रिपोर्ट, नेपाली हस्तकला – वैदेशिक मुद्रा आर्जन का एक माध्यम : लिलानाथ गौतम
हिमालिनी, अंक डिसेम्वर 2018,चालू आर्थिक वर्ष (वि.सं. २०७५–०७६) के चार महीने हो चुके हैं । व्यापार तथा निकासी प्रवद्र्धन केन्द्र ने चार महीनों के व्यापारिक तथ्यांक को सार्वजनिक करते हुए कहा है कि इस अवधि में नेपाल का व्यापार घाटा ४ खर्ब ३४ अर्ब है । अर्थात् इस अवधि में नेपाल ने ४ खर्ब ८३ अर्ब रुपयों का सामान आयात किया है और सिर्फ २९ अर्ब रुपयों का सामान निर्यात किया है, इस तरह का व्यापार घाटा हर साल बढ़ रहा है । इस तथ्य को देखते हुए नेपाल के कुछ अर्थशास्त्री चिन्ता करते हैं कि कहीं नेपाल आर्थिक दृष्टिकोण में असफल राष्ट्र ना बन जाए ।
ऐसी ही पृष्ठभूमि में गत कार्तिक २८ से मार्गशीर्ष २ गते तक काठमांडू स्थित भृकुटी मण्डप में नेपाल हस्तकला महासंघ ने एक अन्तर्राष्ट्रीय मेला का आयोजन किया । मेला में देश के विभिन्न भू–भाग से आए सौ से अधिक हस्तकला उद्योगियों की सहभागिता रही । विभिन्न देशों से भी हस्तकला उद्योगियों ने मेला में अपनी सहभागिता जताई थी । मेला में सहभागी सभी नेपाली उद्योगियों को एक ही बात कहनी थी कि अगर नेपाल को आर्थिक रूप में आत्मनिर्भर बनाना है तो देश में ही उत्पादित सामानों को प्राथमिकता देनी चाहिए । वे लोग यह भी कह रहे थे कि नेपाल कृषि–प्रधान देश है, अगर राज्य की ओर से विशेष ध्यान दिया जाता है तो नेपाल कृषि में आत्मनिर्भर हो सकता है । हस्तकला उद्योग में शामिल उद्योगियों को मानना है कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा–आर्जन के लिए हस्तकला एक मात्र विकल्प हो सकता है । इस बात को स्वीकार करते हुए हस्तकला महासंघ के कार्यकारी सदस्य तथा हस्तकला उद्योगी नवीन शाक्य कहते हैं– ‘नेपाल की अर्थव्यवस्था अधिक आयात कर उससे राजश्व लेकर चल रही है, आयात में राजश्व लेकर नहीं, निर्यात में राजश्व लेकर और वैदेशिक मुद्रा आर्जन कर देश को समृद्ध बनाया जा सकता है ।’
उद्योगी नवीन शाक्य का मानना है कि अगर देश को वैदेशिक मुद्रा आर्जन करना है तो राज्य की ओर से ही हस्तकला उद्योग को प्राथमिकता देनी चाहिए । उन्होंने आगे कहा– ‘अगर राज्य की ओर से ही हस्तकला उद्योग को व्यवस्थित की जाती है तो हम लोग प्रशस्त वैदेशिक मुद्रा आर्जन कर सकते हैं ।’ उनके अनुसार हर साल १२ से १५ अरब का हस्तकला सामान विदेश निर्यात होता आ रहा है । उनके अनुसार उसमें अधिकांश तो धातु के मुर्तिजन्य सामग्रियां होती है । धातुजन्य सामग्रियों का अधिकांश कच्चा पदार्थ विदेशों से ही आयत किया जाता है । लेकिन शाक्य कहते हैं कि अगर राज्य हस्तकला उद्योग को प्राथमिकता देकर आगे बढ़ाना चाहती है तो नेपाल में ही उत्पादित कच्चा पदार्थ से निर्मित हस्तकला सामाग्रियों को भी अधिक निर्यात कर सकते हैं । उनके अनुसार पत्थर, मिट्टी और काठ से निर्मित हस्तकला ने भी विदेशियों को आकर्षित किया है, जो नेपाल के मौलिक धर्म–संस्कृति की भी एक पहचान है ।
वैसे तो हस्तकला उद्योग में सहभागी कुछ व्यक्तियों का कहना है कि हाथ से निर्मित सामग्रियों का बाजार दिन प्रतिदिन कमजोर होता जा रहा है । उन लोगों का कहना है कि मशीन अर्थात प्रविधि से निर्मित सामग्रियों का मूल्य सस्ता होता है, उसकी तुलना में हाथ से निर्मित सामानों का मूल्य महंगा, जिसके चलते बाजार में प्रतिस्पर्धा मुश्किल हो जाती है । लेकिन सबिता कपड़ा उद्योग (इमाडोल, ललितपुर) की संचालिका सविता डंगोल कहती है कि अगर गुणस्तर कायम रखते हुए हस्तनिर्मित सामानों की महत्ता के बारे में उपभोक्ता को सचेत बनाया जाता हैं तो सहज ही प्रतिस्पर्धा हो सकती है । अपने पूरे जीवन में हाथ से निर्मित कपडा (शुद्ध खादी से निर्मित कपड़ा) उत्पादन करते हुए बेचने वाली डंगोल आगे कहती है– ‘शुरु–शुरु में तो मुझे भी लग रहा था कि अब मैं हार गई हूं, बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाउंmगी । लेकिन आज अवस्था वैसी नहीं है । मेरे उद्योग से जितने भी कपड़े उत्पादन हो रहे है, वह सब बिक जाता है ।’ उनके अनुसार सबिता उद्योग से उत्पादित कपड़ा नेपाल के प्रमुख शहराेंं के अलावा पड़ोसी देश चीन की कुमीन और गोञ्जाव तथा भारतीय शहर देहरादून तक पहुँचता है । उद्योगी डंगोल को मानना है कि राज्य की प्राथमिकता रहेगी तो स्वदेश में ही पर्याप्त कपास (कपड़ा उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चा पदार्थ) उत्पादन किया जा सकता है और गुणस्तरीय कपड़ा उत्पादन कर विदेशों में निर्यात करते हुए वैदेशिक मुद्रा भी आर्जन कर सकते हैं । उन्होंने यह भी कहा कि समय परिस्थिति के अनुसार प्रविधियों का प्रयोग भी करना चाहिए, लेकिन गुणस्तर में समझौता नहीं होना चाहिए ।
नेपाल के विकट जिलों में से एक तेह«थुम जिला में अनुग्रह ढाका उद्योग संचालन करनेवाली चन्दा इवाहाङ कुरुम्वाङ भी कहती है कि अगर नेपाल को आत्मनिर्भर बनाना है तो अधिक से अधिक अपने ही देश में उत्पादित सामानों को प्राथमिकता देनी चाहिए और विदेश से आयातित सामानों को निरुत्साहित करना चाहिए । उनका मानना है कि इसके लिए राज्य की ओर से ही पहल होना आवश्यक है । चन्दा यह भी कहती है कि नेपाली ढाका कपड़ों का बाजार कमजोर नहीं है, लेकिन गुणस्तर को कायम रखने की जरुरत है । वह आगे कहती है– ‘नेपाल में पाल्पाली ढाका खूब प्रसिद्ध है । लेकिन आज पाल्पाली ढाका में मिलावट होने लगा है । जिसके चलते उपभोक्त शुद्ध ढाका की खोज में हंै ।’ चन्दा ने यह भी दावा किया कि आज शुद्ध और हस्त–निर्मित ढाका में तेह«थुम जिला आगे आ रहा है । स्मरणीय है, चन्दा वह महिला हैं, जिन्होंने तेह«थुम जिला में डेढ़ सौ से अधिक महिलाओं को रोजगार दिया है ।
विदेशों से कच्चा पदार्थ (भेड़ों का ऊन) लाकर नेपाल में विभिन्न डेकोरेसन और फैशनजन्य सामग्री निर्माण करते हुए पुनः विदेशों में ही निर्यात करती आ रही नुप्से क्राफ्ट (मित्रपार्क, काठमांडू) की शान्ति श्रेष्ठ का कहना है कि हस्तकला उद्योग ने हजारों महिलाओं को स्वरोजगार भी दिया है । २० साल से हस्तकला उद्योग में कार्यरत श्रेष्ठ का कहना है कि नेपाल में उत्पादित हाथ से निर्मित ऊनीजन्य सामानों की मांग विदेशों में उच्च है । श्रेष्ठ के अनुसार नेपाल में निर्मित ऊनीजन्य हस्तकला का अधिकांश