है : श्याम सुन्दर मंडल
श्याम सुन्दर मंडल, सप्तरी। नेपाली साम्राज्य की कैलाली जिल्ला जहाँ कुल क्षेत्रफल का ५९.७% अर्थात १९३२ वर्ग किलोमीटर की भुमिपर तकरीबन ४५% यानि ३,४९,०००(०६८) थारू मधेशी हजारों वर्ष से रहते आए हैं । विस्तार में देखें :
https://ne.m.wikipedia.org/wiki/कैलाली_जिल्ला
वि.सं. ००७ से पहले यहाँ अत्यन्त ही न्यून मात्रा में नेपाली लोग आप्रवासित होकर वर्तमान कैलाली जिले के मधेशी (थारू) भु-खण्ड में आकर बैठे थे । वैसे बाँके से लेकर कंचनपुर तक की भुमि सन् १८६० नवम्बर १ में नेपाल और कंपनी सरकार बीच सम्झौता होने से पहले नेपाली साम्राज्य का हीस्सा नहीं हुआ करता था ।
नेपाली साम्राज्य में वह जमीन आते ही बड़ेमान नेपालियों के बीच बँटवारा हुआ और उसी काल से थारू मधेशियों का दूरदीन भी आरम्भ हो गया । थारू गरीव होते गए – कमैया, दास, कमलरी बन गए । आज वहाँ नेपालियों का आप्रवासन एवं थारूओं का विस्थापन तिब्र है । शासक के हाथों रहे सारे नियन्त्रण की वजह थारू लूटते गए और लूटते ही जा रहे हैं ।
२०४६ में सीमित अधिकार सहीत का लोकतन्त्र प्राप्त हुआ । दमित आवाजें बाहर आने लगी । मधेश जनविद्रोह हुआ, थरूहट की आवाजें भी बुलन्द हुई । २०७२ साल भादो ७ गते टीकापुर में एक हिंसात्मक घटना घटी, जिसमें दर्जन पुलिस मारे गए और ईसी कारण हजारों थारु को विस्थापित होना पड़ा । घटना का मुख्य दोषी रेशम चौधरी को बनाया गया और उन्हें उसी कारण से फरार होना पड़ा ।
वारीस के जरिये नोमिनेशन दर्ज कराने वाले रेशमलाल चौधरी को नेपाली पुलिस ‘मोस्ट वाटेण्ड’ सूची में रखकर तलास कर रही है ।
राजपा नेपाल नें कैलाली प्रतिनिधी सभा १ के लिए उन्हें टिकट दिया है । चौधरी खुद अपने चुनाव प्रचार में सरकारी आतंक के कारण सहभागी नहीं हो सके परंतु चुनाव प्रचार प्रसार का जिम्मेदारी उनकी पत्नी एवं पुत्री नें बेखुबी निभाई और प्रतिपक्षी एमाले की गरीमा शाह से ४ गुणा अधिक मतों से आगे लाकर जित सुनिश्चित करा दी । अभी थरूहट पुत्र, मधेश के धरती पुत्र रेशम चौधरी २० हजार से अधिक मत प्राप्त कर अपनी जित को सुनिश्चित कर लिए है ।
यह आहट ही नहीं, कैलाली से थारूओं का नेपाली शासनसत्ता को ललकार है और नेपाली उपनिवेश जल्द ही कैलाली सहित समग्र मधेश से अन्त कर मधेश को आजाद़/मुक्त कराने का ऐलान भी है ।
जय थरूहट, जय मधेश!
नेपाली साम्राज्य में वह जमीन आते ही बड़ेमान नेपालियों के बीच बँटवारा हुआ और उसी काल से थारू मधेशियों का दूरदीन भी आरम्भ हो गया । थारू गरीव होते गए – कमैया, दास, कमलरी बन गए । आज वहाँ नेपालियों का आप्रवासन एवं थारूओं का विस्थापन तिब्र है । शासक के हाथों रहे सारे नियन्त्रण की वजह थारू लूटते गए और लूटते ही जा रहे हैं ।
२०४६ में सीमित अधिकार सहीत का लोकतन्त्र प्राप्त हुआ । दमित आवाजें बाहर आने लगी । मधेश जनविद्रोह हुआ, थरूहट की आवाजें भी बुलन्द हुई । २०७२ साल भादो ७ गते टीकापुर में एक हिंसात्मक घटना घटी, जिसमें दर्जन पुलिस मारे गए और ईसी कारण हजारों थारु को विस्थापित होना पड़ा । घटना का मुख्य दोषी रेशम चौधरी को बनाया गया और उन्हें उसी कारण से फरार होना पड़ा ।
वारीस के जरिये नोमिनेशन दर्ज कराने वाले रेशमलाल चौधरी को नेपाली पुलिस ‘मोस्ट वाटेण्ड’ सूची में रखकर तलास कर रही है ।
राजपा नेपाल नें कैलाली प्रतिनिधी सभा १ के लिए उन्हें टिकट दिया है । चौधरी खुद अपने चुनाव प्रचार में सरकारी आतंक के कारण सहभागी नहीं हो सके परंतु चुनाव प्रचार प्रसार का जिम्मेदारी उनकी पत्नी एवं पुत्री नें बेखुबी निभाई और प्रतिपक्षी एमाले की गरीमा शाह से ४ गुणा अधिक मतों से आगे लाकर जित सुनिश्चित करा दी । अभी थरूहट पुत्र, मधेश के धरती पुत्र रेशम चौधरी २० हजार से अधिक मत प्राप्त कर अपनी जित को सुनिश्चित कर लिए है ।
यह आहट ही नहीं, कैलाली से थारूओं का नेपाली शासनसत्ता को ललकार है और नेपाली उपनिवेश जल्द ही कैलाली सहित समग्र मधेश से अन्त कर मधेश को आजाद़/मुक्त कराने का ऐलान भी है ।
जय थरूहट, जय मधेश!