Sun. Mar 23rd, 2025

चीन के बंदरगाहाें का प्रयाेग अार्थिक दृष्टिकाेण से कितना फायदेमन्द हाेगा नेपाल के लिए

१८ सितम्बर

नेपाल को चीनी बंदरगाहों का इस्तेमाल काफी महंगा पड़ेगा। नेपाल से सबसे नजदीकी टियांजिन बंदरगाह 3,300 किमी दूर है, जबकि भारत का कोलकाता बंदरगाह नेपाल के बीरगंज से महज 800 किमी है। इसलिए भारतीय विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन की यह रणनीति नेपाल के लिए सहज स्वीकार्य नहीं होगी।

चीन की चौतरफा घेराबंदी भारत के लिए लगातार चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। एशिया की नंबर एक और दुनिया की नंबर दो अर्थव्यवस्था वाला चीन सबसे ज्यादा परेशान भारत से ही है। हालांकि भारत अभी दुनिया की छठी और एशिया की तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था है। चूंकि भारत की रणनीति पड़ोसियों से अच्छे संबंध बनाकर रखने की रही है, इसलिए वह अपनी तरफ से आक्रामक कदम उठाने से बचता है। हालांकि भारत को घेरने के लिए चीन ‘वन बेल्ट वन रोड’ के तहत पाकिस्तान को तमाम सहायताएं मुहैया करा रहा है। चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर का वह निर्माण कर रहा है, जो पाक अधिकृत कश्मीर से गुजर रहा है। लेकिन भारत ने इसके खिलाफ कड़ा संदेश दिया है।

यूएन में भारत का विरोध 
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की 39वीं बैठक में चीन की सहायता से पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बन रहे बांध पर भी भारत ने विरोध जताया है। भारत की घेराबंदी के लिए जिस तरह चीन कोशिश कर रहा है, उससे अमेरिका के एक राजनयिक ने चिंता जताई है कि शीत युद्ध की वापसी हो रही है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के दक्षिण और मध्य एशिया ब्यूरो में काम कर चुकीं एलीजा आयर्स ने अपनी किताब ‘अवर टाइम हैज कम : हाउ इंडिया इज मेकिंग इट्स प्लेस इन द वर्ल्‍ड’ में कहा है कि चीन और भारत के बीच जिस तरह रिश्ते विकसित हो रहे हैं, वह दोनों देशों के बीच शीत युद्ध जैसे हालात की ओर इशारा कर रहे हैं। करीब 11,200 अरब डॉलर की जीडीपी वाली दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन की कोशिश भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार घेरने की है।

यह भी पढें   ज्ञानेन्द्र शाह संवैधानिक राजा बनने के लायक नहीं है – देउवा

नेपाल-चीन करार 
चीन ने हाल ही में नेपाल को अपने चार बंदरगाहों के इस्तेमाल की अनुमति देने वाले करार पर हस्ताक्षर किया है। चीन और नेपाल के अधिकारियों ने काठमांडू में ट्रांजिट एंड ट्रांसपोर्ट एग्रीमेंट के प्रोटोकॉल के तहत इन चार बंदरगाहों के अलावा अपने तीन भूमि बंदरगाहों के इस्तेमाल की भी इजाजत दी। चीन इसके पहले जनवरी में चीनी फाइबर लिंक के जरिये 1.5 गीगाबाइट प्रति सेकेंड की स्पीड वाली इंटरनेट सेवा मुहैया करा चुका है। नेपाल को पहले इंटरनेट के लिए भारत पर ही निर्भर रहना होता था। लेकिन अब नेपाल ने तर्क दिया है कि विराट नगर, भैरहवा और बीरगंज के माध्यम से भारत जो इंटरनेट सर्विस मुहैया कराता है, उसकी स्पीड सिर्फ 34 जीबीपीएस की है।

नेपाल के लिए महंगा सौदा 
हालांकि नेपाल को चीनी बंदरगाहों का इस्तेमाल काफी महंगा पड़ेगा। नेपाल से सबसे नजदीकी टियांजिन बंदरगाह 3,300 किमी दूर है, जबकि भारत का कोलकाता बंदरगाह नेपाल के बीरगंज से महज 800 किमी है। इसलिए भारतीय विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन की यह रणनीति नेपाल के लिए सहज स्वीकार्य नहीं होगी। अलबत्ता वह भारत पर इसके जरिये दबाव बढ़ाने की कोशिश करेगा। अब यह भारत को देखना है कि किस तरह वह नेपाल को इस संदर्भ में चीन के प्रभावों से दूर रख सकता है। भारत चीन को लेकर सतर्क भी है। मोदी सरकार ने वाणिज्यिक रिश्ते बढ़ाने के लिए चीन की तरफ दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्र को भी इसी नजरिये से अहम बनाने की कोशिश हुई, लेकिन उस पर आसानी से भरोसा नहीं किया जा सकता।

यह भी पढें   लंदन का हीथ्रो हवाईअड्डा अचानक हुआ बंद

हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा 
1956 में चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने भारत का दौरा किया। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया। पंचशील के सिद्धांत के साथ चीन को जोड़ने की कोशिश की, लेकिन चाऊ एन लाई की स्वदेश वापसी के बाद ही चीन ने अपना वह रूप दिखाना शुरू किया, जिसकी तरफ अपने निधन के कुछ वक्त पहले सरदार पटेल ने इशारा किया था। सात नवंबर 1950 को प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को लिखे पत्र में पटेल ने चीन से रिश्तों के मसले पर कैबिनेट की बैठक बुलाने और चीन से सतर्क रहने की चेतावनी दी थी। पटेल ने लिखा था, ‘चीन सरकार ने शांतिपूर्ण इरादों की अपनी घोषणाओं से हमें भुलावे में डालने का प्रयास किया है। मेरी अपनी भावना तो यह है कि किसी नाजुक क्षण में चीनी सरकार ने तिब्बत की समस्या को शांतिपूर्ण उपायों से हल करने की अपनी तथाकथित इच्छा में विश्वास रखने की झूठी भावना उत्पन्न कर दी।

तिब्‍बत की तरफ सारा ध्‍यान 
इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि चीनी सरकार अपना सारा ध्यान तिब्बत पर आक्रमण करने की योजना पर केंद्रित कर रही होगी। तिब्बतियों ने हम पर भरोसा रखा और हमारे मार्गदर्शन में चलना पसंद किया और हम उन्हें चीनी कूटनीति के जाल से बाहर निकालने में असमर्थ रहे। हम तो चीन को अपना मित्र मानते हैं, परंतु वह हमें अपना मित्र नहीं मानता।’ बेशक जवाहर लाल नेहरू ने इस चेतावनी को अनसुना कर दिया था, लेकिन अब सबकुछ बदल चुका है। भारत ने म्यांमार और वियतनाम के रास्ते चीन को घेरने की कोशिश की है। भारत ने वियतनाम से पिछले ही साल चीन और हिंद महासागर में तेल की खोज के समझौते पर हस्ताक्षर किया था। पिछले साल भारत आए म्यांमार के राष्ट्रपति तिन क्यॉ को भरोसा दिलाया गया कि भारतवासी म्यांमार के साथ हैं और दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ मिलकर सहयोग करेंगे। म्यांमार भारत को खासकर उत्तरपूर्व में सक्रिय आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई में सहयोग कर रहा है। अमेरिका के साथ लगातार भारत रणनीतिक सहयोग कर रहा है।

यह भी पढें   नेपाल उद्योग एवं व्यवसायी महासंघ के अध्यक्ष बने भगीरथ सापकाेटा

चीन को रोकने में भारत ही कारगर 
अमेरिका भी मानने लगा है कि चीन को रोकने के लिए भारत के साथ ही सहयोग किया जाना चाहिए। चीन को लेकर भारत में कितनी सतर्कता बरती जा रही है, इसका उदाहरण हाल ही में सामने आई एक संसदीय समिति की सिफारिश भी है। विदेश मंत्रालय की संसदीय समिति ने कहा है कि चीन का रिकॉर्ड भरोसेमंद नहीं रहा है। चीन लगातार स्पेशल रिप्रजेंटेटिव मेकेनिज्म का उल्लंघन कर रहा है, जिसे सीमा पर निगरानी के लिए 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के चीन के दौरे के बाद स्थापित किया गया था। संसदीय समिति को इस बात की चिंता है कि तब से लेकर अब तक चीन और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच 20 दौर की बातचीत हो चुकी है, फिर भी चीन इसे नहीं मान रहा है।

उमेश चतुर्वेदी

साभार दैनिक जागरण से

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *