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Continue to Chatकभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को, खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए : इकबाल https://www.himalini.com/80992/07/26/02/
कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को, खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए : इकबाल https://www.himalini.com/80992/07/26/02/