हल्की हल्की बारिश की बूँदें गिरतीं, वो बैसाखी लिए आराम से चलती : सुरभि मिश्रा
उसकी याद
हल्की हल्की बारिश की बूँदें गिरतीं
वो बैसाखी लिए, आराम से चलती
बैसाखी की खट खट की आवाज मुझे प्रेरणा देती,
सोचती, मेरा दर्द इससे कहीं कम है ।
अरे अचानक ये आवाज कैसी, इतनी भीड़ क्यूँ ?
हे राम ये तो वही है जिसने कुछ पल पहले मुझे उम्मीद दी थी,
ये भीड़ इतनी शान्त क्यों है ? कोई आगे क्यों नहीं आता ?
हाय रे ये लोग कोई उसे अपना हाथ दो
शायद वो उठना चाहती है,
वो बिलख रही है अंकल आप, भईया आप कोई तो उठाओ ।
मेरे कदम डगमगा रहे थे,
हिम्मत ना थी मुझमें,
कही छूट न जाये इसका डर सता रहा था,
फिर भी मैंने अपना हाथ बढाया,
मेरी आँखे भर आयी सबकुछ धुँधला सा हो गया ।
उसके चश्मे को उठाया ही था,
किसी ने सिसकियाँ लेते हुए मेरे हाथों को छुआ कुछ सहमी थी,
मैंने उसके आँसुओं को पोछा और घाव धोये,
कहीं चोट तो नही आयी पूछते हुए उसके दर्द को सहलाया,
उसकी आँखों से कृतज्ञता झलक रही थी,
उस ठौर रोज मैं तुम्हे महसूस करने लगी थी,
बहुत मासूम सी वो छवि आज भी उभरती है,
वो हँसता चेहरा छोटा कद ।
सुरभि मिश्रा
नौगढ सिद्धार्थ नगर नेपाल