पुराण में माघ पूर्णिमा
29 jan.
पूर्णिमा का व्रत हर महीने रखा जाता है। इस दिन आकाश में चांद अपने पूर्ण रूप में दिखाई देता है। हर पूर्णिमा व्रत की महिमा और विधियां भिन्न होती हैं। माघ पूर्णिमा व्रत कई श्रेष्ठ यज्ञों का फल देने वाला माना जाता है।
हमारी परंपरा में नदी स्नान का बहुत महत्व है। नदियों का हमारे धार्मिक जीवन में महत्व ही इस वजह से है क्योंकि ये हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। माघ पूर्णिमा पर दान-धर्म और स्नान का बहुत महत्व है। पंचांग के मुताबिक ग्यारहवें महीने यानी माघ में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व है। इस दिन को पुण्य-योग भी कहा जाता है। इस स्नान के करने से सूर्य और चंद्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है।
विष्णु निवास करते हैं गंगा में
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर खुद भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर स्वयं भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं, अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है। इस तिथि में भगवान नारायण क्षीरसागर में विराजते हैं और गंगाजी क्षीरसागर का ही रूप है।
भैरव जयंती
इस दिन भैरव जयंती भी मनाई जाती है। माघ मास स्वयं भगवान विष्णु का स्वरूप बताया गया है। पूरे महीने स्नान-दान नहीं करने की स्थिति में केवल माघी पूर्णिमा के दिन तीर्थ में स्नान किया जाए तो संपूर्ण माघ मास के स्नान का पूरा फल मिलता है। ‘मत्स्य पुराण’ का कथन है कि माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
यह त्योहार बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। गरीबों को भोजन, वस्त्र, गुड, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक होता है। माघी पूर्णिमा को एक मास का कल्पवास पूर्ण हो जाता है। इस दिन सत्यनारायण कथा और दान-पुण्य को अति फलदायी माना गया है। इस अवसर पर गंगा में स्नान करने से पाप और संताप का नाश होता है तथा मन और आत्मा को शुद्धता प्राप्त होती है। किसी भी व्यक्ति द्वारा इस दिन किया गया किया गया महास्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है। इस दिन से ही होली का डांडा भी गाड़ा जाता है।
स्नान का महत्व
माघ स्नान का अपना महत्व है। माघ मास में ठंड समाप्त होने की ओर रहती है और वसंत की शुरुआत हो रही होती है। ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े इसलिए प्रतिदिन सुबह स्नान करने से शरीर को अनुकूलन करने के लिए मजबूत बनाया जाता है।
पुराण में माघ पूर्णिमा
पद्मपुराण में कहा गया है कि अन्य माह में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्ना नहीं होते, जितने की वे माघ मास में स्नान करने से होते हैं। निर्णय सिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम-से-कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना ही चाहिए। चाहे पूरे माह स्नान के योग न बन सकें, लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है।
दान का महत्व
माघ मास में दान का विशेष महत्व है। दान में तिल, गुड़ और कंबल का विशेष महत्व है। मत्स्य पुराण का कथन है कि माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्म को दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
नदियों में स्नान
माघ में पवित्र नदियों में स्नान करने से एक विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है। वहीं शास्त्रों और पुराणों में वर्णित है कि इस मास में पूजन-अर्चन और स्नान करने से भगवान नारायण को प्राप्त किया जा सकता है।
माघ पूर्णिमा पूजन
माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण की कथा की जाती है और भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते और फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोती, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है। सत्यनाराण की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है। शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जो भक्त शिव और विष्णु के प्रति समदर्शी होते हैं वे शिव और विष्णु दोनों की ही पूजा करते हैं।