Fri. May 23rd, 2025

सत्ता के लिए फिक्सिंग

वैसे तो क्रिकेट मैच में फिक्सिंग की खबर अक्सर आप सुनते होंगे लेकिन नेपाल के सर्ंदर्भ में कहा जाए तो यहां राजनीति में भी सबकुछ फिक्स होता है अपनी सत्ता बचाने के लिए एमाले और माओवादी के कुछ नेता सब कुछ फिक्सिंग के आधार पर आगे बढ रहे हैं नेपाली राजनीति में खासकर प्रधानमंत्री की कर्ुसी बचाने के लिए और माओवादी के हाथों कुछ दिनों बाद सत्ता सौंपने के लिए एमाले के झलनाथ खनाल और माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड के बीच सबकुछ मैच फिक्सिंग की तरह तय है किस दिन किस समय कौन से वक्त और किसके सामने कौन सी बात करनी है और अपनी पार्टी की बैठक में नेताओं के साथ कैसे पेश होना है, मीडिया के सामने कौन सा राग अलापना है यह सब फिक्स है
पिछले कुछ दिनों से सत्तारूढ दलों के बीच देखे गए नाटकीय अंदाज से ये बात प्रमाणित भी हो जाती है माओवादी के भीतर तीव्र विवाद, अपने मंत्रियों को वापस बुलाने, नए मंत्रियों को मंत्रिमंडल में भेजने, इस पर एमाले द्वारा विरोध किए जाने, प्रधानमंत्री द्वारा भी शपथ से इंकार किए जाने, फिर माओवादी द्वारा र्समर्थन वापसी की चेतावनी देने, सरकार गिरने की नौबत आने, प्रधानमंत्री और प्रचण्ड के बीच बातचीत बेनतीजा निकलने इसके बावजूद प्रचण्ड द्वारा र्समर्थन जारी रखने की घोषणा करने, अचानक प्रधानमंत्री द्वारा माओवादी मंत्रियों का शपथ कराए जाने, एमाले में इसका विरोध होने और बाद में प्रधानमंत्री द्वारा दस दिनों के भीतर अपने पद से इस्तीफा देने, अगले ही दिन अपनी बात से पलटते हुए इस्तीफा से इंकार करने और ६-६ महीनों के लिए तीनों दल को प्रधानमंत्री की कर्ुसी का प्रस्ताव देने की घटना पिछले एक महीने में देखने को मिली
नेपाली राजनीति ने पिछले एक महीने में काफी उतार चढाव देखा काफी नाटक देखे, नेताओं का भाषण भी सुना और उनको अपने ही बातों से पलटते हुए भी देखा इन सब बातों से यह स्पष्ट होता है कि कर्ुसी पर जमे रहने के लिए झलनाथ खनाल और प्रचण्ड के बीच सबकुछ फिक्स है माओवादी द्वारा मंत्रिमंडल विस्तार के लिए दबाब बनए जाने और एमाले द्वारा उसे अस्वीकार किए जाने के बाद एक बार तो लगा कि अब सरकार गिर ही जाएगी लेकिन प्रचण्ड और खनाल के बीच मैच फिक्स होने की वजह से सब कुछ पलट गया सरकार भी बच गयी मंत्रिमंडल में माओवादी के मंत्रियों को भी शामिल कर लिया गया
इन सब के पीछे का रहस्य अब किसी से छुपा नहीं रहा एमाले में खनाल विरोधी नेता और माओवादी में प्रचण्ड विरोधी नेताओं के शोर शराबे के कारण खनाल सरकार की आयु बढती ही जा रही है कांग्रेस और मधेशी मोर्चा प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रही है कांग्रेस ने तो दस दिनों से संसद भी अवरूद्ध कर रखा है लेकिन उसका कोई ही फायदा नहीं दिख रहा है
माओवादी में देखे गए विवाद के कारण भी खनाल सरकार की आयु बढती जा रही है पार्टी में मोर्चाबन्दी कर बाबूराम भट्टर्राई, मोहन वैद्य किरण,नारायणकाजी श्रेष्ठ और महासचिव रामबहादुर थापा बादल के एक खेमे में आ जाने से प्रचण्ड का फिलहाल प्रधानमंत्री बनना नामुमकिन है माओवादी ने आधिकारिक तौर पर तो बाबूराम भट्टर्राई को प्रधानमंत्री का उम्मीद्वार घोषित कर दिया है लेकिन प्रचण्ड किसी भी हालत में भट्टर्राई को प्रधानमंत्री नहीं बनने देना चाहते हैं
प्रचण्ड तो मंत्रिमंडल विस्तार भी नहीं करने देने के पक्ष में थे मंत्रिमंडल विस्तार में इतने दिनों की ढिलाई भी प्रचण्ड के ही कारण हर्ुइ लेकिन बाद में प्रचण्ड को यह लगा कि यदि मंत्रिमंडल में माओवादी नेताओं को शामिल नहीं कराया तो खनाल सरकार ही गिर जाएगी और प्रचण्ड अभी नहीं चाहते हैं कि खनाल की सरकार गिरे इसके दो कारण है पहला तो खनाल की सरकार गिरने के बाद भट्टर्राई का प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो सकता है जो कि प्रचण्ड कभी भी नहीं चाहते हैं दूसरा प्रचण्ड हमेशा से ही खुद को खनाल सरकार के जन्मदाता के रूप में पेश करते आ रहे हैं इसलिए भी वो नहीं चाहते कि यह सरकार तुरन्त गिर जाए
उधर एमाले में बहुत अधिक बोलने वाले नेता माधव नेपाल और के पर्ीशर्मा ओली की भी हैसियत पता लग गयी लोगों को यह लगने लगा है कि एमाले के भीतर ओली और नेपाल की कुछ भी नहीं चलती है और ये दोनों नेता सिर्फबोलते ही ज्यादा हैं इनके वश का कुछ भी नहीं है इन दोन ओं नेताओं के लाख विरोध के बावजूद खनाल ने ना सिर्फमाओवादी से गुप्त समझौता कर प्रधानमंत्री की कर्ुसी पर बैठे बल्कि तमाम विरोध के बावजूद माओवादी को गृह मंत्रालय भी दे दिया ५ सूत्रीय समझौते के बाद जब खनाल के इस्तीफा देने की बात आयी तो भी ये दोनों नेता की एक ना चली और खनाल अभी तक कर्ुसी पर टिके हैं
माधव-ओली के साथ इश्वर पोखरेल के भी मिल जाने के बाद भी ये तीनों नेता खनाल के विरोध में बात बनाने के अलावा कुछ भी करने की हैसियत में नहीं है इनके लाख विरोध के बाद भी खनाल ने माओवादी के नए मंत्रियों को शपथ भी दिला दी इतना ही नहीं खनाल ने चुनौती दी है कि यदि दम है तो उन्हें पार्टी से और प्रधानमंत्री पद से हटाकर दिखाए
इन सब राजनीतिक नाटक में एक बात तो तय है कि इस बार भी शान्ति प्रक्रिया और संविधान निर्मण काम पूरा नहीं हो सकता है इस बार ही नहीं बलिक जिस तरह से खनाल ने ६-६ महीने का कर्ुसी के खेल का नयां प्रस्ताव सामने लाया है उससे एक बात साफ हो गई है कि इन नेताओं को अगले एक वर्षमें भी संविधान बनाकर जनता के सामने पेश करने का कोई भी मन नहीं है नेपाल की जनता अभी भी इन नेताओं को एक वर्षझेलेगी िि
ि

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *