Sun. Sep 8th, 2024

हाथ साफ दिवस ताे जूँ साफ दिवस क्याें नहीं

व्यग्ंय बिम्मी कालिंदी शर्मा



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जिस देश में महंगाई अपने चरम पर है, देश की राजनीतिक व्यवस्था चरमरा रही है वहां पर हाथ धोने को ले कर इतनी हाय तौबा क्यों ? हाथ न हुई दीपावली मे लक्ष्मीजी को भोग लगाने वाली चांदी की तश्तरी हो गई जिसे साल में एक दिन माँज कर चमकाया जाता है । उसी तरह आज सब लोग अपने हाथ को धो कर चमका रहे हैं । पर जिस का हाथ १० वर्षीय माओवादी जनयुद्ध के दौरान करीब २० हजार लोगों के खून से रंगा है वह हाथ धोएगा कि नहीं ?और कौन से साबुन या लिक्वड से हाथ धोएगा वह ? क्योंकि विवेक और नैतिकता का साबुन या लिक्विड तो उस के पास है ही नहीं ?

 

विश्व भर हाथ धोने का दिन । इसीलिए हाथ धोते रहिए चाहे पूरा शरीर ही गंदा क्यों न हो ? पर हाथ धोना निहायत जरुरी है क्योंकि इसी गंदे हाथ से इंसान खाना ही नहीं कमीशन और घूस भी डकार जाता है । इसीलिए हाथ धो कर खाने से कमीशन या घूस का बैक्टेरिया न पेट में जाएगा न मीडिया के सामने दिखेगा । इसी लिए बस हाथ धोेते रहिए और तर माल उडाते रहिए । बच्चे की तरह सबको सिखाना पडता है कि आज हाथ धोने का दिवस है । और बस आज ही के लिए हाथ धो लो । बांकी ३६४ दिन बिना हाथ धोए खाओ या कुछ भी करो चलेगा पर आज हाथ के लिए हाथ धो लो । भले ही हाथ से ज्यादा पैर और मुँह गंदा हो कोई बात नहीं पर हाथ धोने के लिए हाथ धो कर पीछे पड जाओ । क्योंकि हाथ है तो जहान है, र्इंसान महान है नहीं तो बेजान है ।
जिस देश का पूरा सिस्टम ही बेकार और बेजान है वहां पर हाथ धोने और धुलाने के लिए हाथ धो कर ही लोग पीछे पड़ जाते हैं । हाथ धो कर पीछे ही पड़ना है तो असमानता और अन्याय के विरुद्ध पडि़ए पर नहीं जितनी भी अव्यवस्था और अन्याय हो कोई बात नहीं पर हाथ साफ, सुथरा और धुले हुए होने चाहिए । भले ही सरकारी दफ्तरों मे लोग दीवार पर पान की पीक थूक कर पर्दे और सोफे में अपना गंदा हाथ पोंछ लेते हैं । यह तो उनका अधिकार है जो साधिकार सरकारी दफ्तर आने वाला प्रयोग करता है बिना किसी लाज, शर्म के । आखिर देश के नागरिक सरकार को टैक्स देते हैं तो जहां मन हो वहां पर अपना गंदा हाथ पोछेंगे । कई लोग तो हाथ के साथ नाक का गंदा भी उसी में पोंछ देते हैं ।
जिस देश में महंगाई अपने चरम पर है, देश की राजनीतिक व्यवस्था चरमरा रही है वहां पर हाथ धोने को ले कर इतनी हाय तौबा क्यों ? हाथ न हुई दीपावली मे लक्ष्मीजी को भोग लगाने वाली चांदी की तश्तरी हो गई जिसे साल में एक दिन माँज कर चमकाया जाता है । उसी तरह आज सब लोग अपने हाथ को धो कर चमका रहे हैं । पर जिस का हाथ १० वर्षीय माओवादी जनयुद्ध के दौरान करीब २० हजार लोगों के खून से रंगा है वह हाथ धोएगा कि नहीं ?और कौन से साबुन या लिक्वड से हाथ धोएगा वह ? क्योंकि विवेक और नैतिकता का साबुन या लिक्विड तो उस के पास है ही नहीं ?
हाथ धोना देश के बडेÞ बड़े छद्म नामवाले नेता और मंत्रियो को जरुरी है । क्यों कि इन के हाथ बेईमानी की कमाई और औरों पर अत्याचार के अपराध से सने हुए हैं । इन से हाथ मिलाना ही नहीं चाहिए और यदि गल्ती से हाथ मिला भी लिया तो खूब रगड़ रगड़ कर हाथ धोना जरुरी है । नहीं तो इन के अपराध के छीटें जो इन से हाथ मिलाएगा उस के हाथ में लग जाएगा । पैर कितना भी गंदा हो चलेगा, नाक बह रही हो, आंखों मे कचरा भरा हो नाखून मैले और काले हो कोई बात नहीं पर हाथ धो कर साफ रखना जरुरी है । जिस देश की जनता को अभी भी शौच करने के बाद और खाना खाने से पहले साबुन से मल, मल कर हाथ धोने के लिए सिखाना पड़ता है । इस के लिए अलग से एक दिन हाथ धोने वाला दिवस मनाना पड़ता है । उस देश की अवाम कितनी पिछडी हुई होगी ? ऐसे देश और जनता पर तो लानत भेजना चाहिए । जिसे खाने के लिए नहीं हाथ धोने के लिए सिखाना पडता है ।
जहां पर हाथ धोने के लिए कहना या सिखाना पड़ता है वहां कि लिट्रेसी रेट जितनी भी हो क्या फर्क पड़ता है । अधिकाँश ग्रामीण या गंदे लोगों के सिर पर जूएं कबड्डी खेल रहे होते हैं । तो क्या विश्व जुएं साफ करने का दिवस भी मनाया जाए ?कमीशन या घूस खाने के लिए नहीं सिखाना पड़ा है । किसी लड़की को छेड़ने या बलात्कार करने के लिए नहीं सिखाना पड़ता है । मोबाईल में दूसरों को अश्लील मैसेज भेजने के लिए नहीं सिखाना पड़ता है । चोरी करनी के लिए भी नहीं सिखाना पड़ता है पर हाथधोने के लिए सिखाना जरुरी है । बेचारा हाथ नहीं धोएगा तो बीमार पड़ जाएगा ।
किसी इंसान को हाथ धोना सिखाने से ज्यादा जरुरी है इस देश के सिस्टम को धोना । जो निहायत ही गंदा हो गया है । जब देश रुपी शरीर ही गंदा रहेगा तो सिर्फ हाथ धोने से क्या होगा ? जहां अशिक्षा, अधंविश्वास, असमानता, विभेद और अन्याय की गदंगी चारों तरफ फैली हुई हो वहां हाथ धोने या न धोने से कुछ नहीं होगा । देशी अब्यवस्था को धो डालो हमेशा के लिए तब कुछ बात बनेगी ।



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