नेपाल में स्थिर सरकार के लिए भारत का सहयोग अपेक्षित हैः डा. बाबुराम भट्टराई
काठमांडू, २८ जनवरी । आज भारत में जो आर्थिक विकास हो रही है, उसके एक वजह स्थिर सरकार भी है । क्योंकि विकास के लिए स्थिर सरकार आवश्यक है । में चाहता हूं कि यहां भी स्थिर सरकार बने, देश आर्थिक समृद्धि की ओर आगे बढ़े । हां, आज नेपाल में भी स्थिर सरकार निर्माण की सम्भावना दिखाई दे रही है । अगर कोई अवरोध नहीं होगा तो वाम गठबंधन पाँच साल के लिए सरकार बना सकती है । इसके लिए भारत का सहयोग अपेक्षित रहता है ।
हां, नेपाल–भारत संबंध सदियों पुरानी है । सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषिक, भौगोलिक संबंध मजबूत होते हुए भी कभी कभार भारत और नेपाल के बीच वैमनस्यता दिखाई देता है । ऐसा क्यों हो रहा है ? हरतरह की सहयोग के बावजूदत भी नेपाल में भारत विरोधी भावना क्यों बढ़ जाती है ? इसकी ओर भारत को ध्यान देना जरुरी है । मुझे लगता है कि नेपाल के साथ भारत जो भी व्यवहार करता है, उसमें सम्मानजनक भाव प्रकट होना चाहिए । जो भी सम्झौता होती है, उसमें दोनों देश के नागरिक अपनी जीत का महसूस कर सके ।

उदाहरण के लिए सन् १९५० की संधी को भी ले सकते हैं । उसमें जो कुछ भी लिखा है, लेकिन संधीपत्र में हस्ताक्षर करनेवाले व्यक्तियों से से एक राजदूत हैं और दूसरे प्रधानमन्त्री । अगर उक्त सम्झौतापत्र राजदूत–राजदूत अथवा प्रधानमन्त्री–प्रधानमन्त्री के बीच की गई होती तो आज जितना उसका विरोध हो रहा है, उतना नहीं होता । इसीलिए भारत से नेपाल सम्मानजक व्यवहार भी चाहता है ।
हां, भारत तीव्र आर्थिक विकास कर हा है । लेकिन उसमें नेपाल कहां है ? नेपाल का हर विकास और आर्थिक सूचकांक भारत पर भी निर्भर रहता है । लेकिन भारत के साथ हमारा व्यापार घाटा हर साल बढ़ रही है, ऐसा क्यों हो रहा है ? इसमें भी बहस होना चाहिए । क्योंकि नेपाल में एक मानिसकता विकसित हो रही है कि नेपाल के विकास के लिए भारत बाधक बन रहा है । इसको गलत साबित करने के लिए भारत का ही सहयोग अपरिहार्य है ।
भारत चाहता है कि नेपाल उसकी सुरक्षा संवेदनशीलता को सम्बोधन करे । इसके लिए नेपाल तैयार है । तीव्र आर्थिक विकास के लिए नेपाल की जो चाहत है, उसके लिए भी भारत को तैयार होना पड़ता है । अर्थात् विकास और व्यापार में दो देशों के बीच साझेदारी होना जरुरी है ।
(भारत के ६९वें गणतन्त्र दिवस के अवसर पर नेपाल भारत मैत्री समाज द्वारा काठमांडू में आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त विचारों का संपादित अंश)
