मेरी चाहत है, अगली बार नेपाली में ही कविता पढूं : डा. मधु प्रधान
सन्दर्भ : नेपाल भारत साहित्यिक सम्मेलन 2018
हिमालिनी अंक सितम्बर २०१८ नेपाल आने का अचानक प्रोग्राम बना । शुरु में तो मैंने इन्कार किया था, लेकिन जब डा. विजय पण्डित जी ने फोन किया तो मैं आने के लिए तैयार हो गई । मुझे लगा कि पशुपतिनाथ नेपाल की धरती मुझे बुला रही है । यहां आने से मुझे नहीं लगा कि हम किसी दूसरे देश में आए हैं । बिल्कुल ऐसा लगा कि हम अपनों के बीच में ही आए हैं । जिससे भी मिलते हैं तो वह सब अपने ही लगें, जिसको हम शब्दों में नहीं कह सकते । ऐसी सुखानुभूति हो रही है । ऐसा लगता है कि समुन्द्र उमड़ रहा है अपनेपन का ।
में नेपाल पहली बार आई हूं । इससे पहले मैंने नेपाली साहित्य नहीं पढ़ा है, नाम तो सुना है । मुझें नेपाली भी नहीं आती । मुझे लग रहा है कि अब हम भी नेपाली भाषा सीखेंगे । प्रयास करेंगे कि अगर अगली बार आए तो मैं नेपाली में ही बोलूं, नेपाली में ही कुछ कविताएं कह पाऊँ ।
नेपाल के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी भी नहीं थी । लेकिन जब नेपाल में भूकंप, त्रासदी आई थी, मैंने टेलिविजन में यहां के दृश्य देखा था, उसको देखकर मैंने एक कविता लिखी थीं, जिसे फेशबुक पर डाला भी था । उसके बाद ही मैंने नेपाल के बारे में जानकारी लेना शुरु किया । वैसे तो मेरे नाम के पीछे प्रधान लगा है । जब भी नेपाली लोगों मिलती थी तो वे लोग पूछते थे कि क्या आप नेपाल से हैं ? अब तो ऐसा लग रहा है कि किसी जन्म में मैं नेपाल की रही हुई हूं । नेपाल के बारे में मैं हमेशा सुनती आ रही थी कि यहां के व्यक्ति ईमानदार होते हैं, सीधे होते है ओर इतना प्यार भी देतें है, जो कि मैंने यहां आकर अनुभव भी किया ।