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डर ही तो साहस पैदा करता है, विद्रोह करना भी एक साहस ही तो है : कैलाश महतो

बलिदान दिवश लहान , ५ गते माघ, फोटो – मनोज बनैता

कैलाश महतो, परासी | क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश की है कि डर क्या है ? यह कहाँ से क्यों पैदा होता है ? इससे लोग सामना करने से घबराते क्यों हैं ?
भगवान् रजनीश को मानें तो डर एक मनोदशा है जो मनुष्य के जीवन में दो प्रकार से घर कर बैठा रहता है ः प्राकृतिक और कृतिम रुप में । प्राकृतिक रुप में आदमी स्वयं में सचेत रहता है कि उफान भरी नदियों में जाना खतरा होता है । घर के छत से नीचे छलांग लगाना जानलेवा होता है । आग में हाथ डालना जोखिम होता है, आदि इत्यादि । वहीं लोग अपने मातापिता, पडोसी या किसी अन्य से सिखता है कि अन्धेरे में प्रेत होता है । सरकार के खिलाफ आवाज उठाना अपराध होता है । आन्दोलन करना जोखिम होता है । ये कृतिम डर हैं । ऐसे भय हम अपने इर्दगिर्द के लोगों से सिख लेते हैं ।
डर एक मनोविज्ञान है । एक उर्जा है । एक शक्ति है । वास्तव में यह साहस निर्माण करता है । डर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार से व्यक्ति को होश में लाता है, उत्साह बढाता हैै । भय इतना ताकतवर होता है कि सकारात्मक और नकारात्मक दोनों अवस्थाओं में आदमी को सुरक्षा प्रदान करता है ।
संसार का हर काम लोग भय के कारण ही करते है । बलशाली को कमजोर हो जाने का भय, सम्पन्न और धनाढ्यों को गरीब हो जाने का त्रास और विद्यार्थियों को परीक्षा में असफल होन का डर । ये सब सकारात्मक डर हैं । इसी डर के कारण लोग मेहनत करते हैं, प्रगति का रास्ता ढूँढते हैं । उसी तरह किसी व्यक्ति के सामने अगर प्रेत खडा हो जाये, किसी अपराधी के पिछे पुलिस पड जाय या किसी के पिछे बाघ पड जाय तो उस आदमी में अचानक इतनी ताकत आ जाती है, इतने रफ्तार से वह दौड लगाता है कि विश्व विजेता रहे धावक को भी पिछे छोड दें, जबकि वह आदमी समान्य रुप में दौड भी नहीं सकता । इन दोनों हालातों में डर आदमी को साहस, बल और उर्जा प्रदान करता है । वैसे ही प्रेम से भरा आदमी भय रहित हो जाता है । क्योंकि डर से बडा कुछ और ही उसने पा लिया होता है । मृत्यु से भी मूल्यवान उसके लिए उसका प्रेम हो जाता है । वह चाहे परिवार का प्रेम हो, या व्यक्ति वादी प्रेम हो, या फिर देशप्रेम हो, या आजादी प्रेम ही क्यों न हो । वह जीवन प्रेम भी हो सकता है ।
सिकन्दर एक बार तक्षशिला में एक भारतीय सन्यासी को अपने साथ चलने को कहता है । सन्यासी इंकार कर देता है । सिकन्दर उस सन्यासी को धम्की देता है कि अगर वो उसके साथ नहीं गया तो वह उसका गला काट देगा । तलवार निकालकर सिकन्दर उसके गले पर रख देता है । सिकन्दर का रोब देखकर सन्यासी हँसते हुए जबाव देता है कि वह जिस सन्यासी का गर्दन काटने की बात करता है, उसने अपना गला कब को काट चुका है । अब उसका गला रहे या कटे, उसे कोई फर्क नहीं पडता । सन्यासी गला काटे जाने का भी प्रतिक्षा करने लगता है और सिकन्दर हत्प्रभ हो जाता है । वह घबरा जाता है और उसके गर्दन पर रखे हुए तलवार को वापस कर उससे क्षमा माँगता है ।
हम गौर से देखें तो “डर” किसी को डराने बालों के लिए एक मजबूत हथियार होता है, वहीं “डर” को बेहिचक स्वीकार करने बालों के लिए वह एक ताकत है । अंगरक्षक रखने का यह मतलब कतई नहीं कि वह उसका शान और प्रतिष्ठा है । अंगरक्षक वही पालता है जो अन्दर से डरा हुआ होता है । दुनियाँ की सारी सरकारे कायर और डरपोक होती हैं । इसिलिए अपने सुरक्षा के लिए वह सेना पालती है । पुलिस रखती है । कोई राजा, राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, मन्त्री या बडे अधिकारी आवश्यकता के कारण सेना के घेरों में नहीं होते, अपितु वे त्रास के कारण, डर के वजह से सुरक्षा घेरों में होते हैं । उसके सुरक्षा घेरा यह प्रमाणित करता है कि वह खुद कहीं न कहीं अपराधी है । सरकार तो अपराधों का खजाना ही होता है । शासक अपराधियों का हुजुम होता है ।
राजनीतिक और आर्थिक अपराध आदमी को एक तरफ कायर बना देता है वहीं निश्छल अपराधी को ताकतवर बना देता है । अंगुलीमाल और रत्नाकर जैसे भोलेभाले अपराधियों ने अच्छे नेतृत्वों को पाकर ऐसे छलांग लगाये कि लोगों के दिल दिमाग पर राज करने बाले ताकतवर नायक बन गये । संसार के बदमाशों का इतिहास देखी जाय तो अज्ञानता में अपराध करने बाले अपराधी ही बडे बडे नायक बने हैं । क्याेंकि उन्हें सुधारा जा सकता है, आर्थिक और राजनीतिक अपराधियों नहीं ।
हकिकत यही है कि हम हर काम डर के कारण ही करते है । असामयिक मृत्यु के भय से कोई सुरक्षित होकर लम्बे समयतक जीने के लिए कर्म करता है, धर्म करता है । कोई बदनामी से बचने और जन्मों जन्मतक अपना, अपने परिवार और समाज के अस्तित्व रक्षा के लिए जिन्दगी के कसौटी पर भी खतरों को गले लगा लेता है । लेकिन एक बात इतिहाससिद्ध है कि उतने मूल्य किसी चोर, डाकू या हत्यारों से समाज को नहीं चुकानी पडी है जितने एक राज नेता से समाज को सहने पडे हैं । एक चोर या लुटेरा तो एक घर को लुटता है, एक हत्यारा अगर पागल हो जाये तो दो चार या दश बीस को मार देता है । मगर राज नेताओं ने तो देश और समाज सेवा के नाम पर करोडों लोगों की जाने ले लेने की इतिहास है, समाजवाद और साम्यवाद के नाम पर तो सारे देश की जनता के सम्पतियों को लुटने का प्रमाण है । लेनिन, स्टालिन, क्याष्ट्रो, होचिमिन्ह, माओ उसका उदाहरण हैं जिन्होंने व्यक्ति गत सम्पतियों को हरण कर उसपर राज की है । और ये सारे कार्य डर के कारण ही हुए हैं ।
अपराध करने बाले लोग कम से कम निर्भिक और साहसी तो होते हैं । बिना साहस कोई आदमी डर को स्वीकार नहीं सकता । हमेशा अनुशासन में रहने बाला आदमी विद्रोह नहीं कर सकता । विद्रोह न करने बाला आदमी समाज को बदल नहीं सकता । समाज और राष्ट्र को यथास्थिति में छोडने बाला आदमी कभी नायक, राष्ट्रनायक या जननायक नहीं बन सकता । देशद्रोह का अपराध करना भी एक साहस ही है ।
दुनियाँ के हर नामूद देशद्रोही राष्ट्रपिता और राष्ट्रनिर्माता हुए हैं । वे सारे देशद्रोही त्रसित और भयभित थे । इसिलिए उन्होंने विद्रोह किया और नये राष्ट्रों की निर्माण की । जर्ज वासिंङ्गटन को डर था कि अगर अमेरिका आजाद न हुआ तो अमेरिका को अंग्रेज कंगाल बना देंगे । स्यामुएल च्यापलिन को भय था कि अगर अंग्रजों से फ्रान्स मुक्त न हुआ तो फ्रान्स का अस्तित्व विलिन हो जायेगा । गान्धी को आशंका था कि अंग्रेजों को भारत से खदेरा न गया तो न जाने कितने मोहनचन्द्र गाँधी को चलते टे«नों से बाहर फेंक दिया जायेगा । सन् यात्सेन को त्रास था कि चीन अगर जापान को मानता रहा तो चिनयिाँ अर्थ व्यवस्था और संस्कृतियाँ हमेशा हमेशा के लिए दफना दिये जायेंगे ।
मधेश का हाल क्या तत्कालिन किसी भारत, किसी अमेरिका, किसी चीन, किसी फिजी, किसी हङ्गकङ्ग या किसी फ्रान्स से कम है ? और मधेश के साथ घटने बाले उन अकल्पनीय एवं त्रासदीपूर्ण अवस्थाओं को समूल नष्ट करने के लिए ही तो डर को उर्जा के रुप में प्रयोग करते हुए मधेश के लिए शान्तिपूर्ण तरीके से खडे होने होंगे ! डर को शत्रु नहीं, मित्र बनाकर तो देखें–सारी समस्या अन्त हो जायेंगी और वही डर हमारा अकल्पनीय मजबूत हथियार बन जायेगा ।

