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भ्रष्टाचार में पनपते सामूहिक संस्कार : अजयकुमार झा

“जिस देश के शासक महल में सोते हों वहाँ की जनता को झोपड़ी में सोना ही पड़ेगा और जहाँ के शासक झोपड़ी में रहते हैं वहाँ की जनता महल में राज करेगी ही ।” चाणक्य



हिमालिनी, अंक जुलाई, 2018 । नेपाल में २०४७ से पहले राजतन्त्र में बड़ी न्यून संख्या में विद्यमान भ्रष्टाचारी संस्कार प्रजातंत्र में द्रुत गति में विकसित होकर खुल्लमखुल्ला रूप में समाज में दिखाई देने लगा । उसी संस्कार ने अब गणतंत्र में विकास के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए सामूहिक रूप धारण कर लिया है । इस प्रकार के सांगठनिक और सामूहिक भ्रष्टाचार राष्ट्र और समाज के लिए व्यक्तिगत रूप में होनेवाले भ्रष्टाचार से हजार गुना ज्यादा घातक और राष्ट्रघाती कदम है । क्योंकि सामूहिक भ्रष्टाचार में शामिल लोग संगठित अपराध और भूमिगत आतंकी गिरोह से षडयंत्र पूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर अपनी कुकृत्यों को ढकने में सफल हो जाते हैं । क्योंकि उसके साथ हाथ में हाथ मिलाकर चलनेवालों में सर्वाधिक शक्तिशाली सत्तासीन लोगों का समूह होता है । ऐसे में इनसे आम नागरिक लोहा लेने को सोच भी नहीं सकता । इस प्रकार इन भ्रष्ट समूहों की राजनैतिक पहुँच और प्रशासनिक प्रभाव के कारण राष्ट्रीय सदाचार पद्धति कमजोर और निष्प्रभावी होता जा रहा है । भारी समूह में आम नागरिक राज्य के प्रति निराश दिखने लगे हैं । विद्वान् वर्गों में नेता और अधिकारियों के प्रति घृणा और क्षोभ बढ़ने लगा है ।
अवकाश प्राप्त प्रा. श्री नरेन्द्र चौधरी जी का मानना है कि हमें विकास की जड़ को तलाशना चाहिए । विकास का वह पेड़ लगाया जाय जिससे हमारे आनेवाले पीढि़यों के लिए भी मीठा फल उपलब्ध रहे । उन्होंने चर्चा की कि दक्षिण कोरिया के गिर चुके अर्थ व्यवस्था को ऊपर उठाने के लिए कोरियनों का अद्वितीय प्रयास विश्व प्रशिद्ध है । सन १९४८ में स्वतंत्र हुए दक्षिण कोरिया ने प्रजातंत्र प्रणाली को अपनाया और विकास के लिए आर्थिक सहयोग हेतु विश्व के प्रजातांत्रिक देशों के आगे हाथ भी फैलाया । लेकिन कहीं से सहयोग नहीं मिला । बल्कि भारत के मेनन ने तो दक्षिण कोरिया के बारे में यहाँ तक कह दिया की (ब् चयकभ अबल लभखभच ाबिधभच ष्ल मगकत दष्ल) लेकिन जर्मनी के सहयोग से विकास के पथपर अग्रसर कोरिया आज भारत से १००० गुणा अधिक विकसित है । जब तक देश विकास में अपना विकास देखने की दूरदर्शिता नहीं होगी तबतक देश गरीब ही रहेगा । क्योंकि व्यक्तिगत विकास की सोच ही भ्रष्टाचार का कारण है।
आज कोरिया गर्व के साथ कहता है की
क्ष mभलल ष्क बष्खिभ जभ mष्नजत जबखभ दभभल चभउभलतष्लन बदयगत जष्क चभउयचत।
क्योकि कोरिया आज एशिया का चौथा विकसित देश है । और विश्व का दँसवा विकशित देश है । यहाँ का प्रति व्यक्ति आय २९ हजार १ से १५ डालर है । और भारत लगायत विश्व के ५० से अधिक देशों के श्रमिक को वहाँ रोजगार मिला हुआ है ।
“जिस देश के शासक महल में सोते हों वहाँ की जनता को झोपड़ी में सोना ही पड़ेगा और जहाँ के शासक झोपड़ी में रहते हैं वहाँ की जनता महल में राज करेगी ही ।” चाणक्य
परन्तु हम भस्माशुर के संतान होने लगे हैं । हम पेड़ को ही खाने पे अमादा हो जाते हैं । जिसका परिणाम है आज का गिरता हुआ सामाजिक जीवन शैली, बेटियों को वैदेशिक रोजगार के लिए बाध्य होना । नागरिकों के आधार कृषि कार्य का धराशायी होना । इस सब के जड़ में भ्रष्टाचारी चरित्र ही है । जिसने लाखों नेपालियों के जीवन का आधार सिगरेट फैक्ट्री लगायत कपड़ा,घी,चीनी उद्योग जैसे पचासों उद्योग को निगल गया है । और भविष्य में क्या क्या निगलेगा कहा नहीं जा सकता ।
स्थानीय सरकारों के द्वारा षडयंत्र पूर्वक अनेक प्रकार के अनावश्यक कर का बोझ किसानों और सभ्य नागरिकों के ऊपर जबरदस्ती थोपा जा रहा हैं । स्थानीय सरकार से लेकर केन्द्रीय सरकार तक में भ्रष्टाचारियों का बोलबाला है । और दुहाई जनता को दिया जा रहा है । जनता ने भ्रष्ट नेता को चुनाव किया इसलिए वो भ्रष्टाचार कर रहे हैं । अतः उन्हें कौन रोकेगा ? इस का यही मतलब हुआ कि यहाँ न न्यायालय है न प्रशासन । सब मिलकर जनता और देश को लूटने में अपने को गरिमावान समभस्ते हैं । वे मूढ़ लोग ये नहीं संज्ञान कर पा रहे हैं कि जब राज संस्था के गरिमा को उखाड़ कर नागार्जुन के जंगलों में फेका जा सकता है और महिमा ढाह कर दया का पात्र बनाया जा सकता है तो तुम आधारहीन राजनीति कर्मियों की हैसियत कितने दिनों का मेहमान हो सकता है ?
स्थानीय स्तर में आषाढ महीने के अन्त में विकास के कार्य में दिख रहे तीव्रता और एनजीओ के द्वारा अंधाधुंध हो रहे महिला जनचेतना के नाम पर बजट स्वाहा कार्यक्रम के षडयंत्र से लोग भलीभाति परिचित हैं । लेकिन वो कुछ भी नहीं कर सकते । क्योंकि इसमें पीयुन से प्रधान तक की सहमति और सहयोग है । अभी स्थानीय स्तर में हो रहे सार्वजनिक विकास निर्माण के कार्यों का विवरण और नेपाल सरकार द्वारा निर्देशित सामान्य सूचना तक के हकÞ को भी कई नगरपालिकाओं के अधिकारी और जनप्रतिनिधियो ने व्यक्तिगत लाभ और स्वार्थ के कारण नजर अंदाज कर दिया है । जिससे नागरिकों के सूचना का हकÞ छीन चुका है । आम नागरिक किंकर्तव्यविमूढ़ की अवस्था में नजर आ रहे हैं । सरकार मौन है । जब किसी पालिका के सभी जिम्मेवार अंग लूटने में एक जुट हो जाय और केंद्र का आशीर्वाद हो तो कौन उसे रोकेगा ? कदम कदम पर नागरिक आन्दोलन नहीं होता है । अगर आम नागरिक को कदम कदम पर आन्दोलन लिए तैयार रहना पड़े अपने नेताओं और अधिकारियों के कुकृत्यों के ऊपर अंकुश लगाने के लिए, तो ऐसे नेता और कर्मचारी की क्या आवश्यकता रह जाती है ? इन जहरीले सर्पों का भार क्यों उठाया जाय ? या फिर ऐसी सरकार की क्या आवश्यकता रह जाती है ? ३३ किलो सोना के तस्करी में पकडे गए अपराधी को इतनी निर्भयता और गर्व के साथ आँख में आँख डालकर प्रशासन से बात करना क्या दर्शाता है ? अपराधी खुले आम शान के साथ घूमना किस चीज का द्योतक है ? भ्रष्ट को संरक्षण और सम्मान मिलना किस संस्कार और नैतिकता का प्रतीक है ?
क्या फरक पड़ा तंत्र के बदलने से? हजारों नागरिको की जनयुद्ध और जन आन्दोलन के नाम पर बलि चढाने से? अधिकार दिलाने के नामपर हजारों परिवार को उजारने से ?
अगर हालत यही रही तो आम नागरिक को विकल्प खोजने में ज्यादा समय नहीं लगेगा । झूठी राष्ट्रीयता के नामपर लोगों को अब और धोखे में नहीं रखा जा सकता । डा. गोविन्द केसी के साथ किए गए समझौते का क्या मुल्य हुआ ? क्या वो देश को बाँटने की बात कर रहे हैं ? क्या उनका कदम राष्ट्रहित में नहीं है ? यदि वो जनहित की बात करतें हैं तो उनके साथ यह दुव्र्यवहार क्यों ? क्या सरकार इतनी नासमझ है कि उनकी बातों को समझ ही नहीं रही है ? या सरकार समझना नहीं चाहती है ? या फिर सरकार किसी बाहरी दवाव के कारण मजबूर है ? अब इन तीनों में से कोई एक कारण तो होगा ही । अगर सरकार गंभीरता को समझने में असमर्थ है तो ऐसे नपुंसक और तिथिवाह्य सरकार से देश दिशाहीन हो जाएगा । अगर सरकार समझना नहीं चाहती है तो यहाँ गुण्डा राज स्थापित होने की संभावना की ओर संकेत करता है । और यदि विदेशी दवाब के कारण सरकार गुठने टेक रही है तो तिब्बत की तरह नेपाल और नेपालियों की गरिमा, इतिहास और संस्कृति को मिटने में देर नहीं लगेगी । वैसे भी यहाँ नेपालीपन तो अब रहा नहीं । हिन्दुत्व, जो हमारी पहचान है पर उससे ही घृणा होने लगी है । क्योंकि हमें अब विदेशियों से प्रेम हो गया है । पाश्चात्य विद्वान् कार्लमार्क्स जिनका व्यक्तिगत जीवन शतप्रतिशत असफल, दुखी और दारुण रहा आज वो हमारे भाग्य निर्माता हो गए हैं । जिनका प्रतिनिधि आज नेपाल पर राज कर रहा है । नेपाल को नेपाली समाजवाद का शत्रु देने बाले स्व. वि पी कोइराला को कांग्रेसी भुलाकर राजनीति से पथभ्रष्ट होकर गतिहीन हो गए हैं । इस परिस्थिति में जनता यदि नए तंत्र की बात करती है तो उसमे जनता की मजबूरी और बाध्यता है । आम नागरिक शान्ति और सुख से जीना चाहते हैं । जबकि स्वार्थी और भ्रष्ट लोग उनकी सहज जीवन शैली में अवरोध उत्पन्न करते हैं । फिर शुरु होता है संघर्ष और फिर ध्वंस होती है जीवन और संस्कृति । आज नेपाल उस कगार पर पहँुचने लगा है । अतः केंद्र सरकार में क्षमता है तो भ्रष्टाचारियों पर निर्दयतापूर्वक नियंत्रण करे अन्यथा भविष्य में भीषण आन्दोलन के लिए तैयार रहे । क्योंकि समाज में सिर्फ भ्रष्ट और मूढ़ लोग ही नहीं बल्कि ईमानदार,सृजनशील और विवेकशील लोग भी रहते हैं । भले ही उनका संगठन नहीं है। उनकी संख्या बहुत कम है । उनको राजनैतिक संरक्षण और वैदेशिक आशीष नहीं है । लेकिन याद रहे, जिस प्रकार हीरे गहरे खादान में मिलते हैं और सर्वाधिक मूल्यवान होते हैं, वैसे ही अच्छे लोग संख्या में कम होने के बावजूद भी वो बहुत ही मुल्यवान होते हैं । और उन्हीं के चारित्रिक महानता के कारण उल्लुओं को मौज करने का मौका मिल जाता है । बुद्ध और जनक,सीता और भृकुटी के नाम को बेचकर नेपाली राजनीतिकों ने अबतक अपना पेट पालने के सिवा और किया ही क्या है ।
वह दिन दूर नहीं जब अच्छे लोग, संत और महात्मा को राजनीति में आने के लिए बाध्य करेंगे और उन्हें ससम्मान अपना नेतृत्व सौपेंगे । फिर शुरु होगा नेपाल में योगी राज । बस सदाचारी और स्वच्छ लोगों का एक संगठन हो जाय ।
 भ्रष्टाचारी को आतंकवादी का पर्यायवाची मानना होगा ।
 जनता को लूटने वालों को देश डुबोने वाले प्रतीक के रू में समझना होगा ।
 देश विकास के अवरोधक को देशद्रोही की संज्ञा देनी होगी ।
 हिंसक,भ्रष्टाचारी और अपराधियों के साथ शून्य सहिष्णुता और पूर्ण निष्ठुरता का भाव अपनाना होगा ।
 जाली,फरेबी और ठगी प्रवृत्ति के साथ कठोरता से निपटना होगा ।
 गलत का प्रोत्साहन समाज को शमशान की ओर गतिमान करता है ।
अतः समय रहते सावधान होना बुद्धिमानी होगी ।



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