Thu. Sep 19th, 2024

संविधान सभा निर्वाचन के बाद से मधेश के हक अधिकार को दिलाने के बजाए मधेशी दल और उनके शर्ीष्ा नेता सिर्फसत्ता के ही र्इद गिर्द चार सालों तक घूमते रहे। सत्ता के नशे में वे इतने चूर हो गए हैं कि मधेशी आम जनता की आवाज उनके कानों तक नहीं पहुंच पा रही थी। मधेशी दल के जो नेता सिर्फसभासद् बन गए हैं वो तो सातवें आसमान पर रहते हैं लेकिन जो लगातार मंत्री बन गए हैं उनका पारा किस स्तर पर होगा इसका अंदाजा मधेशी जनता को है। खास कर उन लोगों को इसका कडवा अनुभव अवश्य होगा जो इनके चक्कर में पडे हैं। और जो व्यक्ति उपप्रधानमंत्री है उसकी तो बात ही निराली है। हमारे मधेशी उपप्रधानमंत्री जी को लगता है कि उनसे बडा कोई दूसरा नेता नहीं है और उनसे व्यस्त और कोई दूसरा मंत्री नहीं है।
वैसे तो चर्चा में आना मेरी आदत नहीं है। मैं एक किसान परिवार का लडका हूं। खेती कर अपना जीवन यापन करता हूं। और राजनीति में मधेशी आन्दोलन से स्थापित एक सक्रिय मधेशी कार्यकर्ता के रूप में भी हमने कई वर्षबिताए हैं। निषाद समुदाय से होने के कारण मैं उस समुदाय के ८ लाख लोगों को भी नए संविधान में अधिकार सुनिश्चित हो इसके लिए दिन-रात लगा रहता हूं। इसी क्रम में हमने अपनी मांगों को लेकर एक ज्ञापन पत्र सभी नेताओं को देना चाहा ताकि उनको ध्यान रहे। काठमाण्डू में बन्द के कारण देश भर से सिर्फदो तीन सौ की संख्या में ही हमारे कार्यकर्ता काठमाण्डू पहुँच पाए। हम सभी को गौशाला चौक पर ही रोक दिया गया। बन्द के दौरान पुलिस ने कहा कि झडप की स्थिति हो सकती है इसलिए आप आगे ना जाएँ। लेकिन जब मैंने पुलिस वालों को समझाया कि हम सिर्फशान्तिपर्ूण्ा तरीके से पैदल मार्च करते हुए जाएंगे और अपना ज्ञापन पत्र सिंहदरबार में रहे सभामुख और मधेशी एवं राजनीतिक दल के नेताओं को सौंपेगे तो पुलिस वाले भी मान गए और हमें जाने दिया।
लेकिन जैसे ही हम हनुमानस्थान के पास पहुंचे तो निषेधित क्षेत्र होने की वजह से हमें आगे नहीं बढने दिया गया। बडे पुलिस अधिकारी के आदेश पर मुझे पुलिस वालों ने पकड कर गाडी पर बैठा लिया और बबरमहल में ले जाकर छोड दिया। मेरे साथ रहे बांकी कार्यकर्ता भी पैदल दूसरे रास्ते से बबरमहल पहुंचे। बन्दी कई दिनों का होने के कारण अब एक ज्ञापन पत्र सौंपने के लिए गरीब जनता के साथ अधिक दिनों तक काठमाण्डू में रूकना संभव नहीं होने के कारण किसी भी तरह ज्ञापन पत्र आज ही सौंपने के इरादे के साथ मैंने अपने कुछ सभासद मित्र को फोन किया। बारा जिले के हमारे सभासद मित्र रामचन्द्र प्यासी और पर्ूवमन्त्री रघुवीर महासेठ जी के पहल पर सभामुख से मिलने के लिए हमे समय मिल गया। और मेरे सहित कूल ५ लोगों को ही सिंहदरबार के भीतर जाने की इजाजत मिली। हम काफी उत्साहित और खुश थे कि आज ज्ञापन पत्र सौंपने का काम हो जाएगा।
सभामुख जी ने हमारा पूरा सम्मान किया और २ मिनट की जगह पर हमको उन्होंने १० मिनट का समय दिया। हमारी बातें सुनी और हमें आश्वासन भी दिया। उनके व्यवहार से हम काफी प्रभावित हुए। सिंहदरबार में सभामुख के दफ्तर के पास ही फोरम लोकतान्त्रिक के संसदीय दल का भी दफ्तर है जहां पार्टर्ीीी बैठक चल रही थी। हमें मालूम हुआ कि यहां उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री जी तथा मधेशी मोर्चा के संयोजक विजय कुमार गच्छदार भी मौजूद हैं। हमने उनके निजी सचिव से आग्रह किया कि जैसे ही गच्छदार जी निकलते हैं वैसे ही हमें सिर्फ१ मिनट का समय खडे-खडे ही दे दें। उनके निजी सचिव ने कई बार अन्दर जाकर उन्हें इस बात की सूचना दी। लेकिन कोई भी जवाब नहीं आया। तब उनके निजी सचिव व सुरक्षा में रहे अधिकारियों ने बताया कि जैसे ही वे बाहर निकलेंगे आप उन्हें अपना ज्ञापन पत्र दे दीजिएगा।
मैं बाहर ही खडा रहा। संसदीय दल के बैठक कक्ष से बाहर निकल कर गच्छदार सीधे अपने कक्ष की तरफ गए। उस दौरान हमने उनसे आग्रह किया कि कृपया वे हमारी बात को सुन लें और ज्ञापन पत्र ले लंे। लेकिन उन्होंने झिडकते हुए कहा कि अभी समय नहीं है। और हाथ से चले जाने का इशारा किया। फिर जब वे दुबारा अपने कक्ष से निकल कर बैठक कक्ष में जाने लगे तो फिर हमने आग्रह किया कि कृपया वो ज्ञापन पत्र ले लें। लेकिन उन्होंने झिडकते हुए फिर कहा कि हम कोई भी ज्ञापन पत्र नहीं लेंगे अभी मेरे पास समय नहीं है। बार बार आग्रह किए जाने के बाद जब उनका रूखा व्यवहार मुझसे नहीं देखा गया तो मैं बेकाबू हो गया। और हमने जोर से कहा- मधेश आन्दोलन के शहीदों की लास पर राजनीति करनेवाले होसियार हो जाओ ! मधेशी शहीद के सपनों को बेच कर आप यहां राजनीति कर रहे हो। आप मधेश के गृहमन्त्री होते हुए हम मधेशी जनता पुलिस की लाठियां खा रहे हैं और आप यहां मौज-मस्ती में लगे हो। जिस मधेश आन्दोलन के नाम पर आप उपप्रधानमंत्री बने हो उसी मधेश की जनता से आप को मिलने का समय नहीं है। आप लोगों को मधेश में प्रवेश निषेध करेंगे।
मेरा इतना कहना था कि वहां मौजूद सभी युवाओं और बांकी लोगों ने ताली बजानी शुरू कर दी। झडप की स्थिति उस समय पैदा हर्ुइ, जब दो सभासद ने कहा कि क्या आप मधेशी डिआइजी पैदा किया है। तब हमने जवाफ दिया कि समग्र मधेश एक स्वायत्त प्रदेश पर अडान लो, हम मधेशी आईजीपी पैदा कर देंगे। मुझे मालूम था कि जो मैं कर रहा हूं वह किसी भी कीमत पर सही नहीं है लेकिन सत्ता के मद में मस्त हुए सभासदों को सबक सिखाने के लिए उक्त वाक्य बोलना जरूरी था।
ज्ञापन पत्र नहीं लेना सिर्फमेरा अपमान नहीं बल्कि पूरे मधेशी आम जनता का अपमान है। जिसने मधेश के मुद्दे के लिए इमानदारी से जमीनी कार्यकर्ता की भूमिका निर्वाह की। ताकि मधेश के नेता सत्ता में बार्गेनिंग ठीक से कर सकें। लेकिन जब आम मधेशी जनता का ही अपमान होगा तो उसे कोई भी बर्दाश्त नहीं कर सकता है चाहे गच्छदार ही क्यों ना हों। वहां मौजूद मेरे कुछ मित्रों और जोशीले युवाओं को भी गच्छदार द्वारा मेरे साथ किया गया व्यवहार पसंद नहीं आया। इसलिए मेरे गुस्से के साथ साथ उन्होंने ने भी फोरम लोकतांत्रिक के दफ्तर में अपना गुस्सा उतार दिया। उस पार्टर्ीीें मेरे कई मित्र सभासद् हैं जिन्होंने मेर साथ दिया और मेरे साथ हुए दर्ुर्व्यवहार के लिए गच्छदार को गाली भी दी। लेकिन कुछ ऐसे भी सभासद् थे जो वहां भी गच्छदार की चाटुकारिता करते नजर आ रहे थे।
यह गुस्सा इसलिए भी था कि अभी कुछ दिन पहले ही जब मैं और माओवादी के पर्ूव सभासद सत्यनारायण भगत जी इसी ज्ञापन पत्र के साथ प्रधानमंत्री डाँ बाबूराम भट्टर्राई और माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड जी से मिलने के लिए माओवादी हेडक्वार्टर पहुंचे तो अतिव्यस्तता के बावजूद उन दोनों शर्ीष्ा नेताओ ने ५ मिनट का समय दिया और कुछ कामों को तो प्रधानमंत्री ने तत्काल आदेश भी कर दिया। जब इतनी व्यस्तता के बावजूद प्रधानमंत्री मिल सकते हैं। माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड अपनी पार्टर्ीीी आन्तरिक विवाद की बैठक के बीच में ही मिलने का समय निकाल सकते हैं। संसद और संविधान सभा की बैठक का समय हो जाने के बावजूद जब सभामुख मुझे सिंहदरबार के भीतर बुलाकर समय दे सकते हैं तो क्या गच्छदार के पास इतना भी समय नहीं था कि वो इतनी दूर से पैदल चल कर आए निषाद समाज का ज्ञापन पत्र ले सके। क्या वो देश के सभी शर्ीष्ा नेताओं से भी अधिक व्यस्त हैं- नहीं। मधेशी नेता अपनी करतूतों की वजह से अब मधेशी जनता से आंख चुराना चाहते हैं।
यह हाल सिर्फविजय गच्छदार का नहीं बल्कि सरकार में शामिल अन्य मधेशी नेताओं का भी है। लेकिन इनका यह व्यवहार आने वाले दिनों में उन्हें काफी महंगा पडने वाला है। जब आम मधेशी जनता को ये उपेक्षा करेंगे तो मधेशी जनता भी इन्हें सबक सिखलाएगी। आने वाले चुनाव में ही इन सभी को अपनी हैसियत का अंदाजा हो जाएगा। जिस तरीके से मधेश विरोधी संविधान पर ये सहमति जता रहे हैं यदि ऐसा ही संविधान आया तो मधेशी जनता इन्हें मधेश के किसी जिले में घुसने तक नहीं देगी। राज्य के हरेक निकाय में निषाद जातिका आरक्षण, आदिवासी जनजाति के सूची में सूचीकृत, जलसेना का निर्माण, मत्स्य मन्त्रालय की स्थापना, लगायत ६ सूत्रीय माग हमारे माँग यदि सरकार ने सुनवाई नहीं की तो आनेवाले दिन में हम लोग मधेश में सशक्त आन्दोलन करेंगे।
-लेखकः गणतांत्रिक राष्ट्रीय निषाद संघ, नेपाल के केन्द्रीय अध्यक्ष हैं)

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