सामान युरोपियन देशों में भेजा जाता है । हस्तकला महासंघ के ही तथ्यांक अनुसार श्रेष्ठ जिस प्रकार का सामान उत्पादन करती आ रही है, उस तरह का सामान साल में लगभग २ अर्ब का निर्यात होता है । लगभग ७० महिलाओं को रोजगार देनेवाली श्रेष्ठ का कहना है कि नुप्से क्राफ्ट की ओर से भी वार्षिक १ से डेढ़ करोड़ का सामान निर्यात हो रहा है । श्रेष्ठ के तरह ही ऊनीजन्य सामग्री बनाकर विदेशों में निर्यात करनेवाली हस्तकला उत्पादन संघ की शारदा महर्जन भी कहती है कि नेपाल में हाथ से निर्मित ऊनीजन्य सामानों की मांग विदेश में बढ़ रही है । लेकिन नुप्से क्राफ्ट की संचालिका श्रेष्ठ का कहना है कि नेपाल में निर्मित ऊनीजन्य कच्चा पदार्थ गुणस्तरीय ना होने के कारण न्यूजील्याण्ड से ‘ऊन’ लाया जाता है । श्रेष्ठ का यह भी कहना है कि नेपाल में उत्पादित ऊन को गुणस्तरीय बनाने के लिए उसको प्रशोधन करना आवश्यक है, जिसके लिए नेपाल में उपर्युक्त प्रविधि नहीं है ।
लेकिन दैलेख जिला में राडीपाखी (भेडा तथा बकरी के रोएँ से निर्मित कपड़ा) द्वारा निर्मित सामान उत्पादन करनेवाले गंगबहादुर बोगटी को कहना है कि इस उद्योग में आत्मनिर्भर होना मुश्किल हो रहा है । गरीबी निवारण कोष द्वारा संचालित तालीम लेकर बोगटी एक साल से इस उद्योग में संलग्न हैं । वह आगे कहते हैं– ‘मैं तो नया हूं । शायद इसीलिए भी हो सकता की मुझे मुश्किल हो रही है ।’ महिला उद्यमी महासंघ के अध्यक्ष तथा उद्यमी शारदा रिजाल का कहना है कि नेपाल में कृषिजन्य उत्पादन को प्राथमिकता दी जाती है तो हम लोग आत्मनिर्भर बन सकते हैं । कृषिजन्य उत्पादन और हस्तकला संबंधी विभिन्न तालीम संचालन कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अग्रसर रिजाल कहती है कि हर महिला अपनी चाहत और क्षमता के अनुसार काम करती है तो वह सहज रूप में आत्मनिर्भर हो बन सकती है । हस्तकला महासंघ के कार्यकारी सदस्य तथा पत्थरों से निर्मित सामग्री बनानेवाले उद्योगी शाक्य का भी कहना है कि अगर राज्य की ओर से सहजीकरण हो जाता है तो नेपाल में कोई भी ऐसी जगह नहीं है, जहां से अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के लिए हस्तनिर्मित सामान निर्माण ना हो सके । जनकपुर में जानकी उत्पादन ग्रुप के नाम से मिथिला पेन्टिङ बनानेवाली चित्रकार सोनम कर्ण भी कहती है कि अगर मिथिला पेन्टिङ के बारे में उचित प्रचार–प्रसार किया जाता है तो यह भी एक उद्योग के रूप में विकसित हो सकती है । कर्ण के अनुसार मिथिला पेन्टिङ का बाजार सिर्फ मैथिली भाषा–भाषी और संस्कृतिवालों के बीच में ही सीमित नहीं है । वह कहती है– ‘मिथिला पेन्टिङ को ना समझनेवाले लोग बहुत ही है, उनके के लिए तो यह कुछ भी नहीं हो सकता है । लेकिन जो लोग समझते हैं, वे लोग हमारी पेन्टिङ खरीद करते हैं । हमारी पेन्टिङ भोजपुरी, मारवाड़ी, थारु समुदाय के लोग से लेकर पहाड़ी समुदाय के लोग भी खरीदते हैं ।’ कर्ण के अनुसार उनके द्वारा उत्पादित मिथिला पेन्टिङ का बाजार जनकपुर और काठमांडू में है । वह आगे कहती है– ‘मैं जानती हूं कि मिथिला पेन्टिङ का बाजार भारत और विदेशों में भी है, लेकिन हमारा प्रत्यक्ष सम्पर्क विदेशों के बाजार में नहीं है ।’ कर्ण का मानना है कि तराई–मधेश में रहनेवाली अधिकांश महिलाओं के लिए मिथिला पेन्टिङ आय–आर्जन का एक माध्यम भी है ।
माइग्रेन्ट वुमन वर्कर्स ग्रुप की संचालिका सुनिला श्रेष्ठ का कहना है कि नेपाल से हर साल हजारों महिलाओं को विदेशों में बेचा जाता है और उनका विभिन्न प्रकार से शोषण होता है । श्रेष्ठ आगे कहती है– ‘अगर महिलाओं को बिकने से रोकना है तो उन लोगों को आत्मनिर्भर बनाना जरुरी है । उसके लिए हस्तकला उद्योग एक माध्यम बन सकता है ।’ बेम्बो (बांस) से निर्मित कपड़ा और उससे निर्मित विभिन्न सामग्री उत्पादन कर बेचनेवाली श्रेष्ठ का यह भी कहना है कि नेपाल में ही बेम्बो से धागा बनाने की प्रविधि नहीं है, अगर उसकी व्यवस्था की जाती है तो हजारों महिलाओं को नेपाल में ही रोजगार मिल सकत है । वह आगे कहती है– ‘उक्त प्रविधि के लिए हम लोग प्रयास कर रहे हैं । अगर सरकार तथा कोई प्राइवेट संघ–संस्था तथा व्यापारिक जगत से उक्त प्रविधि खरीदने के लिए हमें सहयोग मिलता है तो हम लोग नेपाल के कच्चा पदार्थ से बेम्बो का कपड़ा उत्पादन कर स्वदेश तथा विदेश में निर्यात कर देश को आर्थिक रूप में मजबूत बनाने के लिए योगदान कर सकते है ।’
संखुवासभा जिला में अल्लो, उनी तथा सूती कपड़ा उद्योग संचालन करनेवाले नरेन्द्र कुलुङ राई का मानना है कि कई प्रकार के स्वदेशी कच्चा पदार्थ और उत्पादन के बारे में राज्य के महत्वपूर्ण निकायों में रहनेवाले लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है, जिसके चलते स्वदेशी उत्पादन और उसकी महत्ता आज पीछे पड़ रही है और तैयारी कपड़ो का बाजार बढ़ रहा है । अपना अनुभव शेयर करते हुए वे आगे कहते हैं– मैं सिस्नो और अलो से निर्मित कपड़ों का उत्पादन करता हूं । इसका बाजार भी है । लेकिन राज्य की किसी भी निकाय को पता नहीं है कि सिस्नो और अल्लो क्या है ! हम लोग स्थानीय कच्चा पदार्थ से निर्मित कपड़ा बनाकर बिक्री–वितरण के लिए नेपाल के ही अन्य शहर में नहीं ले जा सकते, हमारे सामानों को एयरपोर्ट में ही रोका जाता है, ऐसी अवस्था में हम लोग हमारा सामान कैसे विदेशों में निर्यात कर सकते हैं ?’ महासंघ के सदस्य शाक्य भी मानते हैं कि नेपाल में हिमाल से लेकर तराई–मधेश विश्व का सभी हवापानी है, जहां इसतरह का विविध सामग्रियां है, जिसका प्रयोग करते हुए स्थानीय स्तर में भी कई लोग आत्मनिर्भर हो सकते है, लेकिन उसकी पहचान राज्य की आधिकारिक निकायों को नहीं है । शाक्य अपनी कथन को पुनः दोहराते हुए कहते हैं– ‘अगर नेपाल को समृद्ध बनाना है तो नेपाल से उत्पादित सामानों का प्रयोग यहां बढ़ाना होगा और उसको अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी ले जाना होगा, कृषिजन्य उत्पादन तथा हस्तकला उद्योग ही वैदेशिक मुद्रा आर्जन के लिए एक प्रमुख विकल्प हो सकता है ।’ व्यापार तथा निकासी प्रवद्र्धन केन्द्र द्वारा हाल ही में सार्वजनिक तथ्यांक के अनुसार भी नेपाल से निर्यात होनेवाले सामानों की सूची में कृषिजन्य उत्पादन तथा हस्तकला का सामान ही अधिक है ।