Fri. Mar 29th, 2024
संजीव निगम
संजीव निगम , हिमालिनी, अप्रैल अंक , २०१८ | रेल की पटरी से हमारे घर  बिछे हुए अतिथि , अगर हमारे घर आने से पहले ही तुमने शरद जोशी जी का वह मशहूर व्यंग्य लेख पढ़ लिया होता जिसने इस देश की अतिथि के हँसते हुए स्वागत की परम्परा के पीछे छिपे दर्द को खोल कर रख दिया था तो हमारे आपसी संबंध आज भी मधुर होते। ज़रा सोचो , हमारे घर पर सुबह कम्प्लीमेंटरी ब्रेकफास्ट से लेकर रात का  बुफे डिनर करते हुए  तुम्हें एक महीना होने को आया , लेकिन प्रस्थान का एक भी  शुभ संकेत तुम्हारी  तरफ से नहीं आया है। हमारे दिल का सिग्नल कब का लाल होकर तुम्हारे सिग्नल के हरे होने की राह देख रहा है। पर रवानगी का शुभ संकेत देती हरी झंडी अभी तक तुम्हारी तरफ से नहीं हिली है।  जितने दिनों से तुमने हमारे घर को अपनी क्षुधाभूमि और आराम स्थली बना रखा है उससे कहीं कम दिनों में तो जिद्दी भीष्म  पितामह ने रणभूमि में  प्राण त्याग दिए थे।  पर तुम  ….. ? तुम अतिथि हो या बांग्लादेशी घुसपैठिये ? एक बार हमारी सीमा में घुस आये तो जाने  का नाम ही नहीं ले रहे।
इस एक महीने में ,तुम्हें जाने की प्रेरणा देने के लिए  हम न जाने कितनी ही बार ” अतिथि तुम कब जाओगे ” पिक्चर लगा कर  बोर होते रहे  लेकिन तुम तो उसका भी आनंद लेते रहे।  हमारे बच्चों ने हिन्दी  न बोलने की अपनी ईगो त्याग कर अपने अधकचरे हिन्दी उच्चारण में  तुम्हारे सामने   ” अतिथि तुम कब जाओगे ”  का भी ज़ोर ज़ोर से पाठ कर डाला ।  लेकिन तुमने उन शब्दों के मर्म पर ध्यान न देकर , बच्चों का उच्चारण साफ़ करने की क्लास लगा डाली।  तबसे बच्चे तुम्हारे सामने आने से भी डरने लगे हैं। टमाटर और प्याज के आसमान  छूते दामों की चर्चा करते करते पत्नी  आधी अर्थशास्त्री बन गयी और तुमने बिना  विचलित हुए उसे बिना प्याज टमाटर की सब्ज़ी बनाना सिखा  दिया। कभी किसी दिन सवेरे जब तुम घर से बाहर जाते हो तो हमारे दिल के मोबाईल में उम्मीद का नेटवर्क दिखाई देने लगता है पर तुम शाम को वापस आकर उस उम्मीद को आउट ऑफ़ कवरेज एरिया कर देते हो।
 हे सामाजिक आतंकवादी तुमने तो ये साबित कर दिया है कि समाज को बदलने में साहित्य,फ़िल्में और सभ्य आचरण तीनों  नाकाम हैं। अब हमें लग गया है कि अतिथि तुम ऐसे नहीं जाओगे ? सभ्यता के तकाज़े और रिश्ते के लिहाज़ ने अभी तक हमें ऐसे ही विनम्र बना रखा था जैसे बैंक वाले करोड़ों रुपयों का घोटाला करने वाले डिफॉलटर के आगे नतमस्तक रहते हैं। लेकिन अब  हमने भी रुख बदल लिया है।  अब हम घर में ” अब तक छप्पन ” जैसी फ़िल्में चलाने लगे हैं।  तुम्हारे चक्कर में शुद्ध वैष्णव भोजनालय बनी रसोई में फिर से मुर्ग मुसल्लम पकने लगा है। कपड़े धोने वाली और बर्तन मांजने वाली बाई को हटा कर अपने कपड़े बर्तन खुद धोने का नियम लागू कर दिया है।  नाश्ते में सूखी ब्रेड और लंच डिनर में सिर्फ खिचड़ी खाना शुरू कर दिया है। जिस कम्प्यूटर के सामने सारा दिन बैठ बैठ कर तुमने हिलने वाली कुर्सी का अंजर पंजर हिला डाला है उस  कम्प्यूटर का पासवर्ड बदल डाला  है।  सबसे मारक और घातक प्रहार तो तुम पर ये किया है कि हमने अपने घर का वाई फाई भी कटवा दिया है। बिना फ्री वाई फाई के तुम जी नहीं पाओगे अतिथि।  अब देखते हैं कि तुम कैसे नहीं जाओगे अतिथि ?     
संजीव निगम ,[ मोब : 09821285194 ] डी – 204 , संकल्प -2 ,
क्लासिक कम्फर्ट होटल के सामने ,
पिम्परी पाड़ा , फिल्म सिटी रोड ,
मलाड [पूर्व ] मुम्बई -400097

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: