मोर्चाबन्दी के घेरे में मधेश
हिमालिनी डेस्क
संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा, वृहत मधेशी मोर्चा, राष्ट्रीय मधेशी मोर्चा और स्वतंत्र मधेशी मोर्चा !!। इस समय मधेश के मुद्दे को लेकर न जाने और कितने मोर्चा का गठन
होगा। लेकिन इस बात पर खुशी भी जाहिर करनी चाहिए कि अब नए राजनीतिक दल खोलने के बजाए मधेश के मुद्दे पर संगठित होकर हमारे राजनीतिक दल और सभासद विभिन्न तरह की मोर्चाबन्दी में लगे हुए हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर जब मुद्दा एक है और लक्ष्य भी एक ही है तो फिर मोर्चा भी एक ही क्यों नहीं –
लेकिन राजनीति में हमेशा एक न एक विकल्प खडा रहता ही है। इन सभी को एक जगह पर लाना भी मुश्किल है। क्योंकि लक्ष्य एक होने के बावजूद सभी के तरीके और सोच में र्फक है। एक मोर्चा जो कि इस समय सरकार में है और सरकार में रहकर मधेश के मुद्दों के प्रति अपना संर्घष्ा तीन दलों के साथ करने में व्यस्त होने का दावा कर रहा है। संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा की सबसे बडी उपलब्धि यह है कि देश के बारे में हो या फिर संविधान के बारे में या फिर किसी भी अन्य राष्ट्रीय मुद्दे पर अब इस मोर्चे को चौथी शक्ति के रूप में मान्यता तीन दलों ने दे दी है। और राष्ट्रीय समझौते में किसी न किसी रूप में इस मोर्चा के नेताओं को राष्ट्रीय फैसले में सहभागी कराया जा रहा है। मोर्चा के अहम घटक फोरम गणतांत्रिक के अध्यक्ष राजकिशोर यादव कहते हैं कि मधेशी के लिए यह एक बडÞी उपल्ब्िध है कि मधेश के अस्तित्व को तीन दल न चाहते हुए भी स्वीकार कर रहे है और अब किसी भी बडे मुद्दे पर संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा को दरकिनार नहीं किया जा रहा है।
इसी तरह कुछ राजनीतिक दल और संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा में ही रहे दल के कुछ सभासदों द्वारा वृहत मधेशी मोर्चा का गठन किया गया। इस मोर्चा का गठन करने में अहम भूमिका निर्वाह करने वाले शरदसिंह भण्डारी का दावा है कि संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा जिस तरीके से सरकार में रहकर संर्घष्ा कर रहा है वैसे ही वृहत मधेशी मोर्चा सदन में मधेशी मुद्दे के लिए संर्घष्ा में है। वृहत मधेशी मोर्चा के गठन के समय से ही सक्रिय रहने वाले माओवादी के पर्ूव सभासद रामकुमार शर्मा का आरोप है कि तीन पार्टियां मधेशी मुद्दों को अनदेखी कर रही है। मधेश की भावनाओं का अपमान किया जाता रहा है इसलिए इस मोर्चा में सभी पार्टियों के मधेशी सभासदों की भूमिका अहम है।
कुछ दिन पहले ही गठित राष्ट्रीय मधेशी मोर्चा का कहना है कि वो न तो सरकार में है और न ही सदन में है इसलिए सडक पर संर्घष्ा करने के लिए गठित किया गया है। इस राष्ट्रीय मधेशी मोर्चा के संस्थापक नेताओं में से एक नेपाल सद्भावना पार्टर्ीीजेन्द्रवादी के अध्यक्ष विकास तिवारी का कहना है कि जो पार्टियां सरकार में हैं वो सरकार में रहकर और पार्टियां संसद में है वो सदन से संर्घष्ा करेगी लेकिन मधेश के अधिकार के लिए सडक संर्घष्ा भी उतना ही आवश्यक है। इसलिए जो पार्टर्ीीस समय न तो सरकार में है और न ही संसद में है ऐसी छोटी पार्टियों को जोडकर राष्ट्रीय मधेशी मोर्चा बनाया गया है।
इसके अलावा कुछ छोटी पार्टियां जो कि संसद में तो है लेकिन उनका कोई भी अस्तित्व नजर नहीं आता है और न ही संविधान निर्माण के काम में उन्हें अधिक महत्व दिया जाता है। सभासद होने के बावजूद उनकी अहमियत इन दलों के द्वारा नहीं दिए जाने के कारण एक स्वतंत्र मधेशी मोर्चा का गठन किया गया है। कभी नेपाल सद्भावना पार्टर्ीीे जुडे रहे और इस समय अपनी अलग पार्टर्ीीा गठन करने वाले जनता दल यूनाईटेड के विश्वनाथ अग्रवाल और नेकपा संयुक्त की रूक्मिणी चौधरी जैसे सभासदों ने मिलकर एक नए सोच के साथ इस मोर्चा का गठन किया है।
इन मोर्चाओं के गठन का सकारात्मक पक्ष यह है कि मधेशी मुद्दे पर किसी न किसी रूप में नेताओं और दलों के बीच ध्रुवीकरण होता नजर आ रहा है। इससे संविधान में मधेश के मुद्दे को और कारगर ढंग से उठाने में मदत तो मिलेगी ही साथ ही आने वाले दिनों में यदि आम चुनाव होते हैं और दलों का यही समीकरण रहता है तो इससे भी फायदा होने के आसार नजर आते है। क्योंकि अगर मधेशी दल एक साथ मोर्चाबन्दी कर चुनाव लडÞते हैं तो मत देने वाले लोगों की समस्याएं कम होंगी। लेकिन यदि चुनाव के समय तक यह मोर्चा कायम नहीं रहता है और सभी दल अलग अलग रूप से चुनाव लडते हैं तो फिर संविधान सभा के चुनाव में ८-१० दल होने का खामियाजा हम भुगत चुके हैं और अब तो करीब दो दर्जन मधेशी दल हो गए हैं तो एक बार फिर से लोग कांग्रेस एमाले और माओवादी को ही वोट देंगे।
इन सभी मोर्चाबन्दी के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं। जैसे कि संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा की बात करें तो यह मोर्चा तभी तक टिका हुआ है जब तक सरकार में शामिल है। मोर्चाबन्दी कर जाने के कारण सरकार में जिस रूप से उनको सहभागिता दी जा रही है, उस रूप में अलग होने के बाद उन्हें कभी भी हासिल नहीं हो सकती थी। अभी तो माओवादी के नेतृत्व में सरकार है और मधेशी मोर्चा को साझेदार के रूप में सहभागी कराया गया है तो फिर उन्हें काफी फायदा मिला है लेकिन कल जब सरकार नेतृत्व परिवर्तन की बात आएगी तो कांग्रेस या एमाले या फिर माओवादी इस मोर्चा को तोडने का पूरा प्रयास कर सकते हैं या फिर इनके विकल्प में वो उपेन्द्र यादव को मधेशी के नाम पर सरकार में सहभागी कराकर उसे राष्ट्रीय होने का दावा कर सकते है।
दूसरी बात यह है कि इस मोर्चा में अभी पांच दल हैं लेकिन कुछ और मधेशी दल हैं जो कि इस मोर्चा में शामिल होना चाहते हैं लेकिन कुछ नेताओं के व्यक्तिगत अहम की वजह से मोर्चा में उन्हें स्थान नहीं दिया जा रहा है। जैसे अनिल झा के नेतृत्व में रही संघीय सद्भावना पार्टर्ीीसरिता गिरी के नेतृत्व में रही नेपाल सद्भावना पार्टर्ीीादि। इन नेताओं को मोर्चा में स्थान देने से मोर्चा में और अधिक शक्ति आएगी और सत्ता के लिए हो या मधेशी मुद्दा के लिए बार्गेनिंग पावर भी बढेगी।
इसी तरह बात वृहत मधेशी मोर्चा की करें तो इस मोर्चा में कुछ नेता पूरी इमानदारी के साथ लगे हैं जबकि कुछ को इसमें शक की नजर से भी देखा जा रहा है। नेताओं के बयान से यह स्पष्ट भी होता है। संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा से आबद्ध दलों के जो नेता इस वृहत मधेशी मोर्चा में लगे हैं वो हमेशा यह कहते हैं कि यह उसका विकल्प नहीं है बल्कि उसको मजबूती प्रदान करने के लिए है। लेकिन दूसरी पार्टियों के नेता संयुक्त मोर्चा की जमकर आलोचना करते हुए इस वृहत मधेशी मोर्चा को उसके विकल्प के रूप में देखते हैं। इस मोर्चा का संयोजक उपेन्द्र यादव को बनाए जाने से लोगों में एक और शंका और क्या घर कर गई है कि इस वृहत मधेशी मोर्चा में उपेन्द्र यादव तभी तक हैं जब तक उन्हें कोई मंत्रालय नहीं मिल जा रहा है। और जैसे ही कोई मंत्रालय मिल जाएगा वो इस मोर्चा से अपना नाता तोड लेंगे। यह आशंका स्वाभाविक भी है। क्योंकि कई बार पहले भी संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा में रहने के दौरान सरकार में शामिल होने की बात को लेकर ही वो मोर्चा में जाते रहे हैं और अपने फायदे के लिए मोर्चा से अलग भी होते रहे हैं।
इसके अलावा इस वृहत मधेशी मोर्चा में सिर्फऐसे ही लोगों का जमावडा दिखता है जो या तो मंत्री पद से हटाए गए हैं या फिर मंत्री पद उन्हें नहीं मिला है या फिर अब मंत्री पद मिलने की भी कोई संभावना नहीं है। तो सवाल यह उठता है कि कहीं यह विक्षुब्ध मधेशी का मोर्चा तो नहीं है – शायद यह आशंका जायज नहीं हो लेकिन कुछ नेताओं के बयान और उनके स्वभाव से ऐसा ही लग रहा है।
खैर कुछ भी हो मधेश के लिए जितने मोर्चा बने उतना ही अच्छा है और सभी मोर्चा अलग अलग मोर्चाें पर से मधेश के मुद्दे के लिए इमानदारी से संर्घष्ा करते रहेंगे तो मधेश का अधिकार कोई छीन भी नहीं सकता है। और सत्ता में बैठे मधेशी दल कोई बर्ेइमानी भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि उन्हें मालूम होगा कि उन पर दूसरे मोर्चे की भी नजर है।