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वीरगंज में अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हुई चर्चा, हिन्दी का महत्व से इंकार नहीं

कोई भी भाषा जब तक जनजीविका का साधन नहीं बनेगी तब तक उसके घिसने का क्रम जारी रहेगा । मधेश की भाषा ओर संस्कृति को सबसे अधिक खतरा एक भाषा औ एक भेष की नीति से है । इसलिए बहुभाषिकता का सम्मान यहाँ होना ही चाहिए : गोपाल ठाकुर

मातृभाषा के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके समबन्ध में हम मनोवैज्ञानिक रूप से हीनता बोध से ग्रसित हैं और एसके प्रयोग से भागते हैं : कुमार सच्चिदानन्द

वीरगंज | १८ अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस आज वीरगंज टाउन हॉल में नेकपा माओवादी के नेता एवं भाषाविद् श्री गोपाल ठाकुर के सभापतित्व में सम्पन्न हुआ जिसमें २ नंबर प्रदेश के विधायक श्री जगत यादव, श्रीमती ज्वाला साह आदि के साथ साथ नेपाली काँग्रेस के पूर्व सभापति श्री अजय द्विवेदी, नेपाल सदभावना पार्टी के महासचिव श्री शिव पटेल, ठा. रा. ब. क्याम्पस के हिन्दी के उप–प्राध्यापक कुमार सच्चिदानन्द सिंह, साहित्यकार श्री दिनेश गुप्ता, नेकां के श्यामपटेल आदि के साथ–साथ भाषा तथा संस्कृति से स्नेह रखने वाले शहर तथा आसपास के गण्यमान्य लोगों की उपस्थिति थी । ज्ञातव्य है कि यह कार्यक्रम नेकपा माओवादी एकीकृत के नेता श्री मातृका प्रसाद यादव के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न होना था मगर राजनैतिक व्यस्तताओं के कारण वे नहीं आ सके । उनकी अनुपस्थिति में भी २ नंबर प्रदेश की भाषा समस्या जो अभी सान्दर्भिक भी है, पर जमकर चर्चा हुई ।
इस अवसर पर बोलते हुए मुख्य वक्ता के रूप में गोपाल ठाकुर ने मातृभाषा की समस्याओं को उजागर किया, अपनी–अपनी मातृभाषा के प्रयोग पर बल दिया लेकिन यह भी खुले मंच से स्वीकार किया कि हिन्दी का प्रसार तराई क्षेत्र में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक है । यह विभिन्न भाषाक्षेत्रों के बीच संपर्क भाषा के रूप में बेहतर ढंग से काम कर रही है । इसलिए इसके महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता । उन्होंने यह स्पष्ट रूप से कहा कि हम अपनी–अपनी भाषा के प्रयोग और प्रसार की बात करें लेकिन किसी भाषा का विरोध नहीं करें । उन्होंने स्पष्ट कहा कि कोई भी भाषा जब तक जनजीविका का साधन नहीं बनेगी तब तक उसके घिसने का क्रम जारी रहेगा । उन्होंने स्पष्ट कहा कि मधेश की भाषा ओर संस्कृति को सबसे अधिक खतरा एक भाषा औ एक भेष की नीति से है । इसलिए बहुभाषिकता का सम्मान यहाँ होना ही चाहिए ।
इस अवसर पर बोलते हुए प्रायः सभी वक्ताओं ने अपनी–अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान और उसके प्रयोग पर बल दिया तथा यह विचार भी प्रस्तुत किया कि हमें अपनी–अपनी मातृभाषा के संवद्र्धन का प्रयास करना चाहिए मगर किसी भी भाषा का विरोध नहीं करना चाहिए । इस अवसर पर सिर्फ नेपाली काँग्रेस के श्री अजय द्विवेदी ने स्पष्ट कहा कि हिन्दी को किसी भी हालत में २ नंबर प्रदेश की कामकाज की भाषा नहीं बनायी जानी चाहिए क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो यह अन्य भाषाओं को निगल लेगी । इसने भारत में भी क्षेत्रीय भाषाओं को खाने का काम किया है । इसलिए यहाँ किसी हालत में इसे नहीं अपनाया जाना चाहिए ।
इस अवसर पर बालते हुए उप–प्राध्यापक कुमार सच्चिदानन्द सिंह ने कहा कि इस प्रदेश में भाषा के नाम पर जो विरोध और अन्तर्विरोध की अवस्था देखी जा रही है, उसमें भावुकता का मिश्रण अधिक है । मातृभाषा के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके समबन्ध में हम मनोवैज्ञानिक रूप से हीनता बोध से ग्रसित हैं और एसके प्रयोग से भागते हैं, इसलिए सबसे पहले तो हमें इस ग्रंथि से निकलकर इसके प्रयोग को बढ़ाना चाहिए । लेकिन दूसरा सच यह है कि आज शिक्षा पर रोजगार का दबाब बहुत गहरा है, अंग्रेजियत के खतरे सारी क्षेत्रीय भाषाओं पर मँडरा रहे हैं । ऐसे में उसी भाषा का अभ्यास हमारे लिए लाभप्रद हो सकता है जो रोजगार के अधिकतम साधनों को मुहैया कराती है । इस दृष्टि से हिन्दी तराई क्षेत्र में बिना किसी औपचारिक शिक्षा के भी अत्यधिक लोकप्रिय है । इसलिए राज्य अगर इसे भी इस प्रदेश में संवैधानिक मान्यता देने की बात करती है तो इसका विरोध नहीं किया जाना चाहिए ।

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