Dr. CK Raut

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#भारत , #नेपाल या कोई मधेशी #सामन्त ही हमें मरवा देगा ? ………. तो मर जायेंगे।
इसमें कौन सी बड़ी बात है ? दुनियाँ में हर दिन कितने लोग पैदा होते हैं, कितने मरते हैं। उस दैहिक मौत की उतनी परवाह क्यों करें ? जब तक जीएँ शेर की तरह जीयें, आत्मसम्मान से जीयें, आजादी से जीयें, यही काफी है।
और मेरे देह का जींदा रहना या मर जाना उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है। अगर १०ओं लाख मधेशी जो आज हमारे विचारों को किसी न किसी जरिए से पढ़ते हैं, सुनते हैं, वे अगर २(४ आना भी समझ लें, तो मैं हर मधेशियों के दिल में जिंदा ही रहुँगा। मधेश के घर(घर में सिके मौजूद रहेगा। जब कोई भी मधेशी दासता की मानसिकता को छोड़कर अपने शिर को उँचा उठाकर चलेगा, तो उन्हें मेघों में हो या चाँद सितारों में, मैं नजर आऊँगा।
इसलिए मैं शुभचिन्तकों, समर्थकों और स्वजनों से आग्रह करना चाहता हूँ कि कृपया इसकी चिंता न करें।

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