बेटियों की रूह तक को अपने नाखूनों से नोचे ज़ा रहे हो
वाह रे दुनियावालो क्यों हड़कम्प मचा रहे हो ,
अपनी बेटियों पे उँगली उठे तों मखमल के पर्दे ,
दूसरे की बेटियों की रूह तक को अपने नाखूनों से नोचे ज़ा रहे हो ।
कहाँ सुरक्षित है बेटियाँ इतना मुझे बता दो ,
हरजगह है मानव के रूप में नरपिशाच ,
पहचान सके चेहरे के पीछे भेड़िए कों ,
ऐसा कोई हुनर सीखा दो !
रिमाण्डहोम हो या आश्रम सबको अपना रंगमहल बनाया ,
बालिकागृह की नन्हीं ..नन्हीं बालिकाओं से देहव्यापार करा रहे हो ।
देखकर अपनी ही वासनावृति पर
हमारे सरकार कों शर्मिन्दगी आ गई क्य़ा ,
या अन्धे तों तुम थे ही गूंगे ..बहरे भी हुए ज़ा रहे हो !
अरे वों नपुंसकबिरादरी वाले भूल गये क्य़ा
अपना पुराना जमाना ,
सता में आने के लिये कितना किया था तुमने ड्रामा ,
घर ..घर हमारे आकर हमारे संग
हमारे में ही हमारे जूठन खाना ,
माईं ..बाप कहकर हमे गले लगाना !
कु़छ तों लाज रखते ज़मीर की तू अपनी,
ख़ुद कों देश क़ा लाल कहतें हो
और अपनी ही देश की बेटियों कों
अपने ही पांव तले रौंदें ज़ा रहे हो!
क्य़ा तुम्हारा ज़मीर तुम्हे नही धिक्कारता ,
मातृत्व कि फटी चुनरी देखकर
क्य़ा तुम्हारा खून नही खौलता ,
मुझे तों शक़ हो रहा है ,
मिली ..जुली सरकार की तरह
अपने लहु में पानी तो नही मिला रहे हो ! ‘ पूजा बहार ‘