बिहार व सिक्किम:
प्रदीप नेपाल
शासक वर्ग में जनता व राष्ट्र के प्रति र्समर्पण तथा काम करने की इच्छाशक्ति हो तो उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है । बिहार इसका सबसे ज्वलन्त उदाहरण है । कभी अपराध का बोलवाला होने वाले उस राज्य के बारे में लोगों की सोच व देखने का नजरिया सब कुछ बदल गया है । यह सब केवल सुनने के लिए नहीं है बल्कि उसको महसूस भी किया जा रहा है । कल्पना से परे उस परिर्वन के लिए यदि किसी एक व्यक्ति को श्रेय दिया जाएगा तो निश्चित ही वह नाम नीतिश कुमार का ही आएगा । भारत के समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के द्वारा खोजे गए कई नेताओं में नीतिश भी एक थे । गजब का आत्मविश्वास उनमें देखने को मिलता है । एक भेंट के दौरान नीतिश ने कहा था कि इस दुनियाँ में यदि ठान लिया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है । ओर मौका मिला तो उन्होंने वह सब कुछ कर के दिखाया ।
नेपाली राजनीति को जानने वालों को यह पता ही होगा कि नेपाली कांग्रेस को सिद्धांत देने वाले विश्वेश्वर प्रसाद -वीपी) कोइराला भी जयप्रकाश नारायण के ही अनुयायियों में एक थे । लेकिन बार-बार मौका मिलने के बाद भी नेपाली कांग्रेस इस देश के लिए कुछ खास नहीं कर पायी ना ही आर्थिक क्षेत्र में और ना सामाजिक क्षेत्र में ।
मध्य जुन में मुझे सिक्किम जाने का मौका मिला । सन् १९४७ में जब सिक्कम राज्य का विलय भारत में हो रहा था, तब हम छात्र थे और इस विषय का हमने जमकर विरोध किया था । लेकिन इस बार ३७ वर्षों के बाद जब सिक्किम को देखने का मौका मिला तो अपने छात्र जीवन की उस घटना को याद कर शायद अफसोस हुआ । सिक्कम जैसे राज्य में हुए आमूल परिवर्तन को बिना सराहना किए रह नहीं सका । सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को जिस ढंग से वहाँ स्थापित किया गया है, वह शायद दक्षिण एशिया के किसी भी देश में एक अनोखा उदाहरण है । शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे विषय को जनता के मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है । विपन्न तथा गरीब जनता के लिए सरकार द्वारा आवास की व्यवस्था की जाती है । विकास निर्माण के पथ पर लगातार आगे बढÞ रहे सिक्किम में टिष्टा नदी में सात स्थानों पर बाँध बनाकर पनबिजली उत्पादन को एक अभियान के रूप में शुरु किया गया है । तीन स्थानों पर निर्माणाधीन रहे परियोजना का तो मैंने स्वयं निरीक्षण किया । वहाँ काम कर रहे ठेकेदारों ने बताया कि अगले तीन वर्षों में यहाँ १२०० मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है । इसका पूरा श्रेय यदि किसी एक व्यक्ति को दिया जा सकता है तो वह है सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग । सिक्किम में राजतंत्र की समाप्ति के बाद चामलिंग चौथे मुख्यमंत्री है । उनसे पहले जो तीन मुख्यमंत्री थे, उन्होंने वहाँ राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं की थी लेकिन पवन चामलिंग ने वह कर दिखाया, जिसके बाद सिक्किम का भाग्य ही बदल कर रख दिया है ।
साहित्य क्षेत्र से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरु करने वाले पवन चामलिंग महात्मा गांधी और कार्ल माक्स को अपना आदर्श मानते हैं । एक पूरी तरह अहिंसावादी समाजसुधारक तो दूसरे प्रख्यात वामपंथी चिंतक । अब ऐसे में चामलिंग को हम किस श्रेणी में रखेंगे । विचार उनका चाहे जो हो लेकिन उनका लक्ष्य सिर्फएक ही है । सन् २०१५ तक सिक्किम की संपर्ूण्ा जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, भोजन, रोजगार की गारण्टी देना । और जिस सोच के साथ वो विकास कार्यों पर अपना अर्जुनदृष्टि रखे है, उससे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सन् २०१५ तक वो अपने लक्ष्य को पूरा कर लें । सिर्फवैचारिक सिद्धांतों की डींग हाँकने व व्यवहार में उसे नहीं उतारने की वजह से उन सिद्धांतों की समाप्ति होती नजर आती है । पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्यूनिष्ट पार्टर्ीीे ३४ वषोर्ं के शासन का अन्त इसी कारण हुआ । इतना लम्बा अवसर मिलने के बावजूद बंगाल की सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक रूपांतरण में कोई खास परिवर्तन नहीं कर सकी वहाँ की कम्यूनिष्ट सरकार । जिसका खामियाजा उन्हें इस बार के चुनाव में भुगतना पडÞा ।
यह महज संयोग है कि बिहार बंगाल व सिक्किम तीनों राज्यों की सीमा नेपाल से जुडÞी है । भाषा, संस्कृति व सामाजिक व्यवहार में ये तीनों राज्यों की नेपाल से बहुत ही मिलती जुलती है । एक समय था जब सिक्किम व बिहार से नेपाल की स्थिति की काफी अच्छी थी । हजारों की संख्या में बिहार के निम्न वर्ग के लोग यहाँ रोजगार की तलाश में आते थे । और यही के होकर रह जाते थे । उनमें से कितनों ने तो नेपाल की नागरिकता भी ली है । लेकिन अब परिस्थिति ठीक विपरीत है । अभी नेपाल के हजारों लोगों को बिहार में रोजगार मिल रहा है । और तो और जो पहले बिहार से यहाँ आए थे वो अब वापस बिहार की ओर रुख करने लगे हैं । यदि बिहार और सिक्किम में विदेशी कामदारों का आने की छुट मिल जाए तो यहाँ के लोग मलेशिया और कतार की जगह सिक्किम और बिहार जाना पसंद करेंगे ।
प्रख्यात दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने अपनी कृति कम्यूनिष्ट पार्टर्ीीा घोषणा पत्र में सामाजिक जीवन में व्यक्ति की भूमिका को सबसे ऊपर रखा है । उनका कहना था कि व्यक्ति के विकास से ही समूह का विकास संभव है । लेकिन नेपाल में कार्लमार्क्स की कमाई खाने वाले कम्यूनिष्ट पार्टियों की बात ही कुछ और है । नेपाली कम्यूनिष्ट आनदोलन के योद्धा मदन भण्डारी ने भी कहा था जनता की मांग को ही पार्टर्ीीी मांग रखनी चाहिए । लेकिन उनके द्वारा लाई गयी जनता की बहुदलीय जनवाद को संशोधनवादी, विर्सजनवादी, दक्षिणपंथी बताया गया तो पार्टर्ीीें कभी उनके सहयोगी रहे एमाले के कुछ बडे नेताओं ने इसी सिद्धांत को मनुविष का शिकार बना दिया ।
नेपाल में नेपाली सिद्धांत व मान्यता बनाने वालों की संख्या बहुत ही कम देखने को मिलती है । वीपी ने प्रजातांत्रिक समाजवाद की अवधारणा लायी थी । लेकिन कुछ दिनों बाद वो राजनीति में खुद को असफल मानने लगे । इसी सिद्धांत में थोडÞा परिमार्जित कर मदन भण्डारी ने जनता का बहुदलीय जनवाद की अवधारणा पेश की । लेकिन राजनीति में सफल हो रहे भण्डारी जल्द ही इस दुनियाँ को अलविदा कह गए । इस समय एमाले सत्ता के लिए अपने सिद्धांतों में बदलाव लाता रहता है ।
दरअसल यदि हम बिहार, बंगाल, सिक्किम को दखेंगे तो मालूम चलेगा कि सिद्धांत जनता की आवश्यकता के अनुसार बनना चाहिए ना कि नेताओं को सत्ता में पहुँचाने का जरिया । इस समय जिस सिद्धांत से हमारे राजनीतिक दल ग्रसित हैं, उससे तो देश को दर्ुगति में जाने से कोई नहीं रोक सकता । अपनी जनता के लिए अपनी मातृभूमि के लिए स्वदेशजन की हित की सोच ही सही सिद्धांत है ।
-लेखक नेपाल सरकार के पर्ूव मंत्री तथा एमाले स्थाई समिति सदस्य हैं ।)