Fri. Mar 29th, 2024

जीभ तो सांप की तरह लपलपाती है पर उसको कमीशन का नेवला हजम कर जाता है 



कल को हमारे प्यारे कक्का जी कहेंगे कि कंघी से ज्यादा लंबे बाल हों तो कंघी बड़ी नहीं बाल को छोटा करो । सिर से बड़ी टोपी है और सिर में टिक नहीं रहा है तो टोपी को छोटा करने की बजाय सिर को ही काट, छांट कर छोटा कर दो ।


हिमालिनी, मई अंक । हमारे देश के प्यारे कक्का जी कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं । कभी हवा से बिजली निकालने की बात करते हैं तो कभी मेट्रो या मोनो रेल देश की छाती पर दौड़ाने की बात करते हैं । पर यह कक्का जी के देखे हुए सारे सपने देश की छाती पर तो नहीं देश के अवाम की छाती छलनी कर के निकल जाते हैं । अभी हाल ही में कक्का जी ने कहा कि जूता छोटा होने पर जूते बदलने की बजाय आलू की तरह पैर को ही काट छाँट और छील कर छोटा कर लेना चाहिए । अब कक्का जी अनुभवी आदमी हैं उन्होंने खुद भी पहले यही नुस्खा आजमाया होगा तभी तो दूसरों को भी यही करने की सलाह दे रहे हैं ।
रूस के कम्युनिष्ट नेता लेनिन की जन्म जयंति पर देश की राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम में हमारे महामहिम प्रधान मंत्री कक्का जी ने यह बात कही है । दरअसल बुढ़ापे में आदमी सठिया जाता ही है । पर हमारे कक्का जी तो बूढ़ा होने के साथ ही देश के प्रधान मंत्री भी हैं इसी लिए डबल सठिया गए हैं । अब सठियाना एक लाईलाज बीमारी है जिसका कोई इलाज नहीं है । बस आगे का बंदा उस सठियाए हुए आदमी को सुनता रहे और झेलता रहे । वही हम कर रहे हैं । बस हम लोग कक्का जी के सठियाने की सीमा कहां तक है देख रहे हैं । कक्का जी की अमृत वाणी उनके चेले चपाटियों को कबीर वाणी जो लगती है । वह उकसाते रहते हैं और कक्का जी अपनी रौ में बड़बड़ाने लगते हैं ।
पर कक्का जी की मुहावरों वाली जीभ शताब्दी एक्सप्रेस टे«न की तरह चलती है और उस पर अमल जनकपुर, जयनगर रेल की तरह होती है । जीभ तो सांप की तरह लपलपाती है पर उसको कमीशन का नेवला हजम कर जाता है । बेचारे कक्का जी करें भी तो क्या करें ? उनको तो बस बोलना आता है और इसी मे विशारद किया हुआ है । अब पान गुटखे की जगह मुहावरों की पोटली ही जो रख दी है उन के मुँह के अंदर । उसको ही पान की गिलौरी की तरह चबा कर भरी सभा में अवाम पर थूक देते है । अवाम इसको भी कक्का जी का प्रसाद समझ कर हजम कर जाती है । बेचारी अवाम विकास की भूखी जो है । अब विकास तो देश का नहीं मुहावरे बोलने की क्षमता की ही होगी कक्का जी के राज में । इसी लिए आलू या प्याज की तरह पैर को छीलने या छाँटने की बात कर रहे हैं ।
कल को हमारे प्यारे कक्का जी कहेंगे कि कंघी से ज्यादा लंबे बाल हों तो कंघी बड़ी नहीं बाल को छोटा करो । सिर से बड़ी टोपी है और सिर में टिक नहीं रहा है तो टोपी को छोटा करने की बजाय सिर को ही काट, छांट कर छोटा कर दो । अब सिर बड़ा नहीं हो सकता पर काट कर छोटा तो कर सकते हैं । उसी तरह पैर भी बड़ा नहीं हो सकता पर उसको काट, छील कर छोटा तो कर सकते हैं । जूत्तों का क्या है वह छोटा, बड़ा जैसा भी हो पैर को उस के हिसाब से एडजस्ट करना पड़ता है । पहले जमाने में कहते थे कि पैर अगर सही सलामत हो तो जूते तो कितने सारे मिल ही जाएँगे पहनने के लिए । पर ओली कक्का जी ने इस मुहावरे को ही उलट दिया और कहा कि जूते अगर बढि़या हो तो उसको पहनने के लिए हजारों पैर लालायित हो कर अपने आप चले आएँगे ।
है न कितनी अक्लमंदी की बात ? १७ हजार देश की जनता जो माओवादी जनयुद्ध में दोनों तरफ से मारे गए थे । वह न सिर्फ मरे थे पर उन के जूते तो ज्यों के त्यों पडेÞ थे । पैरों की क्या मजाल की वह जूतों से दुश्मनी मोल ले ले । पैर तो खुरदुरा होता है उसको सुदंर और देखने लायक तो जूता बनाता है । इसी लिए जूता छोटा बड़ा नहीं हो सकता । पैर को ही काट, छील कर छोटा कर के जूते के हिसाब से एडजस्टेबल होना चाहिए । कक्का जी का ईशारा देश के अवाम की तरफ है कि विभिन्न राजनीतिक दल और नेता जैसे भी हो देश की जनता को जैसे भी हो उनको बरदाश्त कर लेना चाहिए । जैसे पैर को काटछाँट कर छोटा कर के जूते के अदंर घुसा लेते हैं । उसी तरह अवाम को भी अपने देश के गद्दार और जूते की तरह चुभने वाले नेता और मंत्री को भी सहन करना चाहिए और एडजस्ट कर लेना चाहिए । कक्का जी ने अवाम की नाक सीधी न पकड़ कर घुमा कर पकड़ी है इस बार ।
कक्का जी को पांच साल तक पद सम्हालनी है । एमाओवादी से एकता बड़ी टेढ़ी खीर है । एक म्यान या दल में प्रचंड और ओली नाम के दो तलवार न रह सकते है न अटेंगे । दोनो वरिष्ठ और गरिष्ठ हंै जल्दी न पचने वाले । अब कनिष्ठ बन कर अपनी ईज्जत कौन कम करना चाहेगा ? दोनो ही अध्यक्ष बन कर तलवार हाथ में ले कर राजनीति की जंग लड़ना चाहते हंै और अपना राजनीतिक जीवन निष्कटंक कर के राज करना चाहते हैं । ओली कक्का जी ने खूद को जूता और एमाओवादी और प्रचंड को उस में जबरदस्ती अपना पैर या विचार को काट छील कर फीट करने की कोशिश करनी चाहिए ।
अब किसी का सिर या दिमाग बड़ा और विचार छोटा हो जाए तो फिक्र करने की कोई जरुरत नहीं है । अब विचार को तो कोई भी रबर की तरह खींच कर बड़ा नहीं बना सकता पर सिर या दिमाग को तो काटछाँट कर आलू की तरह छोटा कर के अपने छोटे विचार को उस में फिट कर सकते हंै । इस देश का यही सब से बड़ा दुर्भाग्य है कि बहुत सारे सुंदर, मजबूत और लड़ाकु पैर विदेश की गलियों में खाक छान रहे हैं । वहां जा कर यही मजबूत पैर दूसरों के पैरों की शोभा बढ़ाने वाले जूता बना कर उसी में अपना भविष्य तलाश रहे हैं । और इधर देश जूता उत्पादन में आत्मनिर्भर हो कर भी उसको पहनने वाले पैर के अभाव में पसरे पड़े हैं । इन जूतों को उन पैरों का इन्तजार है जो विदेश की धरती पर पैर मे फटी बिवाई को खाली पैर सहला रही है । इस देश में पैर और जूते का तालमेल कभी नहीं मिल पाया इसी लिए ओली कक्का जी राजनीति में अपने जूते को जहां–तहां घुसेड़ कर दूसरों के पैरों को दुख और कष्ट दे रहे हैं । पर यह बात समझे और माने कौन जो खुद नासमझ बन कर बैठा है ।



About Author

यह भी पढें   क्रिकेट : नेपाल ए आज आयरलैंड ए से खेलेगा, बारिश की संभावना आज भी
आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: