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नेपाल का ‘छोटा भारत’ भारत–नेपाल और चीन–नेपाल संबंधों में परिवर्तन का प्रतीक : डा. गीता कोछड़ जयसवाल

हिमालिनी,अंक जून 2018 । नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों के एकजुट समर्थन से सत्ता में आए प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के साथ, दुनिया भर में विद्वान भारत–नेपाल और चीन–नेपाल संबंधों में गहरे परिवर्तन की आशंका जता रहे हैं और यह अटकलें लगा रहे हैं कि इससे नेपाल की पूरी भू–राजनीतिक संरेखण नयी आकृति लेगी । प्रधानमंत्री ओली ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान जो शैली अपनायी थी और भारत–नेपाल सीमा में २०१५ नाकाबंदी के परिणामस्वरूप जो भारत विरोधी दरारें उत्पन्न हुई थी, उस से कई लोगों ने यह गलत धारणा बना ली कि चीन–नेपाल निकटता भारत–नेपाल संबंधों पर एक अपरिवर्तनीय घाव लगा देगा ।



Geeta Kochad Jayaswal
डा. गीता कोछड़ जयसवाल

हालांकि, प्रधानमंत्री ओली की भारत यात्रा, उसके पश्चात भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेपाल यात्रा से ये स्पष्ट नजÞर आता है कि नेपाल भारत से दूरी बनाए बिना अपनी कूटनीति में निस्संदेह ही परिवर्तन ला रहा है । नेपाल के पुनर्निर्माण और चीन की ओर झुकाव, यदि कोई है, तो उसे नेपाल के विकास के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए, ना की चीन पर नेपाल की निर्भरता की स्वीकृति के दृष्टिकोण से । इसके अलावा, भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की तीसरी नेपाल यात्रा ने, जो इस बार जनकपुर (नेपाल के तराई क्षेत्र) से शुरू हुई, भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंधों को मजÞबूत बनाया है । इस यात्रा ने दौरे के पूर्व और पश्चात, ना केवल नेपाल में सामाजिक मीडिया का ध्यान पकड़ा, बल्कि नेपाल की पूरी राजनीति में झटके का कारण बनी ।
नेपाली प्रधानमंत्री ओली के निमंत्रण पर, भारतीय प्रधानमंत्री मोदी नेपाल दो दिन राजकीय यात्रा के लिए ११ से १३ मई २०१८ को गए । भारत के प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि भारत के लिए “पड़ोसी पहले” नीति सर्वश्रेष्ठ है । इससे पहले प्रधानमंत्री ओली की भारत यात्रा के दौरान दोनों प्रधानमंत्रियों ने द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय हितों के कई मुद्दों पर बातचीत की । पिछले समझौतों के साथ साथ कृषि और जल विद्युत परियोजनाओं पर सहयोग में तेजी लाने पर भी चर्चा की । प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा ने भारत को नेपाल के तराई क्षेत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक स्थानों को जोड़ने के लिए दरवाजे खोले, विशेष रूप से रामायण सर्किट के उद्घाटन के साथ कई मायनों में तराई क्षेत्र से संबंध मजÞबूत किए ।
यह ध्यान देने योग्य है कि तराई क्षेत्र, नेपाल का पश्चिमी भाग, न केवल भारत की आबादी का एक बड़ा एकाग्रता का स्थान है, बल्कि संस्कृति और सीमा पार से विवाह बंधन से जुड़े समुदायों की रीढ़ की हड्डी बनने के साथ साथ कई मायनों में भारतीयों के जीवन का प्रतीक है । आबादी और सीमाओं के पार समुदायों के एकीकरण के इस परस्पर के कारण, इस क्षेत्र को ’छोटा भारत’ के रूप में देखा जाता है । गÞौरतलब बात यह है कि यह वही क्षेत्र है जहाँ पे भेदभावपूर्ण और अपवर्जनात्मक प्रावधानों की मांग के कारण २०१५ में नए संविधान के लागू होने के बाद नेपाल में सबसे ज्यादा तनावपूर्ण स्थिति हो गई थी । दिलचस्प बात यह है कि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के आगमन में आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश नंबर दो के मुख्यमंत्री लाल बाबू राउत द्वारा संविधान के खिलाफÞ विचारों को प्रकट करने की वजह से नेपाल में हंगामा मच गया । हालाँकि राउत के भाषण को कई राजनीतिक और अराजनैतिक लोगों का समर्थन मिला, लेकिन ये भाषण जो की हिंदी भाषा में था, उसने नेपाल में चल रहे विभिन्न जातियों,जनजातियों और राष्ट्रीयताओं के मनमुटाव को दर्शाया और रूढ़ीवादी राजनीति का भी पर्दाफाश किया ।
मार्च २०१६ में, जब ओली प्रधानमंत्री बने, उन्होंने पहले भारत यात्रा की परम्परा को तोड़ कर चीन की यात्रा की । १७ अप्रैल २०१८ को प्रधानमंत्री ओली की भारत यात्रा के बाद, नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञवाली चीन के दौरा पर गए । चीन की ओर नेपाल का झुकाव स्पष्ट है, लेकिन चीनी विदेश मंत्री वांग ई का भारत–नेपाल–चीन आर्थिक करिडोर प्रस्ताव संकेत करता है कि चीन हिमालय के माध्यम से भारत के साथ बहुआयामी कनेक्टिविटी चाहता है और नेपाल के भीतर बेल्ट एन्डरोड इनीशिएटिव (बिआरआई) पर चल रहे वाद विवाद से यह स्पष्ट होता है की भारत–नेपाल संबंधों को चुनौती पर रखकर चीन–नेपाल संबंधों को बढ़ाना अस्थिर और अनावश्यक है ।
भारत नेपाल के बीच १,७५१ कि.मी. साँझी सीमा है । एक सक्रिय युवा आबादी के चलते, नेपाली नेता अपनी शक्ति को बरकरार रखने के लिए राष्ट्रवाद कार्ड खेलने के इच्छुक हैं । परंतु नेपाल के युवा दुनिया के बाकी हिस्सों में मृत  वैचारिक हठधर्मिता के बंधक नहीं हैं । नेपाल की बहुमत जनसंख्या आर्थिक विकास और भ्रष्टाचार को खÞत्म करने के लिए उत्सुक है । नेपाल में नागरिक समाज का ज्यादा दबाव है कि विकास की ऐसी योजनाएं आए जो विभिन्न क्षेत्रों में समान रूप से वितरित हों । वास्तव में, लाल बाबू राउत की सौ दिन की कार्ययोजना  निवेश के अनुकूल वातावरण और विशेष आर्थिक क्षेत्रों में हड़तालों को बंद करने की घोषणा–निर्माण के लिए ’किसी भी कीमत पर विकास’ की धारणा का प्रतीक है । यह प्रकट होता है कि चीन की ओर तराई क्षेत्र का झुकाव व्यावसायिक प्रयोजनों के लिए और इस क्षेत्र के समग्र विकास के लिए निवेश की तलाश करने के लिए है, ना की सांस्कृतिक आक्रमण को स्वीकार करने के लिए है ।
नेपाल दो विशाल शक्तियों के बीच में निहित है, भारत और चीन । नेपाल की युवा सक्रिय जनसंख्या अपने राष्ट्रवादी और देशभक्ति के जोश को खोए बिना दोनों पड़ोसियों से लाभ लेना चाहती है।  जब चीनी निवेश स्थानीय विकास की स्थिरता के लिए खतरा बनेगा, भारत विरोधी आंतरिक भावनात्मक विचारधारा कभी भी चीन विरोधी भावनाओं का रूप ले लेगी ।  यह देखते हुए कि ’छोटा भारत’ की एक बड़ी आबादी आर्थिक लाभ के लिए भारत के साथ संबंधों के किसी भी विच्छेदन का समर्थन नहीं करता, प्रधानमंत्री ओली के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि भारत और चीन में संतुलन बनाना । दूसरी ओर, नेपाल के भीतर चल रहा वाद–विवाद और नए घटनाक्रम मजबूत भारत–नेपाल संबंधों की जरूरत पर जÞोर देते है । चीन द्वारा स्पष्ट है कि चीन बहुपक्षीय सहयोग चाहता है ना कि एक दूसरे के खिलाफ कोई कार्ड खेलना चाहता है । इसलिए, प्रधानमंत्री ओली के पास सिर्फÞ एक ही विकल्प है कि वह भारत और चीन दोनों के साथ मिलकर क्षेत्रीय संतुलन बनाने के लिए काम करें । यह भविष्य में चीन–नेपाल एक गठबंधन बनाने की संभावना को कम नहीं करता, लेकिन सुनिश्चित करता है कि भारत–नेपाल संबंध नेपाल के दुस्साहस के लिए सौदेबाजी चिप नहीं बनेगा ।
चीन में शांघाई फूतान विश्वविद्यालय में अस्थाई विद्वान है और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफÞेसर है ।



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