नेपाल–भारत दो भाई–भाई हैं : राजकुमार जैन ‘राजन’
सन्दर्भ : नेपाल भारत साहित्यिक सम्मेलन 2018
हिमालिनी अंक सितम्बर २०१८ नेपाल आकर और इस कार्यक्रम का हिस्सा बनकर एक सुखद अनुभूति हुई । नेपाल से मेरा जुड़ाव कुछ वर्ष पहले से ही हो गया था कि जब मैं हिमालिनी पत्रिका से जुड़ा था । मैं समझता हूं कि भारत और नेपाल के बीच जो सांस्कृतिक विरासत हैं, जो अपनत्व के भाव हैं, जो प्रेम और आपसी सद्भाव है, उसके आदान–प्रदान में और उसको बचाए रखने के लिए सांस्कृतिक सद्भाव और साहित्यिक आयोजनों का होना बहुत आवश्यक है ।
मैं जानता हूं कि यहां के लोग अपने काम में ईमानदार होते हैं । उसके लिए एक उदाहरण पेश करना चाहता हूं– चार महीने पहले मेरी एक हिन्दी की कविता संकलन छपी थी । मैंने सोचा कि इस संग्रह को क्यों विभिन्न भाषा में प्रकाशिन न करें ! इसीलिए मैंने उसको अनुवाद के लिए दे दिया । एक महीने के भीतर उक्त पुस्तक अनुवाद होकर नेपाली संस्करण छप गयी । यह देखकर मैं अभिभूत हो गया । जब कि इसका गुजराती, मराठी, पंजावी, असमिया अनुवाद होकर प्रकाशित होने जा रहा है । चार महीना हो गया, उन की कार्यशैली जारी ही है । तो मुझे नेपाल के लोगों से एक शिक्षा यह मिली कि कर्तव्यपरायणता और शीघ्रता से अपने काम को करना है ।
भारत और नेपाल को मैं अलग नहीं मानता हूं । जैसे दो भाई होते हैं, जैसे दो बहने होती हैं, वैसा ही है नेपाल–भारत का संबंध है । मैं नेपाल के वीरगंज, जनकपुर गया हूं, कई दिनों तक रहा हूं, कई लोगों से बातचीत की है, कहीं भी हम लोग अलग देश के नागरिक नहीं दिखाई देते हैं । व्यक्तिगत राजनीतिक स्वार्थों के खातिर आज एक दुश्मनी पैदा की जा रही है । आज सत्ता में कम्युनिष्ट पार्टी हाबी हो गए है, चीन अपना हित देखकर लोगों का फायदा पहुँचा रहा है ।
भारत तो हमेशा ही नेपाल को भाई समझता है, उनकी तरफ से तो हरतरह का सहयोग होता ही है । कुछ लोगों का कहना है कि भारत, नेपाल में माइक्रोम्यानेजमेन्ट करना चाहता है । लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता । भारत नेपाल को कभी भी हड़पना नहीं चाहता है । भारतीय संस्कृति नेपाल से जुडी हुई है, अगर नेपाल को कोई दर्द होता है तो भारत को उसकी पीडा महसूस होती है । यह तो कुछ राजनीतिज्ञों तथा अवसरवादी तत्व द्वारा फैलाया गया हल्ला है । माओवादी, यह मधेशवादी, वह पहाडवादी, यह सब राजनीतिक स्टण्ड हैं ।